Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 360
________________ आगम “दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) (४२) | चूलिका [१], उद्देशक - मूलं [१/५०६-५२४] / गाथा: [४८२-४९९/५०६-५२४], नियुक्ति : [३६१-३६९/३५९-३६७], भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] "दशवैकालिक" नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सूत्राक [१] गाथा ||४८२४९९|| श्रीदश-1 कुटिला, बहुला इति पायसो, कुडिलहियओ पाएण सुज्जो य साइबहुला मणुस्सा काममोगनिीमतं गिद्देसुषि पितिपुत्तप्पभि-18 चतुर्थी निसु सातिसंपयोगपरा अवीसत्यहियया, तेसु किं सुहमिति धम्मे रती करणीया, अविय-लहूसगभोगनिमित्तं पराइयधणंपरा जो चूगों मणुया । विसयसुहविप्पमुका य इअ भो धम्मे रतिं कुणह ॥शा ततियं ठाणं गयं। तहा-'इमे अ मे दुक्खेन चिरकालोवट्ठाई। रतिवाक्ये | भविस्सई तेण ओहाणुप्पहिणा एवं चितयव्य, जहा इमेत्ति जं सारीरमाणसं परीसहोदएण दुक्खमुष्पर्ण त पचखं काऊण, चसद्दो न इमं दुक्खं निहिसद सुहेण विससयति, 'म' इति अप्पाणं निद्दिसह, दुक्खं अरइकराणज्ज, चिर-पभूतो काले, ण चिरं ॥३५४॥ चिरं, अचिरसवडाणं जस्स तं अचिरकालोवट्ठाती तं च, अब्भासा जोगोपचिएण घिइबलेण परीसहाणीतं जिणिऊण सानि-12 ४ हियसामंतमंडलो इव राया सुई संजमरज्जे पभुतणं करेइ, इह पुण परीसहपराजियस्स नरगादिसु दुक्खपरंपरगतो अतो धम्मे | रमियन्वं, अविय-परीसहा उदिज्जंति, नवधम्माणं विसेसओ। जम्हा दुक्खमणा तमनिग्छमाणा रमह धम्मे ॥१॥ चउत्थं पर्दा।। गयं । किच-'ओमजणपुरसकारे' ओमो नाम पागयजणो, ओमजणा सकार इव सकारो, ओमजणस्स आमजणाओ पुर । सकारी आमजणपुण र)सकारो, धम्मे हिओ पभूणवि पुज्जो भवइ, तओ वयडिओ पुणमन्ताणमवि अन्मुडाणासणंजलिपग्गहादीहि सेवाविससहि पुकारइ, एवं ओमजणपुरकारो, अहवा अग्गओ करणं पुरकारो, धम्मचुओ रुडेहिं रायपुरिसेहि पुरी कलओ बढाइमाण काराविज्जद, एवं ओमजणाओ परिभवकर्य अपुरस्कार पावइ, एस ओमजणाओपुरकारो ओमजणपुरकारी धम्माओ |चुयस्स जणं संभवइ परं परिभवधरणाय तेण धम्मे रती करणिज्जा, पंचमं पदं गयं । तहा-'वंतस्स पडिआयण' अम्भव- ॥३४॥ हरिऊण मुहेण उग्गिासयं तं तस्स पडिपीयण ण तहा विहियं भवति, ते अतीव रसे न चलं, न उच्छाहकारी, विलीगतया या दीप अनुक्रम [५०६५२४] [359]

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