Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०२)
“सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [३], उद्देशक [-], नियुक्ति: [१६९-१७८], मूलं [४४-६३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
विकले
न्द्रिया:
प्रत सूत्रांक
[४४-६३]
दीप अनुक्रम [६७५
श्रीसूत्रक-
| विगलिंदिया जे तेनि तिरिक्खजोणियाहारो वुच्चति-अहावरं डहेगतिया(सूत्रं ५९)कम्मणियाणेण जत्थउवकम्मा णाणाविहाणं
विगालादया जाता ताजचूर्णिः तसथावराणं, तसा तिरिक्खजोणियमणूमा ओरालियशरीरगता, तेऊ वाऊपि तमा चेब, थावरा पुढवि अणुसूयंता, अणुसूयंता णाम ।।३८७|| शरीरमनुसृत्य जायन्ते, तंजहा-सचिचेसु तहा जूपाओ लिक्खाओ सेयवतो छप्पदा य मंगुणा पुण माणुमसरीरोवजीविणो मानु
पशरीराश्रयादेव जायन्ते, शरोरोपभुज्यमानेषु पर्थङ्कादिपु, न त्वन्यत्र, गोरूपानामपि शरीरेषु यूकादयो भवंति गोकीडा य, अचित्तेसुवि एतेसु अव्यावष्णेसु जुवादयो संभवंति, अचिचीभूतेसु तु कृमिकाः संभवंति, एवं चिंदिया ने इंदियाण चउरिंदियाणपि सरीरेण अणुसित्ता जायते जहा विच्छिगस्म उवरिं बहयो विच्छिमा संभवंति, अचित्तीभूतेसु य किमिकादयो जायंते, | उपाए सचित्ता मसगा संभवंति, जहिं अग्गिपाणादिवत्लाणि अग्गिसोज्झाण चेव कीरति, जत्थ अग्गी तस्थ बातोपि अस्थि, जेवि बाउकाए निस्माए आगासे संभवंति, वुचा तराथानरा। दाणिं तत्थ पुढविमनुसृत्य वेइंदिया कल्लुगादयो सम्भवन्ति तेइंदिया कुंथुपिप्पीलिकादयो चतुरिदिया पतंगा, वरिसारते भूमि पडिलेहंतो उडेति सलभादयः, आउक्काए पूतरगादयो वणस्सतिकाए पणगभमरादयो, अचित्तामुवि एतेसु जायंते, ते जीवा तेसिं णाणाविधाणं तसथावराणं पुराणाणाविधाणं तसथावराणं सरीरेसु सचित्तेसु अ अचित्ते अ वेदियसत्ता दुरूवत्चाए विउद्घति, दुरुवा णाम मुचपुरिसादी मरीरावयवा, तस्थ सचित्तेसु मणु
स्साण ताव पोरेसु समिगा गंडोलगा कोट्टाओ अ संभवंति संजायन्ते, चाहिपि णिग्गतेसुवि उच्चारपासवणादिसु किम्मिया सम्मुHE छंति, अचित्तेसुवि गोरूवकडेवरेसु य, उदरान्तशः कम्यादयः संमुच्छंति, तिरिक्खजोणियाणपि सचित्ते उदरान्तरा० उज्झेसु
किमिया संभवंति, उदरातो यिणिग्गनेसु उज्झेसु छगणेसु य किमिगा संमुच्छंति, भणिता दुरूवसंभवा । इदाणि खुरगा बुचंति
६९९]
माय IITE
||३८७॥
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