Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४२)
प्रत
सूत्रांक
[१५...]
गाथा
||३३५
३९८||
दीप
अनुक्रम
[३५१
४१४]
“दशवैकालिक”- मूलसूत्र- ३ (निर्युक्तिः + भाष्य | + चूर्णि:)
अध्ययनं [८], उद्देशक [-], मूलं [१५...] / गाथा: [ ३३५-३९८/३५१-४१४], निर्युक्ति: [ २९५-३१०/२९३-३०८], भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक" निर्युक्तिः एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्ण:
श्रीदशवैकालिक
चूर्णां
८ आचार प्रणिधी ४
॥२८३॥
सम्म महियासेमाणस्स णिज्जरा एव भविस्यति'चि एवमाह जिणस्स सासणं सोऊण न आसुरतं गच्छियव्वंति । किंच 'कन्नसुखेहिं सहेहिं ॥ ३६० ॥ सिलोगो, कृष्णा पसिद्धा तेर्सि कन्नाणं सुहा कन्नसोक्खा तेसु कन्नसोक्खसु वंसीवीणाइस 'पेमं णाभिणिवे सएत्ति' पेमं नाम पेमंति वा रागोत्ति वा एगट्ठा, दारणंणाम दारुणसलिं दारुणं, ककसं नाम जो सीउण्डकोसादिफासो सो सरीरं कसं कुब्बति ककसं, तं ककसं फार्स उदिष्णं कारण अहियासएत्ति, अहवा दारुणसदो ककससद्दोऽविय एगड्डा, अच्चत्थनिमित्तं | पउज्ञ्जमाणा णो पुणरुतं भवइ, तत्थ कण्णसोक्खेर्हि सद्देहिंति एतेण आदिल्लस्स सोइंदियस्स गहणं कर्य, दारुणं कसं फासंतिएतेण अंतिहस्स फासिंदियस्स गहणं कर्म, आदिले अंतिले य गहिए ससावि तस्स मज्झपडिया चक्षाणजीहा गहिया, कनेहिं विरूवर्हि रागंण गच्छेज्जा, एवं गरहा, सेसेसुवि रागं न गच्छेज्जत्ति, जहा एतेसु सद्दाइसु मणुण्णेसु रागं न गच्छेज्जा तहा अमणुष्णेवि दोसं न गच्छेज्जा, जहा बाहिर दोन कम्म . तहा कम्मखवणत्थमेव अन्तबद्वियमपि दुक्खं सहियवं, तंजहा - ' खुहं पिवासं० ॥ ३६१ ॥ सिलोगो, खुहा-भुक्खा भण्णइ, पिवासा नाम पाउमिच्छा पिबासा, दुखिज्जा नाम विसमभूमि फलगमादी, सीउन्हा पसिद्धा, अरती एतेहि खुप्पियासादीहि भवर, 'भयं' सप्पसी हवाघादि वा भवति एयाणि खुष्पिवासादीणि अहियासेज्जा, 'अव्यहिए (ओ)' ति अव्वदिओ नाम अहीणो अविकीयो असीयमाणोति वृत्तं भवति, 'देहदुक्तं महाफलं ' तत्थ देहो सरीरं भग्रह, तंमि देहे दुक्खं महाफलं -महा मोक्खो मण्ण, सं मोक्पज्जवसाणं फलमितिका ऊण खुहादिउण्ड (दुक्ख ) मधियासेज्जा, सा पुण खुहा कहं सहियव्यत्ति, ? 'अत्थंगयंमि आइच्चे० ' ॥ ३६२ ॥ सिलोगो, अत्थो णाम पब्बओ, तंमि गतो आदिच्चो अत्थगओ, अहवा अचक्खुबिसयपत्थो, अत्थंगते आदिच्चे,
[288]
विषयपरिहारः
क्षुदादि
सहनं
॥२८३॥
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