Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 283
________________ आगम (४२) “दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [८], उद्देशक , मूलं [१५...] / गाथा: [३३५-३९८/३५१-४१४], नियुक्ति : [२९५-३१०/२९३-३०८], भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सूत्रांक [१५...] गाथा ||३३५३९८|| प्रणिधौ श्रीदश कारवेज्जा करतेपि अन न समणुजाणेज्जा, अगणिकायविरई गया। इदाणि वाउकायविरई मण्णइ-'तालिअंटेण' ॥३४३ वायुवनस्पवैकालिक | सिलोगो, तत्थ तालिअंटो लोगपसिद्धी पत्तं पोमिणिपत्तादी, साहा रुक्खडाणं, बिहषणं वियणग, एतेसि अमतरेण 'न बीइज्ज तिविरती चूणौँ ४ अप्पणी काय बाहिरं वापि पोग्गलंति' तत्थ अप्पणो कार्य नाम अत्तणो सरीरं, बाहिरपोग्गलग्गहणेणं उसिणोदयादीण ८ आचारगहणं, जहा णो सयं बीइज्जा 'एगग्गहणे गहणं तज्जातियाण'मितिकाउं परेणावि न बीइज्जा, पीयंतमवि अब न समणुजाणेज्जा, वाउकायविरई गया। इदाणि वणफइबेरमणं भण्णइ-तणक्खं न छिदिज्जा०॥ ३४४ ।। सिलोगो, वत्थ सणं दब्भादि, रुक्खगहणेण एगट्ठियाण बहुपीयाण य गहणं, 'एगग्गहणे गहणं तज्जातीयाण'मितिकाउं सेसावि गुच्छगुम्मादि गहिया, ॥२७७|| आमग नाम असस्थुवहतं, विविध अणेगप्पगारं 'बीय' सालिमाइ मणसावि न पत्थए, किमंग पुण कंगणा, गहणेसु न चिहिज्जा' ।। ३४५ ।। सिलोगो, तत्थ गहणं गुविल भण्णइ, तत्थ उव्वत्तमाको परियत्तमाणो वा साहादीणि पट्टेड ते गहणं, सत्थ नो चिट्ठज्जा, जत्थ चीयाणि हरियाणि य आकिवाणि तत्थवि न चिट्ठज्जा, तत्थ उदगं नाम अणंतवणफई, से भणिया च- 'उदए अवए षणए सेवाले' एवमादि, अहवा उदगगहणेण उदगम्स गहणं करेंति, कम्हा, जेण उदएण वणफइकाओ। | अस्थि, उचिंगगहणेणं सपछत्सादीण गहणं, पाणगो पसिद्धो, एतेसु गहणादिसु पणगपज्जवसाणेसु वणप्फइजीवणवाए गो181 बिंदुज्जा, 'एगग्गहणे गहणं तज्जातीयाणमितिकाउं अमंपि मो चिट्ठावज्जा, चिट्ठतमवि अब न समणुजाणेज्जा किंच-'तसे ॥२७॥ पाणे न हिंसिज्जा' ॥३४६ ।। सिलोगो, 'तसे पाणे कुंथुमादी ण हिंसज्जा, ते पायाए कम्मुणा या णो हिंसेज्जा, मणो। ततम्गओ दहब्बो, न केवलं तसे पाणे न हिंसेज्जा, किंच-विविहेण मणवयणकाइएण करणकारावणुमोदणेहिं सब्वभूपसु वधो EMORRENCEACCOR S दीप अनुक्रम [३५१४१४] 4 - CAL [282]

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