Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 389
________________ आगम (०२) “सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [३], उद्देशक [-], नियुक्ति: [१६९-१७८], मूलं [४४-६३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रत श्रीमत्रक नागपूर्णि: ॥३८४॥ सूत्रांक [४४-६३] दीप अनुक्रम [६७५ चतुर्थोऽत्र शेपेषु दंडकः, अग्निकायिकानां चतुर्थो, आवाकादिषु भूपकाः, इदाणि सो चेव विसेसो मूलादिणा दसविधेण विसेसेण वनस्पतिः विसेसिजद, शरीरवत् , यथा शरीरमविशिष्टं तदेव पाण्यादिभिर्विशेपैर्विशिष्यते, वनवद्वा ग्रामगृहबदा विषयवद्वा, एवं रुक्खेत्ति अविशिष्टो उपकमो वुत्तो, सो पुण विसेसिञ्जड़ मूलत्ताए, मूल नाम मूलिया, जेहिं मूलिया पइडियाओ, भूम्यन्तर्गत एव स कन्दः खन्धस्योपरि खन्धो तया छल्ली सब्दरुक्खसरीराणि सालेसुवि होइ खंधाओ, सालो अहुरा इत्यर्थः, प्रबालेहिंतो पवाला पत्ता पत्तरेसु फलाणि कलेहितो बीजाणि ॥ अहावरं पुक्ग्यायं इहेगतिया० (सूत्रं ), रुक्खजोणिएसु रुक्खेसु अब्भारुहत्ताए, रुहं जन्मनि, अहियं आरुतिति अज्झायारुहा, रुक्खस्स उपरिं, अत्र रुस्खो पगतो, लतावल्लिरुक्खगति, सो पुण पिप्पलो वा अण्णो वा कोयि रुक्खो, अण्णस्म उवर जातो, एवं तणओमहिहरिएसु चत्वारि आलावगा माणितव्या, कुहणेसु इको चेब, सम्वेसिं कायाणं पुढविमलाहारोतिकाऊणं तेण पुचि पुढविसंभवा चंति, एवं ताव एते वणस्सइकाईया, लोगोपि संपडियअति जीति जेण सुहपण्ण- 1 वणिजत्तिकाऊण पढमं भणिता, सेमा एगिदिया पुढविकाईयादयो चत्तारि दुमद्दहणिजत्तिफाऊण पच्छा बुचंति, वणस्सइकाइयागंतर तु तसकाओ, सो पुण णेरईओ तिरिक्खजोणिओ मणुओ देवेत्ति, तत्थ नेरइया एगंतेण अप्पचक्खत्तिकाऊण ण भणंति, ते पुनरनुमानग्राह्या, तेण ण भण्णंति, तेसि आहारोवधिः आनुमानिक इतिकृत्वा नापदिश्यते, म तु एगंतासुभो ओजसा न प्रक्षेपाहारः, । देवा अपि साम्प्रतं प्रायेणानुमानिका एव, तेसुचि एगंततो आहारो ओजसा, मणभक्खणेण य, सो पुण आभोगणियत्तितो अणाभोगणिव्यत्तितो य, जहा पण्णत्तीए अणाभोगेण अणुसमतिगो, आभोगेणं जह० चउत्थं उकोस. तेत्तीसाए वाससहस्सेहिं अस्थतो चेव बुञ्चति, इह सुने वणमत्किाइयाणतरं मणुस्मा, सतिरिक्खजोणिएत्ति सचित्तरत्तिकाउं पढम वुधांत । अहावरं णाणा- ॥३८४॥ ६९९] [388]

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