Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०२)
“सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [२], उद्देशक [-], नियुक्ति : [१६६-१६८], मूलं [१७-४३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
प्रत
श्रीसूत्रकतागचूर्णिः
तापसादिक्रिया
सूत्रांक
॥३५०||
[१७-४३]
दीप अनुक्रम [६४८६७४]
विरतो तेसु जतणं करेति, मा में मारेस्सामित्ति, अथवा संजमो विरती एगट्ठा, सब्यपाणजीवसत्तेहिं, अथवा णो बहुसंजओ-बहु- संजओ णो बहुविरते अप्पणो सच्चामोसाई एवं विजंति, सच्चं मोसं कतं, तंजहा-अहं न हंतव्यो अण्णे इंतव्वा, ब्राह्मणा न हंतव्याः, ब्राह्मणघातकस हि न संति लोकाः, शूद्रो हन्तव्यः, शूद्रं मारयित्वा प्राणायाम जपेत् विहमि(नी)तिकां वा कुर्यात् किंचिद्वा दद्यात् , अनस्थिकानां सच्चानां शकटभरं मारयित्वा ब्राह्मणं भोजयेत् , हणणं-पिणं, आज्ञापन अमुगं कुरु अमुगं देहि चेत्येवमादि, परितावणं-दुक्खावणं, परिघेत्तव्यंसि दासमादि परिंगेहति, उद्दवणं मारणं, जहाऽतिवातातो अणियत्ता तधा मुसावादादि ३ जहा एतेसु आसवदारेसु अणियत्ता एमेव इत्थिकामा भारिया, उक्तं च-"मूलमेयमहम्मस्स." आह च-"शिश्नोदरकृते पार्थ", अथवा इत्थियासु सद्दादयो पंचवि कामा विद्यते इति, उक्तं च--"पुफफलाणं च रसो०" मुच्छिता गिद्धा जाव
अज्झोपवण्णा जाव वासाई चतुःपंच, पंचग्रहणं छसच जाव छद्दममाई, मज्झिमो कालो गहितो, परेण कम्हा ण गहितो जाव वीस । तीस सयंति वर?, उच्यते, एते प्रायेण अण्णउत्थिया भुक्तभोगा अवचोपादानाई काऊणं पव्ययंति, भोगपिवासाए वा भोगे केवि हरंति, जीवंतित्ति गतवया जाव अवच्चाई उपादेति, थोवंतियं तात्र चेव से वयो भवति, आह हि-"या गतिः क्लेशदग्धानां" तेन चतु:पंचग्रहण, उक्तं च-"सोयसु न घरेण मुहे." एवं ताव तेर्सि थेरपब्बइताणं एस कालो उस्सग्गेण भणितो, पच्छा सुत्तेण चेवऽवदिसति, एतस्मात् यथोद्दिष्टात् अप्पतरो वा भुजतरो वा, एक दो वा तिणि वा वासाई गहिताई, भुञ्जतरो भवति, दसण्हं परेण जाव सतं वालपव्वइताणं, जहा सुगल(सु)तस्स, जणे णासित्ति जणो न जातो, एवं ताव ते पच्चइता अणियत्तभोगा, यथा | शासोक्ता, आधाकर्म आहारो आवसहसयणोवादाणस्नानगन्धमाल्यादिमोगा भुंजंति, त एवं अणियत्तकामा कालमासे कालं किच्चा
॥३५॥
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