Book Title: Aagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 790
________________ आगम (०२) “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [६], उद्देशक [-], मूलं [गाथा-१४], नियुक्ति: [२००] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.....आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्तिः प्रत सूत्रांक ||१४|| दीप अनुक्रम [७५१] H|| किंभूतैराय: -सन्तश्च ते पुरुषाश्च सत्पुरुषास्तैश्चतुर्विंशदतिशयोपेतैराविर्भूतसमस्तपदार्थाविर्भावकदिव्यज्ञानः, किंभूतो मार्गों ?-13॥ 'अंज' व्यक्तः निर्दोषत्वात्प्रकटः ऋजुर्वा वकान्तपरित्यागादकुटिल इति ॥१३॥ पुनरपि सद्धर्मस्वरूपनिरूपणायाह-'उहुं अहे-18 यमित्यादि, ऊर्ध्वमधस्तियक्ष्वेवं सर्वाखपि दिक्षु प्रज्ञापकापेक्षया भावद्गिपेक्षया वा तासु ये वसा ये च स्थावराः प्राणिनः | चशब्दो खगतानेकभेदसंसूचकी, 'भूत' सद्भूतं तथ्यं तत्राभिशङ्कया-तध्यनिर्णयेन प्राणातिपातादिकं पातकं जुगुप्समानो गहे-18 18माणो वा यदिवा भूताभिशया प्राण्युपमर्दशङ्या सर्वसावद्यमनुष्ठानं जुगुप्समानो नैवापरलोक कश्चन गर्हति निन्दति 'बुसि-18 मति संयमवानिति । तदेवं रागद्वेषवियुक्तस्य वस्तुखरूपाविर्भावने न काचिद्गति, अथ तत्रापि गरे भवति न तर्घष्णोऽग्निः81 शीतमुदकं विषं मारणात्मकमित्येवमादि किञ्चिद्वस्तुखरूपमाविर्भावनीयमिति ॥ १४ ॥ स एवं गोशालकमतानुसारी त्रैराशिको निराकृतो पुनरन्येन प्रकारेणाह आगंतगारे आरामगारे, समणे उ भीते ण उवेति वासं । दक्खा हु संती बहवे मगुस्सा, ऊणातिरित्ता य लवालवा य ॥१५॥ मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता, मुत्तेहि अत्थेहि य णिच्छयन्ना । पुछिसु मा णे अणगार अन्ने, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ ॥१६॥णो कामकिचा ण य बालकिचा, रायाभिओगेण कुओ भएणं । वियागरेज पसिणं नवावि, सकामकिचेणिह आरियाणं॥ १७॥ गंता च तत्था अदुवा अगंता, वियागरेजा समियासुपन्ने । अणारिया दंसणओ परित्ता, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ ॥१८॥ (सू०) caeeeeeeeeeeeeeee For P OW Baitaram.org ~789~

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