Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 338
________________ आगम (४२) “दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [१०], उद्देशक -1, मूलं [५...] / गाथा: [४६१-४८१/४८५-५०५], नियुक्ति : [३२९-३५८/३२८-३५८], भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] "दशवैकालिक" नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सूत्रांक 245 चूणी. गाथा ||४६१ ४८१|| ॥३३॥ श्रीदश- जेण पएसा णिच्छूटा, अथवा इमो दवभिक्ख भण्णा-भइओ भेअणं चेव०॥३३६॥ गाथा, दय भिंदतीति दव्यभेदओ, सो सकारकालिका दबभेदो परवेयब्बो, दबभेदणं परवेयवं, दवं मिंदियब्वं तंच, परूवणं एतेसि तिण्डवि पत्तेयं २ वोच्छामि, सा य परूवणामपदया IA इमा-'जह दारुकम्मगारो० ॥३३७॥ गाहापुम्बद्ध, जहासद्दो पुग्वसहमतिविहपरूवणअभिनिदेसओ, दारुकम्मकारो बडति, निक्षेपाः | सो दब्बभेदओ भण्णइ, भेदणं परम, भेत्तब्वयं कहूँ, सो य दारुकम्मकारो एतेहिं भिदएहिं सजुत्तो दवभिक्खू भवद । किंच। सभिक्ष्वध्य । 'अन्नेवि दवभिक्खू ॥३३७।। माथापच्छङ्घ, न केवल दारुकम्मकारो दबभिक्खू भवइ, किन्तु , अन्नेवि दवभिक्खयो जे मूलगुणउत्तरगुणेहिं चिरहिया लोगमुवजीदति ते दग्धभिक्खनो भण्णंति, देवा अम्हे तिलोगनित्थारणत्थं मणुस्सलोए अवयरिया || |ते एवं बभणा णाम कोधी माणी मायी मिच्छादिट्ठी उज्जुपन्ने धम्ममि अविकोबिया मता याजणगा दुपदादीणि मग्गमाणा | दबभिक्खवो भणति, तहा अनेऽवि जीवाणियनिमित्तं तारिसा कप्पाडयादणि दाणा किविणा सिप्पतो भिक्खमडमाणाविज्जा दबभिक्खयोति पासंडिणोऽवि ' मिच्छट्टिी०१॥३३९ ॥ गाहा, रत्तपउपरिवायगमादीवि मिच्छादिट्ठी वधपरा तसाणं | बेइंदियादीणं थावराण य पुढविमाईणं णिच्चमेव वधकारगे रचा, अबभचारितणेण संघइयदोसेण य दन्यभिक्खनो भवंति, आहकहं ते अबभचारी भवंति , आयरिओ आह-सक्काण ताच जे तत्थ असीलमंता तेसु मग्गणा णस्थि, जे पुण सीलमंता ते मणवदओ पहुच्च पेसदासिपरिग्गहा कह बंभचारी भविसति, संखावि पत्ताणं सहादीण विसयाण उपभोगो कायच्वोत्ति एवं | ॥३३२।। उवासंता कहं बंभचारी भविस्संति', एवं अण्णेमुवि आजीवगाइम पासंडेसु जहा संभवं भाणियब्वं, तहा इमेण संचएण संचइया, | | तंजहा-'दुपयचउप्पय० ॥ ३४० ॥ गाथा, दुपदं दासी दासा य, चउप्पयं गोमहिसादी, धणं- हिरण्णसुवण्णादी, धणं दीप अनुक्रम [४८५५०५] [[337]

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