Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 420
________________ आगम (०२) “सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [६], उद्देशक [-], नियुक्ति: [१८४-२००], मूलं [गाथा ६६९-७२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रत श्रीस्त्रकताजचूर्णि: ॥४१५|| सूत्रांक ||६६९७२३|| दीप अनुक्रम सोचूण अद्धिती जाता, अकजं, महचएणं तवस्सिणी कालगया, तेणवि भत्तं पञ्चक्खातं, तं सो कालं गयो, समणी देवलोएगुआद्रकवृत्तं उबवण्णा, ताओ देवलागाओ चुता संती मेच्छविसए अद्दगतसे अद्दगस्स रणो धारणीए देवीए कुञ्छिसि पुत्तत्ताए बर्कता, तीसे। णवण्हं मासाणं दारओ जातो, तस्स णामं कीरति अद्दओ, इतरोऽवि कालं काऊण देवलोएसु उबवण्यो, तओ चुओ बसंतपुरे णगरे | सिद्विकुले दारिया जाया, इतरोऽपि जुब्धणस्थो जाओ, अण्णादा कयाई सो अद्दओ राया सेणियस्स रण्णो दतं विसति, तेण कुमारेण पुच्छिाति कहिं बञ्चसि ?, तेण चुच्चति--आयरियविसयं सेणियस्स रण्यो सगासं, सो तुझंपि पितियवयंसओ होति, तेण बुचइ-- | तस्स अस्थि कोई पुत्तो णस्थि ?, तेणऽस्थिति वुत्ते अद्दकुमारो विचिंतेइ-तेण मित्तता होतु, सो तस्स पाहुडं विसजति, एयं अभयस्स उवणेतब्ब, सो दूतो तं गेण्हितुं रायगिढ़ नगर आगतो, सेणियस्स रपणो सब अप्पाहणियं अक्खातिय, इतरदिवसे अभयस्स दुको, अभयकुमारसत्तं पाहुडं उवणेति, भणिओ य-जहा अद्दकुमारो अंजलिं करेइ, तेण पाहुडं पडिच्छि, दतो य सकारिओ, अभओऽवि परिणामिताए बुद्धीप परिणामेऊण सो भवसिद्धीओ जो मए सद्धी पीति करेइ, एवं संकप्पेऊण पडिमा कारिजह, तं | मंजूसाए छोढुं अच्छति, सो दूतो अण्णतावि आपुच्छइ, तेण तस्स मंजूसाए अप्पिता, भणिओ य एसो-जहा कुमारो भण्णइ-एतं | मंजूस रहस्से उग्घाडेजासि, मा महायणमज्झे, जहा ण कोइ पेच्छेइ, बहुपाहुडं पेसति, सो दूओ परं णगरं पडिगओ, अदस्स रणो सेणियसितं पाहुडं उवणेति अद्दस्स, सकारेतूण पडिविसञ्जिओ, कुमारस्म मूलं गओ, अभयपेसवितं पाहुडं उवणेति अप्पा हणियं च अक्खाति, तेणवि सकारेऊण पडिविसञ्जितो, इतरोऽवि तयं गहेऊण उबरि भूमि दूरूहित्ता जणविरहियं करेत्ता मंजूसं| | उग्घाडेति, सो पेच्छेति उसमसामिस्स संमें पडिम, तस्स ईहापोहमग्गणगवेसणं करेंतस्स कहिं मए एयारिसं रूवं दिट्ठति ?, ॥४१५॥ [७३८७९२] [419]

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