Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०२)
प्रत
सूत्रांक
[१७-४३]
दीप
अनुक्रम
[६४८
६७४]
AWWA
श्रीवत्रकताङ्गचूर्णिः
॥३६१ ॥
“सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (निर्युक्ति: +चूर्णि :)
श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [ २ ], उद्देशक [-], निर्युक्ति: [१६६-१६८], मूलं [१७-४३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र -[०२ ], अंग सूत्र -[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
कण्हपक्खिया, आग मिस्साणं, तित्थगराणं, तत्थ णरगतो उपयट्टे समाणो जड़ कंहा माणुस्सं लभति तत्थवि दुलहबोधिए यावि भवति, तस्म द्वाणस्स इस्सरियङ्काणस्स, उडिदा णाम पव्वज्जाममुडाणेण ममुडिया, परे पासंडिया, तम्हा अभिज्झा लोभो प्रार्थनेत्यनर्थान्तरं, अणुद्विता गिहि एव, असन्यदुक्खपहीणमग्गे एंगंतमिच्छेत्ति एगंतमिच्छादिडी परिग्गही असोभे णाम असाहू । पदमस्स अधम्मपक्म्बस्स विभंगे आहिते (सूत्रं ३३) अहावरे दोचस्स धम्मपक्खस्स एवमाहिति (सूत्रं ३४) एवं तावत् अधम्मपक्खो वृत्तो, छायातपवत् शीतोष्णवत् जीवितमरणवत् सुखदुःखवद्वा, तत्प्रसिद्धये इदमुच्यते-से बेमि पाइ या संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा-आयरिया बेगे, तेसिं च णं खेत्तवत्थूणि सो चेत्र पोंडरीयगमओ जाव सब्वदुक्खाए परिनिन्युडेति वेमि, एस ठाणे आरिए केवले जाव साधू, दोचस्स ठाणस्स विभंग एवमाहिए ||
अहावरे तचस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जति (सूत्रं ३५), अधम्मपक्खेण धम्मपक्खे संजुत्तो मीसगपक्खो भवति, तत्रधर्मो भूयानितिकृत्वा अधर्मपक्ख एव भवति, रिणे देशे वर्षनिपातयत्, अभिनवे धा पित्तोदये शर्कराक्षीरपानवत् अमेज्झ (सुद्ध)रसभाविते वा द्रव्ये क्षीरप्रपातवत् एवं तावन्मिथ्यादर्शनोपहतान्तरात्मानः यद्यपि किंचिद्विरमन्ते तथापि | मिथ्यादर्शनभूयस्त्वात् अविरतिभूयस्लाच धर्माननुबन्धाच अधर्मपक्ष एव भवति, जाब एलमूलताए पञ्चायति, एस ठाणे अणारिएं जाव असाधू, एस खलु तचस्स मीसगस्स अधम्मपक्खस्स विभने आहिते ||
अहावरे पदमस्त अधम्मपक्वस्स विभंगे एवमाहिते (सूत्रं ३६), अथाह - दप्रयोजनानामप्रयोगः ?, उच्यते, सत्यं, किन्तु यदत्र नापदिष्टं तदिहोच्यते, अधम्मपक्खे मीसओ य, उक्तं हि - 'पुव्त्रभणितं तु' इह विशेषोपलम्भो द्रष्टव्यः कथं ?,
[365]
साध्व
साधुपक्षौ
॥३६१।।
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