Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहिंसा परमो धर्म ॥ (Ahimsa is the highest Dharma ) देवनार का कतलखाना भारत के लिए कलंक रूप * लेखक * PADMAiindia मुनि पनसागर श्रीयुत नारायणजी पुरुषोत्तम सांगाणी प्रकाशक* देवनार कतलखाना विराधी जीवदया कमीटी ऊंडी वखार, भावनगर - - - - - -- - - நதிக்கவைகறைப்படுமையை MA000000 For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हे दयामय ! हे दयामय ! क्या दया का सिन्धु अब निर्जल बना है ? लहलहाता धर्म कानन आज क्या मरुथल बना है ? १ चंड कोशिक के बुझ सके हिंसाग्नि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक दिन धमकी दीवाली फिर यहां छाया अंधेरा, नाथ मानव को यहां अघ-ओघ ने है पुनः घेरा । मुक्ति पाकर विश्व के उपकार से भी मुक्त क्या मुम ? हमें नव सन्देश भेजा, होन इतने शक्त क्या तुम ? चेतना का भाग्य निर्माता पुनः पुद्गल बना है ॥ २ बस मर रहे प्यासे पपी है. इस रहे दानव सुबुध दया मैत्री बह गए आज हिंसा उदधिका है गगन द्वारा, तक पहुँचा किनारा । सबल का आहार स्वामी ! आज फिर निर्बल बना है ॥ काक अमृत पी रहे हैं, आह भर कर जी रहे हैं। ऐटम-: - प्रलय - जलधार प्रबोधक, कुछ नया उद्बोध भेजा, पेसा नाथ ! धर्म पयोद भेजा । ( अनुसंधान टाइटल ३ उपर ) For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 55555555555555555555 ॥ अहिंसा परमो धर्मः ॥ ( Ahimsa is the highest Dharma) देवनार का कतलखाना भारत के लिए कलंक रूप -: लेखक :प्रशांतभूति विद्वत्रत्न उपाध्याय श्री कैलास सागरजी महाराज के शिष्य पू. मुनिराज श्री कल्याणसागरजी म. के शिष्य मुनि पद्मसागर 99999:555555) For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: प्रकाशक :देवनार कतलखाना विरोधी जीवदया कमीटी. ऊंडी वखार, भावनगर प्रथम आवृत्ति हिंदी २००० वि. सं. २०१९: दिनांक : विजया दशमी तारीख. २८-९-१९६३ मुद्रक :-कांतिलाल जसराज शाह मुद्रणस्थान :-विजय प्रिन्टरी दाणापीठ पाछळ, भावनगर. For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दो शब्द मुनि पम सागरजीका (देवनार का कतलखामा भारत के लिए कल करूप) नामका निबंध मुझे आद्यन्त पढने का अवसर मिला, और उसके लिए "दो शब्द " लिखने का मुझे जो सुअवसर प्राप्त हुआ, तदर्थ मैं अपने स्वयं का महा पुण्यशाली समझता। बाज स्वतंत्र भारत में हिंसा के इतने “षध संस्थान" खुल गए हैं, और नित नए नए खुलते जा रहे है । इनको देखकर, किसी भी भारतीय संस्कृति पोषक के दिलमें अत्यन्त दुःख होगा कि हम किस लिए भारत को स्वतंत्र बनाना चाहते थे। हमारे कई शूरवीरोंने स्वतंत्रता की वेदी पर बलीवान क्यों दिया ? उनका आशय यही था कि-हमारा स्वतंत्र भारत रामराज्य" बने । भारतीय संस्कृति को सन्मुख रखकर, धर्मानुसार राज्य कर्ता राज्य करें । अहिंसक नीति अपनावें । ये सब बातें केवल कल्पना मात्र बनकर ही रह गई। बाज तो देश में चारों ओर उद्योगों के नाम पर हिंसा बढ रही है । मैं यह चाहता हूँ कि, इन योजनाभोंका सख्त विरोध किया जाए। किंतु संगठन के अभाव में सरकार विरोधों For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के प्रति लक्ष नहीं देती है। इस लिए हम सब संगठित होकर इसका विरोध प्रदर्शित करें। देवनार कतलखाना उन्ही हिंसक योजनाओं में से एक है । " जो कि भारत के लिए कलंक रूप है।" इस बात को समझाने ले लिए मुनिश्री ने अनेक पहलुओं को दृष्टि में रखकर, अपनी तर्क शक्ति से सरकार की नीति जो कि हिंसा पोषक हैं, पंगु बना दिया है। मुनिश्री ने केवल तर्क शक्ति से ही नहीं अपितु सब धर्मो के प्रमाणभूत आधार को लेकर यह. स्थापित करने का प्रयास किया है, कि सम्पूर्ण विश्व सुखी तब ही बनेगा, जब विश्व भरके जीव मात्र “ अहिंस्य" माने जाएं । ___आशा है इस निबंध से भारतीय जनता के हमय में अहिंगक भावना का श्रोत बहेगा। दिनांक :विजया दशमी २८-९-६३ हम हैं आपके अहिंसा धर्मापाशकदेवनार कतलखाना विरोधी जीवदया कमेटी ऊंडीवखार, भावनगर ( सौराष्ट्र) For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ॐ ही अहूँ नमः ॥ पुरा वचनविश्वके सभी धर्माने “ अहिंसा धर्मका प्राण है यह एक आबाजसे माना है।" कोई भी धर्म चाहे तो यह जैन-वैदिक बौद्ध ईसाई-पारसी या इस्लाम क्यों न हो कोई भी धर्म का ऐसा सिद्धान्त नहीं है कि कोई जीव को दुःख पहुंचाने से या उसका घध-हिंसा करने से पुण्य होता है, अपि तु प्रत्येक धर्म का यह मूल सिद्धान्त है कि कोई भी जीवको दुःख मत-पहुचाओ, काई भी जीवका धध मत करो । दुःख पहुंचाने से था उसका बघ करने से महान् पाप होता है । सभी धर्मा का यही मन्तव्य है कि अहिंसा के पालन में जो मनुष्य जितना आगे बढा हुआ है वह उतना ही महान् अर्थात् विश्वमें वही सर्वश्रेष्ठ मनुष्य है. जो कि महान् अहिंसक हैं। यद्यपि उन सभी धर्मो में जैन धर्म की मानी हुई भहिंसा सूक्ष्मातिसूक्ष्म है। अहिंसा के विषय में जितनी गवेषणा-खोज जैनधर्म ने की हैं यहां तक काई सायद ही पहुंच सका हो । जैन धर्म का अहिंसाका विषय केवल मनुष्य या पशु तकही सीमित नहीं है, किन्तु एकेन्द्रिय से लेकर स चराचर विश्व तक व्याप्त है । विश्वका काई भी प्राणी इसमें बाकी नहीं रहता । जैन धर्म ने अहिंसा का विचार जिस तरह सूक्ष्म रीति से किया है, उसी तरह आचार में भी उसको पूर्णतया उतारने का प्रयत्न किया For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। जैन धर्म के प्रमुख अनुष्ठान अहिंसाका चरितार्थ करने के लिये ही निर्धारित किये गये हैं । भगवान् महावीर ने 'आचाराङ्ग सूत्र में फरमाया हैं कि : , (6 'सव्वे पाणा सधे भूया सव्वे जीवा सव्ये सत्ता न दंतव्वा न अज्जावेयन्वा न परिघेत्तव्या न उबद्दवेयब्वा एस धम्मे सुद्धे नीए सासए समेच्च लाय खेयन्नेहि पवेइप " " सर्व प्राण, सर्व भूत, और सर्व जीवों और सर्व सत्वों का न मारना चाहिये, न पीडित करना चाहिये न उनको मारने की बुद्धि से ग्रहण ही करना चाहिये, यही धर्म शुद्ध नित्य और शाश्वत है ।" तथापि अहिंसा पुण्यजनक है और हिंसा पापजनक है, इसमें किसी का भी वैमत्य नहीं है। हिंसा सर्व पापों की जनेता है । यह सबने स्वीकारा है । For Private And Personal Use Only ऐसी परिस्थिति में भारत जैसे धर्म प्रधानदेशमें अपने मामुली स्वार्थको सिद्ध करने की बद मुरादसे यांत्रिक साधनों द्वारा हजारों की संख्या में निरपराधी पशुओंका कतल करना यह अत्यंत शर्म जनक बात है । एक पशु या एक पक्षिके जीवन को बचाने के लिये अपना सर्वार्पण करनेवाले कई पुरुषों की जीवनी से जिस भारतका इतिहास अत्युज्जवल है, वही आज हजारों मूक पशुओं की कत्लेआम करके उस इतिहास को कलंकित करनेके लिये भारत सरकार तैयार हुई है । ऐसे तो भारतमें छोटे बड़े कई स्थान माजूद हैं, (जो नहीं होने चाहिये ) फिर भी वर्तमानमें ares के समीप 'देवनार' में आधुनिक तम यंत्र सामग्रीबाला Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राक्षसी कतलखाना बनाने की योजना की गई है और इसके द्वारा भारत सरकार अनेक जीवदयाप्रेमी धर्मीजनता की कोमल भावनाओं का खून करने का अधम कृत्य किया है। इस समस्याको हल करने के लिये प्रत्येक भारतवासी कृतप्रतिज्ञ बने और इसका सक्रिय विरोध करे । मुनि श्री पन्नसागरजीने "देवनार का कतल खाना भारतके लिए कलंक रूप" महानिबन्धमें अहिंसा के विषय में अच्छा विवेचन किया है। मांसभक्षण धार्मिक और शारीरिक उभय दृष्टिसे हानिकारक है, उसका प्रमाण देकर अहिंसा के विषयमें सर्व धर्मों का एक देशी वचन भी इस विषयमें उद्धृत किये हैं। इस निवन्धको देखनेसे मुनिश्री की सर्वतो माहिणी प्रतिभा का अच्छा परिचय प्राप्त होता है। मुनिश्रीका क्षयोपशम और परिश्रम इस विषयमें सराहनीय हैं। इस महानिबन्धका पढकर प्रत्येक भारतवासी ऐसे हिंसा विधायक कार्यो का जोरदार विरोध कर अपना धर्म अदा करे यही भावना। श्रमणोपाशक घ्याकरणाचार्य -मुनि हेमचन्द्र विजय For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लेखक की कलम से भारत सरकार की हिंसा पोषक नीति के देखकर, मुझे अंतरवेदना जागृत हुई, और मैंने अपनी अंतरव्यथा को व्यक्त करने के लिए " देवनारका कतल खाना भारत के लिये कलंक रूप नामका निबंध लिखा । " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरे लिखने का आशय यही है कि भारतीय प्रजा इस निबंध से जागृत बनें, और एक स्वरसे इस हिंसक योजना का विरोध करे । इस निबंध को पूज्य गुरूदेव प्रशान्तमूर्ति विद्वद्वरत्न उपाध्याय श्रीमत् कैलाससागरजी महाराज की सत् प्रेरणा व शुभ आशिर्वाद से लिखपाया है, इसलिये मैं उनका ऋणि हैं । साथही इस निबंध के लिये पूज्य व्याकरणाचार्य विद्वत्वर्य मुनिराज श्री हेमचंद्रविजयजी महाराज ने अपना शुभ समय निकालकर जा " पुरोवचन" लिखने का कष्ट उठाया है, उसके लिये मैं उनका आभारी हूँ । समवसरण का वडा भावनगर (सौराष्ट्र) १-९-६३ मुझे आशाही नहीं अपितु विश्वास है कि जनता इस निबंध को पढकर लाभ उठायेगी, तथा अपनी आवाज राजनेताओं के कानतक पहुंचाकर देवनारकी हिंसक योजना का बंद करायेगी । तभी मैं अपने प्रयास का सफल मानूंगा । पू. गुरुदेवश्री कल्याण सागरजी महाराज का चरण रेणु -- मुनि पद्मसागर For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहिंसा परमो धर्मः ।। देवनारका कतलखाना भारतके लिए कलंक रूप। ऐसे तो भारत एक आध्यात्मिक एवं धर्म प्राण देश है। आध्यात्मिकता और धर्म का अगर कोई प्राण है तो वह अहिंसा ही है। अहिंसात्मक संस्कृति ही भारत की प्राचीनतम संस्कृति रही है। पश्चात् किन्ही अन्य कारणांसे नैसे कि-दुष्काल, स्वादलोलुपता, इष्ट वस्तुकी प्राप्ति हेतु पशु बली आदि के कारणों से इस देशमें मांसाहार का प्रचार हुआ। बादमें क्रमशः उसमें वृद्धि होती रही। विदेशी यात्रीयोंकी डायरीमें तत्कालीन भारत के विषय में बहुत कुछ लिखा हुआ मिलता है। उसमें मांसाहार करनेवाले व्यक्तियोंके विषयमें भी कुछ लिखा हुआ पाया जाता है। __ फाह्यान जिसने ई. स. ३९९ से १४ तक उत्तर भारतकी यात्रा की थी, अपनी डायरीमें लिखता है, "चांडालोंके सिवाय कोई भी व्यक्ति किसी भी जीवका वध नही करता है। न कोई मद्यपान ही करता है, और न काई जीवित पशुओंका व्यापार ही करता है।" जी. टी ह्रीलर द्वारा लि खत "भारत-वर्षका इतिहास" द्वीतिय भाग एन सांग अपनी डायरी में लिखना है कि “सम्राट हर्ष के प्रयत्म से भारत-वर्ष के पासके पाँचो द्वीपामें मांस भक्षण और पशुवध बंद हो गया था।" विश्व पर्यटक राम निवासी माकपाला-जिसने ई. स. १२६० से १२९५ तक भारत की यात्रा की थी, अपनी डायरीमें लिखता है कि-" चांडालोके सिवाय कोई भी व्यक्ति मांस आदि नहीं For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खाता है, कोईभी व्यक्ति जीवोंकी हत्या नहीं करता है। यदि किसीको पशु मांसकी जरुरत हो तो उसे अरब या दूसरे देशेांसे विदेशीयोंको बुलाकर पशुवध के लिए नौकर रखना पडता है।" आज जितना तो मांसाहारका प्रचार पूर्व में यहां नहीं थायह उपरोक्त बातोंको पढनेसे अच्छी तरह ज्ञात हो गया होगा। मांसाहारमें विशेष वृद्धि यवनों और आंग्लेोके शासन कालमें हुई। उन्होंने अपनी पाश्चात्य संस्कृतिकी नीव डालने के लिए इसे उपयुक्त साधन समझकर, जीव हिंसा और मांसाहारका पनपने दिया। भारतका जनमानस भी उस समय इतना जागृत व शसक्त नहीं था की उसका प्रबल विरोध कर सके। यद्द है मांसाहार और जीवहिंसा के पूर्व कारण । मानवका बड़प्पन कर और दयाहीन बनने में नहीं है। मानव कुदरतका सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, वही जो निर्दोष और मूगे पशुओंको मारकर खा जाय, अथवा उसे सताने और उस पर अमानुषी अत्याचार करने में रस ले तो उसका बडप्पन कहां रहा? मनुष्यका बड़प्पन कर, निष्ठुर, और दयाहीन बनने में नहीं है, परन्तु धर्मात्मा बनने में, प्राणी मात्रके प्रति प्रेम व दया एवं सहानुभूति पूर्ण व्यवहार रखने में है। वेद भी यही कहता है। "मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानी समीक्षे।" यजुवेंद. अर्थात्-सर्व प्राणीको मित्रवत् दृष्टि से देखो, चाहे वह मानव हो या पशु व पक्षी हो। आजका मानव स्वयंका ज्यादा सभ्य मानता है, परन्तु वही सभ्य मानवने आज संसारमें हिंसक वातावरण फैला रक्खा है। क्या यही उसकी सभ्यता है? मांसभक्षण ही हिंसाका मुख्य कारण है। आजकल विश्वमें मांसभक्षणकी प्रथा दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। भारत भी उस अंधानुकरणमें आगे बढ़ता जा रहा For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। बहुत दुःख और शोककी बात तो यह है, कि स्वयं अपनी केद्रीय सरकार भी खाराक और पौष्टिक मोजन की समस्या के हलके लिए, लेागों की आदतोंमे परिवर्तन कराकर मांसाहार को प्रोत्साहन दे रही है। मनुष्यका सहज स्वाभाविक भोजन मांस नहीं है। यदि वह स्वभावसे मांसाहारी होता तो उसकी शरीर रचना भी मांसाहारी पशुओंकी तरह होती, परन्तु वैसा नहीं है। बालक शिक्षा दीये बिना मांस नहीं खाता है क्योंकि उसको म्वभाव से ही उसमें प्रेम नहीं है। जबकी बिल्लीका बच्चा चूहेको देखकर तुरत उसे मारने के लिए दौड पडता हे, जब बालक ऐसा नहीं करता, क्योंकि उसका प्रेम स्वभाव से फलाहार की तरफ रहता है। जो लोग मांसाहारी नहीं होते हैं, वे लोग मांस देखना भी पसंद नहीं करते, क्योंकि उसे देखकर उन्हे अरुचि पदा होती है। सभ्य देशामे पशुवधके लिए एकांतमे बंद दिवालांवाला स्थान नियत होता है, और मांस आदिके दुकानों के लिए भी अलग व्यवस्था रहती है। उसके बिभत्स दृश्योंका गुप्त रखा जाता है। उसके विभत्स दृश्योंकी कल्पना मात्र मांस से घृणा कराने के लिए यथेष्ठ है। मांस स्वयं स्वादिष्ट नहीं होता ! मांस खानेमें खूब स्वादिष्ट बताया जाता है, किंतु मनुष्य प्रायः ज्यादातर वनस्पति खानेवाले जीवोंका ही मांस खाता है। उसमें वनस्पतिके तत्त्वो से स्वादिष्ट बनाने की प्रक्रिया नहीं होती तो वह स्वादिष्ट नहीं बनता, मांसाहारी मनुष्योंका सिंह, वाघ, कुत्ता आदि के मांससे क्यों स्वाभाविक अरुचि व घृणा पैदा होती है ? इसलिए कि वे स्वयं स्वभावतः शाकाहारी हैं। और शाकाहार के तत्त्वां के बिना मांस आन ददाई नही होता। आज चारों औरसे शुद्ध घी, दूध-नहीं मिलने की आवाज आती है। इसका कारण यही है-कि-प्रतिदिन हजारों की संख्यामें For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाय, बैल, बकरे, भेंड, आदि जीवांका वध कर दिया जाता है, अगर वे न काटे जाएं तो भारत में दूध, दही और घी को नहरें बहने लग जांए । आज यह कोई विचार नहीं करता है कि पशुओंका काट कर हम किस प्रकार दूध, घी प्राप्त कर सकेंगे ? पंडित मदनमोहन मालवियजीने एक स्थान पर लिखा है कि पहले राक्षसलोग मनुष्यका मांस खाते थे, अब मनुष्य पशुओंका खाते हैं, यह सबसे बडा पाप है । 66 93 इसी मांसाहार के संबन्धमें ऋषि दयानंद सरस्वतीने एक स्थान पर यहां तक लिख दिया है कि " है मांसाहारीयों ! जब अमुक समय के बाद पशु नहीं मिलेगे, तब तुम मनुष्यांचे मांस को भी नहीं छोडेंगे, क्या ? " मनुष्यको मांसाहार छोडकर अपनी मानवताका उदात्त परिचय देना चाहिये । मनुष्य हमेशा मांसाहारके उपर नहीं रह सकता । एक समय इग्लेंडमें एक प्रथा चली कि कोई खेती नहीं करेभेंड, बकरा, बल आदि पशुओंका पाला, जिससे पूर्णतया मांसाहार पर रहा जा सके, परन्तु यह प्रथा ज्यादा दिन नहीं चल सकी कारण कि मनुष्य सदा मांस पर जीवित नहीं रह सकता । तब फलाहार और दूध पर जीवन पर्यंत निर्वाह करनेवाले व्यक्ति आज भी मौजूद है। मनोरंजन के लिए जीवको दुःखी करना भयंकर कार्य है ! जिसके स्वाद, आर्थिक स्वार्थ, धार्मिक अंध विश्वास्त्र, शिकार, विलासिता और मनोरंजन के लिए आजके मानव को अपने हाथ पशु पक्षीयोंके रक्तसे रंगते हुए शर्म नहीं आती है । इसका एक उदाहरण आप पडेगे तो आपकी आंखे भी शर्म से नीची हो जाएगी। इग्ले डके एक भागके लोगोंने अपनी आबान For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भपनी आवाजको तेज करनेके लिए झींगूर (एक प्रकारका कीड़ा) का रस (शोरवा ) पीते थे । क्या यह विलासीताके शाखको पूर्ण करने की मूर्खता नहीं है ? क्या यह निर्दयतापूर्ण कार्य नहीं है ? आज ते। विवाह, जन्म में खुशी के अवसरों पर आमीष भोजन देनेकी एक प्रथासी चल गई हैं, आमीष मेोजन बिना तो पार्टी को अधूरा समझा जाता हैं । कितनी पाशविकता हमारे अंदर आ गई है। हम स्वयं अपने इतिहास को कलंकित कर रहे है। मांसाहारसे शराब पीनेकी आदत पड़ती है। डा. हेगका कहना है कि अफीन, कोकीन, और शराबकी तरह मांस भी उत्तेजक है। और जब उसकी आदत पडजाती है तब मनुष्य ज्यादा उत्तेजक पदार्थो की इच्छा करता है । और अंत में उसकी ऐसी दशा हो जाती है कि उत्तेजक पदार्थ भी उसे उत्तेजन नहीं दे सकता । परिणाम यह होता है कि-शिरदर्द, उदासीनता, निब लतासे वह ग्रसित हो जाता है। शराब छोडना है, तो मांस छोड दिजीये । मात्म-हत्याका कारण भी मांसाहार है। डो. हेगका कहना है, कि मांस ओर शराबके सेवनसे मनुष्यकी स्नायू इतनी कमजोर बन जाती हैं कि वह जीवन से निराश होकर आत्महत्या करनेके लिए भी उद्यत हो जाता है । उसकी विचार शक्ति भी नष्ट होती चली जाती है। इग्लेउमें ज्यादा आत्म-हत्याका कारण मांसाहारकोही ठह. राया गया है। मांस, मद्य, और मैथुन इन तीन चीजोंके सेवनसे मनुष्य का जीवन निराशामय बन जाता है । उपर्युक्त बातोंसे मांसाहार करनेका क्या परिणाम आता हैं, यह हम ही सोच ले ! यदि इन परिणामों से बचना हो तो मांसाहार हमें छोडना ही पडेगा। For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानव सब खा जाता है। मांस पर जीवित रहनेवाले पशुओंका भी आहारक्षेत्र परिमित होता है। सिंह आदि ज्यादातर बनचरोकोही खाता हे। मगरमच्छ जलचर जीवकोही ज्यादातर खाता है, परन्तु सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव-कुत्ता, बिल्ली, चूहा, सर्प, गिलेरी, मेड, बकरा, गाय, बैल, सूअर, मछली, कीडा, मकोडा सबकोउसका हानीलाम योग्यायोग्य का विचार किए विना ही पेटमें होम देता हैं । तब फिर मानव में और दानवमें अंतर ही कहां रहा? इस दृष्टिसे मानव पशुसेभी गया बीता हैं। मांसाहारके विरूद्ध डाक्टरोंका अभिप्राय । I. डाक्टरोंका कहना है-"मांसाहारीयोंको भोजन नली छोटी होती है और शाकाहारीयोंकी लंबी. फल और शाक की अपेक्षा मांस में जल्दी सडन पैदा हो जाती है. लंबी नलीमें मांस ज्यादा समय तक नहीं रह सकता है और अंदर सडन पैदा करता है, इसी लिये मांस अनेक रोगांको पदा करनेवाला अप्राकृतिक मोजन है।" 2 "मांसाहारसे बल नहींबढता है, किन्तु जो बल समझनेमें आता है वह केवल उत्तेजना मात्र है, मांसाहारी हृष्ट पुष्ट दिखाई देता है, क्षणिक पराक्रम भी दिखा सकता है, लेकिन वह स्थाई रूपसे पराक्रमका नहीं दिखा सकता।" डा. हेग. 3. " मांसाहार से आचार विचार पर तो प्रभाव पडताही है, परन्तु उसके भक्षणसे मानव-स्वास्थ्य परभी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मांसमें प्रोटीनकी मात्रा बहुत ज्यादा बताई जाती है, जिससे शरीर पुष्ट बनता है; एसे तो प्रोटीन शरीर की आवश्यकतानुसार शाकाहारसे उपलब्ध हो जाता है। जरूरत से ज्यादा प्रोटीन हानीकारक है।" For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -अमेरीकन येल युनिवर्सिटीके डो. रसेल एच. चिटिंडन. P. H. D कृत. फिजीयोलोजिकल एकोनमी." पुस्तक में से । 4. "जिस देशमें तथा जिसजातिमें जितनी अधिक मात्रामें मांस खाया जाता है, वहां उतनी अधिक मात्रामें केन्सरकी बिमारी पाई जाती हैं।" -डो. रसेल कृत 'सब जातीयोंकी शक्ति और खाराक " पुस्तकमेंसे । 5 " दोषवाला मांस खानेसे केन्सरकी बिमारी होती है।" -फ्रांस के डा. लक्सशैम फेनियर. 6. “ मांसाहार जैसे अमानुषिक भोजनका परिणाम जल्दी या देरसे स्वास्थ्य पर पडेगा ही, हृदय व मुत्राशय स्वकार्य करना छाडदे गे, और उसके फल स्वरूप क्षय, केन्सर, संधिवात, आदि रोग पैदा होंगे। -मेरी एस ब्राऊन कृत-"शाकाहारके पक्षमें युक्तियां' पुस्तकमेंसे। ___7. “मैं पैसे व्यक्तिको जानता हू', जिसने मांस खाना छोड दिया, उसके परिणाम स्वरूप वह स्वस्थ्य हो गया, कब्जियात, अपस्मार, संधिवात आदि रोगांसे मुक्त हो गया । मेरा दृढ विश्वास है कि-मांसाहारीयोंकी अपेक्षा शाकाहारी कम बिमार पडते हैं।" -डो. मेनरी परडो. 8. मांसमें युरिकगेस बहुत बनता है, और इस गेस से अनेक प्रकारकी बिमारीयाँ उत्पन्न होती हैं । मांस छोड देनेसे वे रोग दूर हो जाते हैं। - - डो. S. T क्लाउट्सन. M. D. १. डो हेग अपनी पुस्तक " डायट एण्ड फूड"-खाद्य पदार्थ और भोजन नामकी पुस्तक के पृष्ट १२९ में लिखते हैं कि For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "मांस भक्षण सुस्ती लाता है, उससे मस्तक, मांस पेशीयां, हड्डी तथा शरीरमें खून का दौरा कम पड़जाता है, इस प्रकार की जो न्यूनता चालही तो परिणाम में-स्वार्थवृत्ति, लोलुपता, कायरता, अधःपतन, हास, और आखिर में विनाश निश्चित है।" 1. मांस अनावश्यक अस्वाभाविक व अहितकर है। 2 अन्नसे कम पुष्टीकारक है। 3. दांतोकी सफेदी पर भी उसका कुप्रभाव पड़ता है। 4. आलस, भारीपन प्रातःकालीनथममें भी अरुचि उत्पन्न करता है। 5. मांस शराबपीना आदि समस्तदुर्गुणोंका आमंत्रित करता है। अनुभवहीन डॉक्टरांने मांसाहारको बढावा दिया । डोकटरोंके प्रयोगके लिए प्रतिवर्ष हजारेराजीवोंका मारा जाता है, अगर वे थोडी बुद्धिसे विचार करे तो उन्हे शात होजायेगा कि-जिस वनस्पतिको खाकर पशु, हृष्ट पुष्ट और बलवान बनते हैं। और फिर उसी पौष्टिक तत्व को उनके मांससे निकाल कर उसको दवाका रूप देते हैं, अगर वे सीधा वनस्पतीमेंसें ही वे पोष्टिकतत्व निकालनेका प्रयत्न करें तो इतने निषिजीकी हत्या तो न हो, और साथ ही जो मौषधीका दुष्प्रभाव पड़ता है वह भी न होने पाये। मांस देरसे पचता है। नीचेकी तालिकासे आपको झात हो जायेगा कि मांस, अन्न और शाकादिकी अपेक्षा देरसे पचता है। मोजनका नाम, किस प्रकार पकाया हुआ, पचनेका समय, चावल उकालकर पकाया हुआ, १ घंटा अनासपाती पका हुआ, For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भोजनका नाम जय टी दूध गोमांस मेंड, बकरेकामांस, शोरबा मूगेका गोस्त मछली सूअरका मांस www.kobatirth.org किस प्रकार पकाया हुआ सेक कर पकाया हुआ, " उकाल कर गरम किया हुआ, गरम करके पकाया हुआ वस्तुनाम गेहु गेहूं का आटा गेहूं का मैदा मसूर की दाल मूंग " " 93 " 13 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पचनेका समय २ घंटा ३॥ मांसाहार की उपयोगिता सूचक अनुक्रमणिका । ३.० २.६९ * ५।।। ३ ३॥ ४ મા For Private And Personal Use Only ५। ܙܕ "3 ०.५ X 99 x "9 शरीरका मुख्य भाग मांस जो शरीरमें ४२ प्रतिशत रहता हैं, और यह प्रोटिनसे बनता है, प्रोटीनसे शरीरको घडनेवाला कोश ( Cells) भी बनता है । चर्बी और कार्बोज शक्ति उत्पन्नकरता है । खनिज (नमक) हड्डीको बनाता है । इसी उद्देश्य से भोजन करनेमें आता है । .99 नीचेकी अनुक्रमणिकामें यह बताया गया है कि कौन कौन सी वस्तुओं में उपर्युक्त पांच पार्थ कितनी कितनी मात्रामेंरहती है । 99 " प्रोटीन चर्बी काबेजि खनिज पानी ११.४७ २.०४ ७०.९० ३.१४ ११.३ १०.७ १.१ ७२.४ ०.५ x ७.९ १.४ ७६.४ २५.४७ ५५.०३ २३.६९ ५३.४५ 99 x x x Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वस्तुका नाम उड़द : बदाम - मूंगफली गाय का दूध भैसका दूध करेका मांस www.kobatirth.org १० प्रोटीन: चर्बी. २२.३३ १.९५ २४.०० २७.५ ३.५ ६.११ १८.० गाय व बैलका मांस २०.० मूर्गे का मांस २२.७ अंडा ई ५४.० ४५.५ ४.०.. ७.४५ ५.०. १.५ ४.१ १६.१२ ३१.३९ काबेज ५५.२२ १०.० १५.७ ३.५ ४.१७ X ०.६ १.३ X Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खनिज X For Private And Personal Use Only पानी X ३.० ६.० २.५ ७.५ ०.७५ ८७.२५ ०.८५ ८१.४० १.० ७६० १.२ ७६.० १.१ ७०.४ १.०१ ५१.३ उपर्युक्त तालिका से तो यह सिद्ध होगया कि पौष्टिक पदार्थ सात्विक वस्तुओं में ज्यादा है। विज्ञानके नामपर अवैज्ञानिक कार्य: आजकी शिक्षित प्रजा वैज्ञानिकोंपर ज्यादा विश्वास रखती है । उनको अपने राष्ट्रका गौरव मानती है । जब किसी समय ऋषिमुनियांका राष्ट्रका प्रतीक मानाजाता था। उन्ही वैज्ञानिकां के अनुयाई आज ऐसे कई मिथ्यासक मांसाहार व जीव हिंसा लिए देते हैं, जैसे कि खाद्याभाव, कृषिको हानि पहुचाने, शारिरीक पुले, और वैज्ञानिक साधन एवं दवा आदिके लिए । परंतु इन. तर्कों में कुछ भी तथ्य नहीं है, अपने बचावका एकमात्र मिया बहाना है । पशु और मानवके मध्यके अंतरका जब विचार करेगे, तब ज्ञातहोगा कि आजके लोग कितने हद तक पाशविक वृत्तिसे ग्रसित हैं । अब उनके प्रश्नोंपर भी थोडा विचार एव दृष्टिपात कर लें। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम प्रश्न है खाद्याभाव :खाद्याभावके कारणोंका. जब आप सूक्ष्म विचार करेंगे, तब आपका ज्ञात होगा कि-खाद्योत्पादनमें पशुधन कितना उपयोगी है। भारत आज कामी धनाढ्य देश नहीं है, कि हर व्यक्ति ट्रेक्टर या अन्य यंत्र उपकरण आदि रख सके । दूसरीबात यह भी है कि यांत्रिक खेतीसे जमीनका रसकल भी मारा जाता है । कदाच यांत्रिक खेतीले प्रथम कुछ वर्षों के लिए. लाभ भले ही दीखलाई दे, परंतु बादमें उस भूमीमें पैदाबारी घट जाती है। कुछ कृषि विशेषज्ञोंका भी ऐसा ही मत है । साथही खेतीकें लिए अत्यन्त उपयोगी जो खाद पदार्थ है वह फिर कहांसे प्राप्त हो सकेगा ? जो गुण प्राकृतिक खादमें मिलेगा, वह काई कृषिमा खादमें थोडेही मिलसकेगा ? पशुओंकी.. रक्षासे ही आजकी खाद्य समस्या हल होसकती है...अन्य किन्ही उपायांसें नहीं । और इसी यत्रवाद और यंत्रीकरणके कारणोंसे ही ता.आज . लोगोंमें अकर्मण्यता और बेकारी बढ़ रही है। अगर इस समस्याका. हल करना है तो हिंसात्मक-यघवादको छोडकर.. गृहउद्योग आदि पर लक्ष देना पड़ेगा। तभी इस समस्याका हल हो सकता है। अन्यथा नहीं। अब दूसरा प्रश्न है कृषि को क्षति पहुंचानेका :यह प्रश्न भी गलत है। पहिले जन ऐसे साधनोंका आविष्कार नहीं हुआ था। उस समय भी लोग पेटभर खाना पाते थे । और यहांसे अन्यत्र खाद्यपदार्थ मेजे जाते. थे। उस समयके लोगोंने तो कभी ऐसी शिकायत नहीं की, कि हमारे कृषिको पशुओंके द्वारा क्षति पहुंचती है। अबतो उससे भी एक कदम आगे बढकर विद्यारे, क्षुद्र जीवजंतुओं तकका भी नहीं छोड़ते । विशामके नामपर. डी. डी. टीः आदि विषैली दवाओंका छिडकाव करके उनकामी नाश करदेते हैं। परंतु जरा सोचे-जब उन विप्रैली दवाओंका प्रभाष क्षुद्र जीवजन्तुओंपर पडसकता है, तोड़ा For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत उसका विषेला प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पडेगा ही। और उस विषले तत्वका अंश हमारे खाद्य पदार्थामें भी आयेगा। इसीका ही तो आज परिणाम यह है, कि दिनप्रतिदिन अनेक प्रकारकी बिमारियां बढ़ रही है, जिनका कि पहिले कभी नामो निशान तक नहीं था। बीचारे कीडे आदि क्षुद्र जीव तो कृषिविज्ञान के अनुसार हमारे लिए बडे उपयोगी जीव हैं । मिट्टीको वे मुलायम व कृषियोग्य बनाये रखते हैं। डी. डी. टी. आदि विषैले पदार्थ छींटकर तो हम अपने स्वयंका नुकसान कर बैठते हैं। बहुतसे वैज्ञानिकोंने भी विषैली दवाओंके छिडकावका विरोधकिया है, और कररहे हैं। इस प्रकार इनका यह प्रश्न भी भ्रमपूर्ण है । अब तीसरा प्रश्न हैं शरीर पुष्टी का :तो यहएक जामी-पहचानी बात है कि मानव शरीरकी रचनाको देखते हुए "मांस" मानवका प्राकृतिक आहार नहीं है। भयंकर तामसी एवं राक्षसी पदार्थ है। बिमारीयां व कुवासनाओं को आमंत्रित करनेवाला है, और अपनी जठराग्नि भी उसे पचाने में असमर्थ है। इस दृष्टीसे मानसिक पवित्रताका नाश करती है, क्रोधको बढानेवाला है, और विषय वासनाओंका उत्तेजित करनेवाला है । इसलिये भी वह मानवमोज्य वस्तु नहीं है । और फिर पशुके मांसका आहार भक्षण करनेसे मानवता थोडे ही मायेगी, पशुता ही आयेगी ! - जब वह आहार बिमारीको स्वयं आमंत्रित करता है, तब उसमें स्वयं कोई किसी प्रकारकी पौष्टिकता नहीं है, यह बातता भाप अच्छी तरहसे समझ गये होंगे ? जंगली प्राणीयोंमें भी जैसे गेडा, हाथी, जंगलीभैंसा आदि शाकाहारी हैं, फिर भी शक्तिमें सिंहसे कुछ आगे ही हैं । शरीरको रोगांसे दूर रखना For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है, बलिष्ठ बनना है, तो संयमी बनना पडेगा । और संयम तब ही सुरक्षित रह सकेगा, जवकि-आप पूर्णतया सात्त्विक और शाकाहार करेगे। ___ आहारके साथ संयमका और संयमके साथ शरीरका लबन्ध है। इसी लिये तो आज विदेशों में भी शाकाहार का प्रचार दिनोंदिन वढता जारहा है । और वैज्ञानिकांने भी उसकी उपयोगिता पर ध्यान देना शुरू करदिया ह। मांसाहार करने से बल नहीं बढता है। डो. हेगने एक पुस्तक लिखा है, जिसका नाम है Diet and food "पथ्य और मोजन " उसमें लिखा है, "मांसाहारी प्रथम शक्तिका अनुभव करता है, लेकिन बादमें वह तुरत थक जाता है, जब शाकाहारी अपनी शक्तिका प्रयोग शनैः शनैः करता है" उन्होने इस प्रकारके कहे उदाहरणों का उल्लेख किया है । I.१ जन १८९०में क्वेटा ( प. पाकिस्तान में एक अग्रेज सिपाहीयों के एक दल के मध्य रस्सी खेचने की म्पर्धा हुई थी, उस बात पर वे लिखते हैं कि-अंग्रेजोंके हाथ रस्सी खींचते हुए छिलजाते थे, और अंतमें वे रस्सी छोड देते थे, जबकि भारतीय सिपाही रस्सी खींचेही रहते थे। 2. बलिन (जर्मनी) में " शाकाहार का विजय" नामका शिर्षक वहां के "डेली न्यूझ" में छपाथा, जिसमें लिखा है कि “१४ मांसाहारी और ८ शाकाहारीयोंमें ७० मील पैदल चलनेकी स्पर्धा लगी थी। सब शाकाहारी आनदपूर्वक नियत स्थान पर पहिले ही पहुंच गये, जबकि मांसाहारी एक घटे पश्चात् नियत स्थान पर पहुंच पाये । मांसाहारीयों में से कई एक तो ३५ मील पारकरके वहीं पर ही बैठ गये ।" यह है मांसाहारी का बल! 3. मि. जे. ब्रेसन महोदय (इग्लेड) जिनकी उम्र ७० वर्षी है, और वे पूर्णतया शाकाहारी हैं, उन्होंने लडनके खाद्य प्रचार For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्मेलन में कहाथा कि " युद्धविभाग की और से मुझे आशा मिली कि सैनीकोंको शाकाहारी बनावें, मैं सायकल पर स्काट. लेंड इसीकार्य के लिए आया-मार्गमें मुझे आठ दिन लगे । मैं सैनिको के शाकाहारी बनानेके लिए शिक्षण देता रहा, इससे उनमें इतनी शक्ति आगई कि वे मकान बनानेके काममें आनेवाले बडे बडे पत्थरभी आसानी से उठालेते थे, और उनका स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा रहा।" 4. “लंडन वेजिटेरीअन एसोसिएसन" की सेक्रेटरी कुमारी एफ. इ. निकल्सनने सन् १९०५ में ६ महिने तक १० हजार बालकांका निरामिष भोजन कराया था, तथा “लउन काउन्टी कान्शिल" द्वारा उतने ही बालकांका आमीष मोजन कराया गया, ६ महिने पश्चात् दोनों दलों के बालकांका डोक्टरी परीक्षण कराया गया। जिसमें सिद्ध होगया कि-मांस खानेवाले बालकों की अपेक्षा शाकाहारी बालक अधिक स्वस्थ्य, और स्फूर्तिसपन्न पाए गये । तब से “लडन काउन्टी कौशिल" की प्रार्थना पर उसकी देखरेखके नीचे "लंडन वेजिटेरीयन एसोसिएसन" द्वारा लंडन के हजारों गरीब बालकोंका निरामिष भोजन दिया जाता है । इन उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट हो गया कि मांसाहार सेबल नहीं बढता है। इस प्रकार की मान्यता मात्र मिथ्या भ्रम है। चौथा प्रश्न है वैज्ञानिक साधन एवं दवाओंकी -: यह भी मानने जैसी बात नहीं है। बुद्धिका सदुपयोग नहीं करके आज इसका बड़ा ही दुरूपयोग किया जा रहा है, शायद ही कभी ऐसा हुआ हो! आज हम प्रत्यक्ष देख रहें है, कि वैज्ञानिक साधन हमारे लिए आशिर्वाद रूप हैं ? या अभिशाप रूप? अगर आपको विश्वाश न हो तो पूछीये उनसे जो द्वितीय विश्वयुद्ध की बलीबेदी पर चढ चूके हैं ! या रूस और अमेरीकाकी जनता से पूछिये, कि For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्या आपलोग सुखी हैं ? शांतिमें है ? वैज्ञानिक साधनांसे सजित आप अपनेको कैसा मानते है ? इस प्रश्न का उत्तर उनसे ही आपको मिल जायेगा कि विज्ञानके साधन विनाशके लिए हैं या विकाशके लिए ! इसी प्रकार आप हिंसाजन्य दवाओंका लें । उसके अंदर रहे हुए पदार्थोके नाम लेनेसे ही अपने का धृणा आती है । तब उस वस्तुका हम उपयोग कैसे कर सकते हैं ? और इन दवाओंकी प्रतिक्रिया भी खराब होती है । साथ ही यहां के जलवायू के प्रतिकूल भी हैं । बहुत से डॉक्टरेने ऐसी बहुत सी दवाओं का आविष्कार किया और उसका प्रयोग करके भी देखा, जब उसकी प्रतिक्रिया खराब नजर आई तो उसे बंद करदेना पड़ा। क्या यह किसीके जीवनके साथ खिलवाड नहीं है ? क्या उन की यह राक्षसी दिमागकी उपज नहीं हैं ? वैज्ञानिकों की खाज तो अपूर्ण है, और अपूर्ण ही रहेगी। एक ही बस्तुके लिए वे आज क्या कहते हैं, और कल उसी बस्तु के लिए वे क्या कहेंगे किसी को पता नहीं है । बादमें वैज्ञानिकोंमें मत 'क्यताका भी पूर्ण अभाव विद्यमान है । एक ही वस्तुतत्वके लिए कोई क्या कहता है, कोई क्या। मिन्न भिन्न विचार हैं। तब फिर हम उनपर ही क्यों विश्वास करें ! हम उनपर क्यों न विश्वास करें-पूर्व ऋषिमुनियों पर-जिनके विचारोंमें कभी भी अंतर नहीं आता । जिनका उपदेश यथार्थता से भराहुआ है । जिनके वचन में संदेह की गुंजाइश नहीं है । उनका छोड़कर फिर हम कयों इन अपूर्ण वैज्ञानिकांके बचनेका मान्य करें ? भौतिक विज्ञानके साथ जब तक आत्मविज्ञान नहीं सीखे गे, तबतक वैज्ञानिकों का विज्ञान अपूर्ण ही रहेगा ! पशु और मानव के हिंसाके उद्देश्यमें भी अन्तर है ! विचारे पशु दो ही कारणों से हिंसा करते हैं । एक स्व रक्षा For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (जब किसी ओर से उन्हे आक्रमणका भय रहता है) और दूसरा क्षुधा तृप्तिके लिए तब मानव शिर्फ दाइच जीभके लिए उत्तम सात्त्विक भोज्य पदार्थको छोडकर गदे मांसका भोजन करता है। पशुओंके पासतो हिंसाके साधन भी सिमीत है। पशुके पास तो नख, दांत, सींग, आदि हिंसाके माधन हैं, जबकि मानवने उसे मारनेके लिए अनेक प्रकार के साधन बना रक्खे हैं । पशु जब सामने आकर शिकार करता हैं तब मानव छिपकर दुष्ट बुद्धिसे शिकार करता है। परंतु पशुसे भी आगे एक कदम मानव कहलानेवाला व्यक्ति पाशविक वृत्तिके वश होकर, उसे राष्ट्रीय आंतर्राष्ट्रीय व्यापारका रूप देता है । इन वस्तुओं पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होजायेगा किहमारे अंदर कितने हदतक पाशविक वृत्ति आगई है। और इन उपरोक्त कारणोंको देखने से हमें मालूम होगया कि " पशुवध" करने का उद्देश्य क्या है। आज कितनी दानवता बढ़ गई है ! आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा ही हिंसाको जननी है ! आजकी पाश्चिमात्य शिक्षा भी इसी प्रकार की है, विद्यालयों में बच्चोंके कोमल और अपरिपक्व मस्तिष्क में विज्ञान के नाम पर ऐसी हिंसक बाते भर दी जाती हैं, जिनका परिणाम यह होता है कि, उनके अंदरसे धर्म भावना, और दयालुता के विचार चले जाते हैं । भविष्यमें वे एक निष्ठुर हृदयी नागरिक बनते हैं । हिंसक वृत्तिवाले बनते है । क्यों कि घर परते। उन्हे संस्कार मिल नहीं पाता हैं, और शाला या कालिजमें उन्हें विज्ञान के नाम पर वही हिंसक धाते सीखाई जाती है। अगर कोई व्यक्ति इन बातों का विरोध करे, तो आजके तथाकथित सभ्य कहलानेवाले व्यक्ति उसे असंस्कारी, और असभ्य कह कर संबोधित करेंगे ! आज इसीकारण से तो विश्वशांति नहीं होने पा रही है। कारण यही है कि सबका मांसाहारी और हिंसक For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनाकर सबके दिमाग और चित्तका भी हिंसक बना डाला है। जैसा आहार होगा, वैसाही विचार आयेगा, और फिर वर्तन भी उसी प्रकारका होगा । इस प्रकारके अखाद्य भक्षणसे फिर अहिंसाकी भावना, या विश्वमैत्री व शांतिकी भावना कहांसे आयेगी, क्रूरता और जड़ता ही आयेगी। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी जबतक आप हिंसाजन्य वस्तुओंका त्याग नहीं करेंगे, तबतक आपमें अहिंसक विचार नहीं आ सकते, अगर आपको स्वयंविकृत से सस्कृत बनना है तो सर्वथा जीव हिंसाका त्याग करनाही पडेगा। सरकार भी हिंसाको प्रेत्साहन दे रही है ! ___ आजकी सरकार भी इसे और प्रोत्साहन दे रही है। जोकि यहांकी संस्कृति व सभ्यता के लिए कालकूट विषके तुल्य है। हमारी सरकार जनसमुदायोंके विचारोंकी उपेक्षा कर रही है। अगर लोकतत्र को जीवित रखना है, तो जनताके विचारों का पादर करना होगा । जिन्होंने उन्हे अपना मत देकर विधान सभा या लोकसभामें मेजा है। वे उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए गये हैं, न कि स्वामित्व करनेके लिए गए हैं ! बे जनताको आवाजकी अवहेलना नहीं कर सकते । ___ अनेकवार जनताके विचारों एवं विरोधेका दमन किया गया है। हिंदु कोडबिल, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, आदि न जाने कितने कायदे कानून धर्म और संस्कृति के विरुद्ध पास करके अपनी मनमानी करने का उदाहरण दे देया है। अब तो और भी आगे मत्स्य, मूर्गि और मांस उद्योग मादि न जाने ऐसे कितनेही उद्योग इनके दिमाग में भरे पडे हैं ! ___क्या यही लोकत त्रीपना हैं ? क्या इससे लोगोंके दिलोंको और उनकी धर्मभावना को ठेस नहीं पहुंचती है ? अगर इसे ही हम लोकतत्रीशासन कहेंगे, तब फिर तानाशाही शासन किसे कहेंगे? For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूनावी सभामें तो खूब आश्वाशन दिया जाता है, परन्तु वे इन आश्वासनोका कितना पालन करते हैं, यह जनता आज अच्छी तरहसे समझने लग गई है ! राजनेताओं का लक्ष शिर्फ चुनाव तकही सिमीत रहता है ! राजस्थानमें कुछ दिनों पहिले एक सर्क्युलर ( आज्ञापत्र ) निकाला गया था, जिसमें आझादी गईथी कि हव्यक्ति को टिड्डी. (टी) मारना - पडेगा । अगर कोई नहीं मारेगा तो वह कानून से सजा का पात्र होगा। क्या यही धर्म निरपेक्ष कहलाने बाली सरकारकी धर्म निरपेक्षता है ? परंतु जो अहिंसा धर्म में विश्वास रखते हैं, वे तो फांसीके तख्ते पर भी चढ जायेंगे, परन्तु ऐसा अकृत कार्य, अधर्म तो नहीं करेंगे । जब उस आज्ञापत्रका खूब प्रतिकार हुआ, तब कुछ उसमें ढील दीगई, कारण यहथा कि इससे विरोधिनेता लाभ न उठालें । इनका जो भी कार्य होता है, उसका लक्ष चुनाव तक ही सिमीत रहता है । आगे चाहे कुछभी हो, उससे इन्हे कोई संबन्ध नहीं । इसी प्रकार जब बम्बई के समीप " देवनार" में आधुनिक तमयंत्र से सज्जित यांत्रिक 6< वधशाला " बनने जारही धी, तब उसका जबरदस्त प्रतिकार हुआ, और कुदरती पापादयवशात् चीनके साथ युद्ध छिड़ जानेसे कार्यको कुछ दिनों के लिये स्थगित कर दियागया । अब पुनः उस हिंसक योजनाको कार्या न्वित करनेके लिए प्रयत्न किया जारहा है । इसके विरोधका उत्तर वे इस प्रकार देते हैं कि देशकी योजनाओंकी पूर्तिके लिखे बिदेशी मुद्रा चाहिये । आज इस प्रकारकी हिंसासे, मूक पशुओं के रक्त और मांस से द्रव्य प्राप्तकर और वह द्रव्य जनता को खिलाकर जन मानसके मानसिक पवित्रका नाश किया जा रहा है । यह तो एक प्रकार से अनीति, भ्रष्टाचार और अनाचारके लिए राजमार्गका कार्य कर रहा है। जिस प्रकारका अन For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और द्रव्य मिलेगा उसी प्रकारके विचारांका निर्माण होगा ! अगर योजना पूर्ण करनी है, तो और भी अन्य कई सात्विक उपाय हैं । उसके लिए अल्प बचत योजनाका कार्यान्वित करें। सादाई पूर्ण जीवनयापन करें । बे फजुल खर्च बंद करदे, फिर एक पैसा भी बाहर से मंगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। बडे ही शर्म की बात है कि जहां क्रोडों अरबों का खर्च होता हो, वहां शिर्फ ३०-३५ लाख रुपये की वार्षिक आयके लिये जनताके विरोधेका सामना करके कार्य करना सरकारके लिए एक अद्रदर्शिता पूर्ण कार्य होगा। हिंसक योजनाएं राष्ट्रियता भी नहीं पनपने देगी और इन कार्यों से राष्ट्रीयता या भावनात्मक एकता भी नहीं पनपायेगी भारतीय ऋषि मुनियोंकी हम बहुत दुआई देते रहते हैं । क्या उन्होंने कहीं पर भी हिंसा का उपदेश दिया है ? क्या उन महा पुरुषांका यह वाक्य याद नहीं है ? " मा हिंस्यात् सर्व भूतानि '' किसी जीबकी हिंसा न करो, " आत्मवत् सर्व भूतेषु " अपने आत्म तुल्य सर्वजीवोंको समझा। क्या यह प्रार्थना याद नहीं है जो महात्मा गांधी प्रतिदिन किया करते थे। "वैष्णव जनतो तेने कहीये जे पीड़ पराई जाने रे । परदुःखतो उपकार करेताये मन अभिमान न आणे रे ।" इसी वस्तुको प्यासऋषिने इस प्रकार कहा है :"अष्टादश पुरानेषु व्यासस्य वचनद्वयम् , परोपकार पुण्याय, पापाय पर पीडनम् ॥ अठारह पुराणोंका सार इन दो वचनों में समावेश हो जाता है । परोपकार से पुण्य, और पर पीड़ा से पाप की प्राप्ती होती है। - अगर यह वाक्य याद न होतो-एक भारतीयताके नाते भी इसे याद करले ! जीवन व्यवहार में उतारे' । आज यह विचार For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूल रहे है, सत्ताके मदमें अहंकारके नशेमें । परन्तु याद रक्खें, अपनी संस्कृति या धर्म को नष्ट करके कोई भी देश जाती, या धर्म जिवित नही रह सकती हैं। अगर देशको आबाद बनाना है. और अपना आत्मविकाश करना है, तो अवश्य अपनी संस्कृति और धर्मको जीवित रखना होगा । और वह जीवित रहेगी संपूर्ण अहिंसाके व वहारिक पालनसे । धर्म प्राण देशके लिए बधशालाएं लांछनरूप हैं ! जहां पूर्व में हम विश्वको अहिंसा एवं सभ्यताका पाठ पढाते थे, वही आज हम हैं कि हरबात में दूसरोंका मूह ताकते हैं । वे आज सभ्य संस्कृत व व्यवहारिक कहलाते हैं, जबकी हम असभ्य असंस्कृत, घ अव्यवहारिक कहलाते हैं । कारण यहीकि हम अपनी संस्कृतिका अपनेही हाथों से खून कर रहे हैं । अब भी चेत जांय | वर्तमान में जो चीनके साथ तनाव चल रहा है, उसे देखते हुए और भी राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता हैं । सरकार अगर ऐसे अवसरों पर जनता के विरोधोंकी और दुर्लक्ष रहेगी तो वह एक अदूरदर्शिता सूचक कार्य होगा । ऐसी स्थितिमें सरकारको समस्त बधशालाए, मूगि उद्योग, मत्स्य उद्योग आदि हिंसक प्रवृत्तिको शीघ्रातिशीघ्र बंदकर देना चाहिये । जिससे राष्ट्रको अहिंसक समाजका बल भी प्राप्त हो। इससे राष्ट्रको एकांत लाभ ही होगा, नुकसान नहीं । इससे राष्ट्रीय एकतामें भी अभिवृद्धि ही होगी । मेरी भारत सरकार से यही निवेदन हैं कि इस प्रकारके राक्षसी योजनाओंका तथा आसुरीवृत्तिका त्याग कर देवी वृत्तिको हृदय में धारण करें; जिससे देश व प्रजाका कल्याण हो । साथही पुण्योपार्जन कर हमें भी संतोष प्रदान करें । For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ आर्यजनता भी इसका विरोध करे 1 प्राणीवधको देखकर जो अपना हृदय द्रविभूत न हो तो क्या हम मानव कहलाने के अधिकारी रहेगे ? अपनी मानवता के टिकाने के लिए मैं आर्य जनता से नम्र निवेदन करता हूं कि, इस प्रकार की वधशाला का तन, मन धनसे एकाकार होकर विरोध करें | परन्तु ठहरिये ! जरा सोच समझकर विरोध करीए ! आजकल के कई व्यक्ति वधशाला आदि का विरोध तो करते हैं । परन्तु अपनी वाकू पटुता से जनता को गुमराह भी करते हैं । बे करते हैं कि, आज मांसाहारीयों की संख्या दिनां दिन बढती जारही है, इस लिए हम इसे कानून द्वारा बंद नही करा सकते आदि 66 " जीवांकी भलेही हिंसा होती रहै, हम उसे देखते रहैं, मुंहसे उसके विरोधके लिए आवाज तक भी न निकालें । For Private And Personal Use Only और जीaint हिंसा प्रति उदासीन व उपेक्षित रहजाना यह कौनसी दया है, मालूम नहीं ? हमारी अहिंसा कोई मानव तकही सिमीत नही है सिमातीत है. प्राणी मात्र तक व्यापक है, और रहेगी । सर्व जीवांकी रक्षा के लिए हम प्रयत्न करेंगे । पूर्व में जहां एक एक क्षुद्र जीवों के लिए भी स्वप्राण अर्पण करने के बहुत से उदाहरण स्मृति पुराण आदि ग्रन्थों में पाये जाते हैं । वहां आज शिफ बोलने में भी हम इतने अनुहार बन गये हैं, क्या कहें कैसी दयनीय दशा हमारी बन चूकी है । हम विवेक रक्खे, जीवांकी अवगणना या उपेक्षा नहीं करें | अगर आप विरोध में आर्थिक योग नही दे सकते हैं तो कोई हर्ज नहीं - टाल्सटायने कहा है कि- "It does not Cost to be Kind " दयालु बनने में कोई पैसे की जरुरत नहीं हैं, आप तन मन वचन से भी विरोधमें सक्रिय योग दे सकते हैं । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुमतीकी जो बाते करते हैं-कि मांसाहारी दिनोदिन बढते जा रहे हैं, आदि-यह बात भी भ्रमपूर्ण है । अगर पूर्णतया अहिंसाका प्रचार व हिंसा का विरोध किया गया होता, तो आज इतने मांसाहारी न बनने पाते । मांसाहारी जन जब विरोध के कारणों से परिचित होते तो उनमें भी अवश्य मांसाहार छोडने की भावना पैदा होती ! आजका प्रत्यक्ष प्रमाण : __ आजका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि युरोपमें इसका व्यवस्थित प्रचार होने से वे लोग दिनोंदिन अधिक संख्यामें शाकाहारी बनते जारहे है । और हम विरोधके अभावमें मांसाहारी बनते जा रहे हैं। ___ " अब दूसरी बात यह रही कि इतने विशाल जन समुदाय का मांसाहार से कैसे छुड़ाया जाय ? संभवित नहीं है आदि..." यह तो कायरता पूर्ण भाषा हैं, और इसी प्रकारके कायरता सूचक शब्दों के कारण ही तो हम मांसाहार नहीं छुडा सके ! एक-एक महा पुरुषांके वचनों से जब क्रोडों व्यक्ति प्रभावित बन सकते हैं, उनके अनुयाई बन सकते है, उनकी बतलाइ आचरणाको यथेच्छा पूर्वक पालन भी कर सकते हैं । तब क्या हमारे में इतनी भी शक्ति नहीं कि हम ५-२५ को भी शाकाहारी या अहिंसक न बना सकें ? आज लाखों की संख्यामें भारतमें साधु संत है, अगर सभी साधु संत चाहै तो स्व उद्यम से भारतका पूर्णतया शाकाहारी बना सकते है। थोडा समय जरुर लगेगा, परन्तु संभवित जरुर है। हम कानूनका भी परिवर्तन करा सकते हैं । अब रहा बहुमत और कानून का प्रश्न-तो यह भी काई खास बात नहीं है। अभी हाल ही की बात हैं पंजाब सरकारने एक For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ सर्कुलर (आदेशपत्र ) निकाल कर जाहिर कियाथा कि, "पजाब के हर विद्यालयों में दुपहरी के लिए बच्चों को १-१ अंडे दिए जांए"। हांला कि पजाब में मांसाहारीयोंका बहुमत है, फिर भी जब इस बात का व्यवस्थित विरोध हुआ, तब पंजाब सरकारका झूक जाना पड़ा। और अ डे की जगह फल और दूधका प्रबन्ध करना पडा । यह कसे हुआ? वहां तो शाकाहारी अल्प संख्यक. ही है । सब कुछ हो सकता है, मनोबल आर कार्य करने की शुद्ध निष्ठा चाहिये । क्या भारत और पाकिस्तान का विभाजन बहुमत के वाधार पर हुआ था ? दूसरा उदाहरण लें भारत पाक विभाजनका, दोनों देशांका विभाजन किस बाधार पर हुआ था, बहुमती के आधार पर ? विभाजनका मांग बहुमतबालेांने कियाथा या अल्प मत वालोंने ? ४० क्रोड व्यक्तियों व उनके दिलोंको दुःख पहुचाकर के ८ क्रोड व्यक्तियों ने पाकिस्तान बनालिया कि नहीं । बहुमत वाले उस समय कुछ कर सके ? या सत्ता ग्रहण करने वाले ही कुछ प्रतिकार उठा सके ? आखीर विभाजन मान्य करनाही पडा। क्यों कि उनके अंदर कुछ कार्य कर छुटने की निष्ठाथी कर बठे। हम देखते ही रह गये, अगर वे भी इसी प्रकार बहुमती की कायरता पूर्ण बाते करते तो क्या पाकिस्तान बना पाते ? हरगीज नहीं। गौहत्या किसके लिए ? आज भी जो गौहत्या होरही है वह क्या बहुमतवालांके लिए हो रही हैं ? ४० क्रोड व्यक्तियोंकी भावना को ठुकराकर, शिर्फ ४ कोडव्यक्तियों की तुष्टि के लिये ही गौवध किया जा रहा हैं । जीव रक्षाके लिए उपदेश देने वालेका साम्प्रदायिक व्यक्ति कहाजाता है। For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसा क्यों हो रहा है ? बहुमत तो उसका विरोधी है। अगर आज आप जाग्रत है, सशक्त हैं, और कुछ कत्तव्य निष्ठा अगर आप में हैं तो अवश्य आप किसी भी कार्य में सफलीभूत हो सकते हैं। हम कम नहीं है मानसिक दुर्बलताको त्यागे ! आज तो हमें इस बात का गर्व हैं, कि इतना उतार चढाव देखने पर भी पाश्चात्य शिक्षा पाने पर भी हम बहुत बड़ी संख्यामें विद्यमान हैं, आबाद है । अगर हममें संगठन होगाजैसा कि स्मृतिकारोंने कहा हैं, "संघे शक्ति कलौ युगे" कली. युगमें संघ शक्ति ही बलवान है, श्रेष्ठतम शक्ति है। तो हम सब कुछ कर और करा सकते है, कानून भी परिवर्तित करा सकते हैं । परन्तु ऐसे कायरता सूचक व उपेक्षा पूर्ण भाषणोंसे या लेखां से नहीं। सच्ची कत्तव्य निष्ठा, अर्पण बुद्धि, और अहिंसक विचारोंसे कर सकते हैं। हम अपने नागरिक अधिकारकी रक्षा करें ! भारतीय संविधान में अल्प संख्यकों को अपने हितों के स रक्षण का अधिकार दिया गया हैं । क्या न उस अधिकार का हम उपयोग करें। जबकी ४० कोड व्यक्तियोंकी उपेक्षा करके शिर्फ ४ कोड व्यक्तियोंकी तुष्टी के लिए गौ आदि पशुओंकी हिंसा की जा सकती है, तो हमें भी अधिकार है, पूर्णतया कि जीव हिंसा बंद करादें। कुछ देरके लिए भलेही मांसाहारीयों को दुःख होगा, परन्तु इस दुःख मे भी उनके लिए एकांत लाभ निहित है । और जब वे इसकी वास्तविकता से परिचित होगें तब वे स्वयं ही इस घोर हिंसा का विरोध करेंगे। For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसारमें तो अधार्मिक ही ज्यादा मिलेंगे ! संसार में तो हमेशा से ही बहुमत वालेका अधर्म और अकर्तव्य की और प्रवृति रही है, और है । तो क्या उनकी बहुमती देखकर उन्हे वैसेही रहने दियाजाय ? नहीं, सज्जन और संत पुरुषांका यही तो कार्य है कि उनका सत् प्रवृत्ति की और ढालें, उनके जीवन के विकाश में पथ प्रदर्शक बनें । “सान्धोति स्वपर हितानि कार्याणि इति साधु" अपना और दूसरोंका दोनो के हित के लिए जो कार्य करें वही साधु हैं। अगर संत पुरुष ही उन्हे उपेक्षित दृष्टि से देखेंगे, तब तो वे स्वयं ही दोष पात्र बन जायेगे। इस प्रकार उपरोक्त भ्रमपूर्ण भाषणों व लेखां की और ध्यान न देकर, जीव हिंसा का विरोध करें। उसके लिए चाहे कितनाही मूल्य क्यों न चुकाना पडे हमेशा तत्पर रहैं । मानसिक दुर्बलता को त्यागे, जाग्रत व सशक्त बने । खडे होजायें विरोध के लिए. परोपकार के लिए जो शरीर, घन आदि सामग्री प्राप्त हुई है, उसका सदुपयोग करें। इस विषय में एक ऊर्दू कविने कहा है :“मरना भला है उसका, जो जीता है खुदके लिए, और जीना भला है उसका, जो जीता है, औरों के लिए।" वही वास्तविक जीवन है जो औरों के काम आता हो। आपभी दूसरों के लिए जीना सीखें, और परोपकार रत बने । विश्व के सर्व धर्माने अहिंसा को मान्यता दी है ! अहिंसा धर्म का प्राण है, यह सभी घर्मा ने माना है। अहिंसा का आज व्यवहारिक पालन नहीं होने से ही तो इतनी For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अराजकता फैली हुई है। आज इस शद्वका लोग मनमानी अर्थ करके विश्वको धेाके में डाल रहे हैं । आजते। शांति के लिए अशांति, अहिंसा के लिए हिंसा, हो रही है। जब आप निम्न लिखित धर्मग्रन्थोंके सार को पढेगें, तब आप स्वयं समझ आयेगे कि पशु हिंसा करके, उन्हें दुख पहुंचा करके कभी भी हम शांति और सुखका अनुभव नहीं कर सकेगे । उनकी हाय कभी निष्फल नहीं जायेगी। आपका अगर इह लौकिक व पारलौकिक सुख प्राप्त करना है, आत्मतत्व का विशुद्धिकरण करना है तो इन धर्म वाक्यों को जीवन और आचरणमें उतारे। जैन दर्शन भगवान महावीरका पहला उपदेश यही है " सव्वे जीवा न हन्तव्वा " Live and let live " जीओ और जीने दो, प्रभु महावीर ने तो यहां तक कहा है कि “दानाण सेढ अभयप्पहाण" सर्व दानेमें श्रेष्ठ अभयदान ही है। स्वयं प्रभु के दिक्षा के पश्चात् जो उन पर घोर उपसर्ग हुए उस समय भी प्रभु अपने विचारों और अनों से चलाय मान नहीं हुए। उनका यही उपदेश था "सव्वे जीवाविच्छन्ति जीविऊ न मरिजिऊ" सर्व जीव जीनेकी इच्छा रखते है, किसी को भी मरण प्रिय नही हैं । फिर क्या अधिकार है कि हम उनकी हत्या करें। एक अंग्रेज विद्वान के श द्वो में यही बात देखिये "What you can not give life to any Creature you should not take. जब आप किसीको जीवन नहीं दे सकते तो उसे लेने का भी आपको अधिकार नहीं हैं। वेदान्त दर्शन सर्वे वेदान तत् कुयुः सर्वे यज्ञान भारत; सर्वे तीर्थाभिषेकाच, यत् कुर्यात् प्राणिनांदया। For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 2 3 5 www.kobatirth.org २७ सर्ववेद, सर्वयज्ञ, तथा सर्व एक प्राणी के दया के तुल्य में और भी लिखा है । .. तिल सर्व मात्र तु यो मासं भक्षये नरः । स याति नरक घेोरं, यावश्चंद्र दिवाकरौ ॥ महाभारत तिल और सर्पव मात्र भी अगर मांस का भक्षण करे, तो वह नर्कगामी होता है । तीर्थों का अभिषेक भी नहीं आ सकता । बागे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "> मनुष्य और पशुओं का न मार । यजुर्वेद १६-३. पशुओं की रक्षा • हे पुरुषों और नारीयों तुम दोनों यजुर्वेद. करो. " " जो मनुष्य, मानव, घोड़ा या से तृप्त होता है, जो मनुष्य जो प्रजाको दूध से वंचित राजा ऐसे मनुष्य को कठोर चाहिये । अथर्ववेद ५-३-२५. अन्य पशु पंक्षी के मांस अबध्य गौ को मारता है, रखता है, हे अग्नि ! और दंड या मृत्यू दंड देना और भी अनेक ऋषि मुनियोंने अपने आत्म कल्याण के लिए अहिंसा का पालन किया है, ऐसे बहुत से उदाहरण वेदान्त दर्शन में पाये जाते हैं। शिवी कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर को डाला था । क्यों कि वह जानते थे कि " Life is to all " " सबको अपना प्राण प्यारा होता है । कसोटी के अवसर पर भी वे खरे उतरे । राजाने तो एक ही अर्पण कर dear " ऐसे बौद्ध दर्शन भगवान बुद्ध ने ग्रहस्थ अवस्थामें तीर लगे हुए हंस के प्रति दया प्रगट की थी, और दिक्षीत होने के पश्चात् उन्ही के शिष्य देवदत्त ने एक समय उनके पाँव पर एक बड़ा पथ्थर फेंका, For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिसके कारण उन्हें काफी चोट लगी, फिर भी अपकारी के प्रति उपकार दृष्टि रखते हुए, बुद्धने उस पर दया की और अन्य शिष्यों को समझाकर, देवदत्त का मरने से बचाया। पीटक, जातक आदि बौद्ध ग्रन्थो में ऐसे बहुत से दयालुताके उदाहरण पाये जाते हैं। दयालुता के विषय में एक लेखकने यहां तक लिखा है कि-" Peradise is open to all kind hearts" " दयालु आत्मा के लिए स्वर्गका दरवाजा सदा खुला रहता है।" इस्लाम W । मुशलमान ईश्वरको रहीमान कहते हैं, इसका अर्थ है दयालु, इनके मजहब में ४० दिन की एक धर्मक्रिया होती है, जिसको "सिल्ला" कहते हैं । सिल्लामें बैठने वाले व्यक्ति किसी भी प्रकारका मांस नहीं खाते, उसका कारण यह है कि मांस (नजीस) खराब पदार्थ होनेसे खुदाकी बंदगी में खलल पहुंचाता है।" "जब वे लोग (सालेसरीअन) में से (तरकीत ) में प्रवेश करते हैं तव वे तुरत मांस का त्याग करदेते हैं ।" “पैगंबर हजरत महम्मदनबी साहब ने एक स्थान पर लिखा है कि"फलातज अलुबूतु तकुम मकाबरल हयवानात" अर्थात्-तू पशुपक्षीयोका कबर अपने पेटमें मत करना । 4 कुराने शरीफके सुरा अन आम, आयात-१४२में खुदाने कहाहै कि-बमिनल अन बामे हमूलवत वफर्शा कुल मिम्मा रजक कुमुल्ला हो" अर्थात्-" अल्लाहने चोपगे जानवर सामान ढाने के लिए पैदा किए है, और वनस्पती व अनाज खाने के लिए For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 5 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ उत्पन्न कीए हैं, वे - वनस्पती और अनाज तुम खाओ । yo स्वयं मुहम्मद पैगंबर साहब एकबार जब नदी में स्नान कर रहे थे तब उसमें डूबते हुए एक विच्छुके। उन्होने बचाया था । बिच्छु के बारंबार डंक देने पर भी उसे नदी में से बाहर निकाल ही दिया, जब उनके शिष्यों में से एकने कहा कि, "जब यह बिच्छु बारबार आपके हाथमें डंक मार रहा है, तो इसे डूबने ही दिजीये" तव पैग बर साहबने यही कहा कि, "यह यशु होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता हैं, तब हम तो मानव हैं, अपना सहज स्वभाव जा दयालुता का है वह क्यें। छोडे । "" मानवका मन आज विकृत बन गया है, महापुरुषोंके वचनोंका मनमानी अर्थ करके विश्वमें अशांति को बढावा देरहा है । तभीता आज हम सब दुःखी हैं ? महम्मद पैंगबर साहब इ. स. ५७० में जन्मे थे, ६०२ में अपना मत चलाया, और कुरान की रचना की कुरानकी सरी-अन-आम में लिखा है “कि खून, सूअर का - मांस, मौत से मरे हुए का मांस, मूर्ति के आगे बली दीप हुए पशुओंका मांस घात करके मारे हुए प्राणी का मांस, कोई दूसरे प्राणी द्वारा वध किए हुए का मांस नहीं खाना ।” 7 कुरान के सुराउलमायद, सिपार ४ मंजल २ आयात ३ में लिखा है- " मक्का के हृदमें कोई किसी जानवर का शिकार नहीं करें, कोई भूल से शिकार करे तो उसे अपना जानवर वहां दे देना चाहिये, अथवा उसकी किस्मत लेकर गरीबों को खिला देना चाहिये । "" इससे स्पष्ट होगया होगा कि मुश्लिम मजहब में भी मांस से परहेज रखने की आज्ञा दी गई है । For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 5 www.kobatirth.org ३० << इसाई : जब लार्ड काइट का शुली पर चढाया गया था, उस समय उन्होंने यही कहा था कि “Thou shall not kill. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईश्वर इन्हे क्षमा करना, ये अज्ञानी है एक गाय या बैल को मारना एक मनुष्य का वध करने के तुल्य है, एक स्त्रीको मारना वह एक कुत्ताका गला काटने के समान है । ( इसाईयत ) 3 मैं न तो घर से बैल लूंगा, म तुम्हारी पशुशाला में से बकराही लूंगा, कारण कि वनमें रहनेवाले जीवजन्तु और पहाड़ों पर रहनेवाले हजारों पशु सब हमारे हैं,... परमेश्वर को धन्यवादरूपी बली चढाना......! " ( बाईबल स्तोत्र संहिता ) ईश्वरकी प्रथम आज्ञा यह है कि जबतक प्रकाश है, तबतक काम करो, और जबतक श्वास है सबतक दयाका पालन करो | ( रस्किन) पशुओंका खाओ मत, उसी प्रकार उसका शिकार भी न करो यही हमारा और कुदरत का नेक धर्म हैं । ( फिरदौसी ) For Private And Personal Use Only एस समय लंडनमें विश्व विक्षात नोबल पारितोषिक विजेता ज्यार्ज बर्नाडशा के सम्मान में एक मेोजन समार भका आयोजन किया गया था, उस समारंभ में मांस से बनी हुई अनेक प्रकारकी चीजें भी थीं, ज्योर्ज बर्नाडशा ने उपस्थित सज्जनोंको संबोधित Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ करते हुए उस समय कहाकि-" My dear friends, My abdomen is not burving place for dead bodies,” अर्थात मेरा पेट कोई इन मूको दाटनेका कबरस्तान नहीं है।” आगे उन्होंने कहा कि जबतक पशु हिंसा हाती रहेगी तबतक विश्वशांति असंभवित हैं, विश्वशांतिके लिये पशुवध शीघ्र बंद करदेना चाहिये, कारण कि पशुहिंसा से करता बढती है, और वही क्रूरता विश्वयुद्धों को जगाती है ।" इस प्रकार से सभी धर्मचार्या ने एक स्वर से अहि साकी पुष्टी की है। परन्तु अफसोस हैं कि आज इसका व्यवहारिक व क्रियात्मक रूप से पालन नहीं हो रहा है । इसी लिये हमारी अहिंसा आज निस्तेज दिखलाई देरही है। मनसा, वचसा, कर्मणा त्रिकरण शुद्धिपूर्वक अगर हम उसका पालन करेंगे, तो अवश्य मेव आत्मिक बल एवं अखड शांति प्राप्त होगी। मैं साशनदेव से हार्दिक प्रार्थना करता हूं कि इस प्रकारकी जीवहिंसा, कतलखाना, और मांसाहारके विरोधके लिए सबको आत्मबल प्रदान करे । विश्वके समस्त प्राणीयोंको सद्बुद्धि प्रदान करें। हमारी अंतिम इच्छा :हमारी अंतिम यही हार्दिक इच्छा है कि,-विश्वमें सम्पूर्ण जीव हिंसा बंद होजाय, और पूर्णरूपसे अहिंसक साम्राज्यकी स्थापना हो । जयवीर । ॐ शांति: - देवनार कतलखाना विरोधी भावनगरकी जनताका जाहिर प्रस्ताव देवनार कतलखानाके विरोध भावनगरकी सामाजिक, सांस्कारिक, और धार्मिक संस्थाएं व आम जनता के सहकार से दिनांक For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ २८-७-६३ रविवार के दिन श्री कृष्णकुमारसिंहजी टाऊनहोलमें एक विराट सभा मिलीथी । पूज्य जैनाचार्य श्री मेरुप्रभसूरिजी महाराज और उपाध्याय श्री कैलाससागरजी महाराज ने जीवदया के विषय पर प्रेरक व मननीय प्रवचन कियाथा । पश्चात् सनातनधर्म महासभा के प्रमुख श्री नारणजीभाई सांगाणी ने कतलखाने बंद होने चाहिये और प्राणी हिंसा सदाके लिये बंदहोनी चाहिये इस विषय पर अपने मन्तव्य व्यक्त कियेथे । श्री जसव ंतराय रावलने भी भारतीय संस्कृति का ख्याल देते हुए भगवान कृष्ण, भगवान महावीर, भ. बुद्ध व महात्मागांधीजी के जीवरक्षा विषयक जो बोध थे उसपर जोर देकर जीवहिंसा कतईबंद होजाय, उसके लिये अपने विचार प्रगट किये थे । तद् पश्चात् स्वामी श्री अतुलानदीने उपर्युक्त विषयों का समावेश करते हुए प्रेरणात्मक प्रवचन कियाथा, और जनतामें धर्म की रक्षा केलिये जागृति का उदय हो तथा किस प्रकारसे जीव हिंसा बंद होसके उसके लिये मार्ग दर्शन भी दियाथा । उसके बाद रमणिकलाल मागीलाल शाह ( बकुभाई) की और से देवनार कतलखाना के विरोध का प्रस्ताव पेश करने में आयाथा, और उस प्रस्ताव को श्री रामरायभाई वकील, शाह जीवनलाल गोरधनदास, और श्री बालकृष्ण शुकने प्रासंगिक प्रवचन के साथ समर्थित कियाथा। साथही सर्वानुमत से पसारित किये हुए प्रस्तावके बाद श्रीगिरधरभाई वासाणीने देवनार कत नाना विरोधी जीवदया कमेटी की कार्यवाही की रूपरेखा दी थी, और सबका आभार व्यक्त किया था । दिनांक २८-७-६३ के दिन भावनगर टाऊन हालमें देवनार कतलखाने का विरोध करनेके लिये शहरनिवासी जनोंकी जाहिर सभाका प्रस्ताव : दया करुणा और अनुकपाके प्रेरकतत्वोंसे निर्मित अपनी भारतीय संस्कृति के मूल में कुठाराघात करती भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार और बम्बई म्युनिसिपल को पेरेिशन की देवनार For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कतलखाना योजना को मानको भावनगरकी जाहिर सभा सख्त विरोध करती है। निर्दोष मूगे प्राणीयों को मारकर उसके चर्म, मांस और अस्थि आदि विदेशो में बेचकर द्रव्य सम्पादन करने की और विदेशी हुडियां प्राप्त करने को अव्यवहारिक व पापा. चारी योजना से भावनगर की जनता बहुत दुःख का अनुभव करती है। भारतकी अति प्रसिद्ध सत्य, अहिंसा की नीति के अंचलमें इस प्रकार की भय कर हिंसात्मक व खतरनाक योजनाएं सारे देश के-लिये कलंक रूप है। आजादी प्राप्त होने के बाद स्व. महात्मा गांधीजीकी रामराज्य स्थापन करने की तीव महेच्छा थी. किली का जीव दुभाय वैसा वे इच्छते नथे, प्राणी मात्रका रक्षण होना चाहिये ऐसी उनकी दृढ मान्यता थी । आज अपने राष्ट्रपिताकी उस पवित्र भावना पर, और अपनी नसनस में ओतप्रेत बनी हुई जीवदया की भावना पर आघातजन्य जेा घाव हो रहै हैं. उसकेलिये सम्पूर्ण देश की जनता अब जागृत बनी हैं । इस प्रकारकी राक्षसी, वृत्ति को रोकने के लिये जनता अपना कर्तव्य समझकर विरोध प्रदिर्शित करती है। यह सभा भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार का ध्यान खींचती है कि । भारतवासी गाय आदि परमेोपयोगी प्राणी हैयही नहीं मानती किंतु साथसाथ गायको सर्वदेव मयी विश्वकी माता, वृषभका पिता के समानदेव, और अन्यजीवोंको आत्मवत् मानती है। सरकार अपनी निश्चित को हुई नीति और शासन विधान (Contritution ) की अवगणना करके इस प्रकार के घोर हिंसाजन्य कतलखाना को खड़ा करने का विचार करके, अहिंसाप्रिय सहिष्णु लोगों के दिलमें भयंकर आघात पहुचाने को तैयार हुई है। यह सचमुच अत्यन्त शर्मजनक कृत्य है । For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ‘भारतवासीयोंकी भावना की अवगणना करके यांत्रिक कतल. खाना बांधने की योजना जो सरकारने बनाई है, वह लोकशाही के विरुद्ध निष्ठुर, अव्यवहारिक, और लजा जनक कार्य है । भारत वासीयोंका प्रचण्ड विरोध जगने से पहिले ही इस योजना को छोउकर जनता जनार्दनकी विन तिको सरकार सतोष प्रदान करेगी, और महात्मा गांधीजीके पवित्र आदेशको “जीओ और जीने दो" की नीति को अपनायेगी । पेसी आजकी सभा विनति करती है। देवनार कतलखाना विरोधी जीवदया कमेटी उडीवखार, भावनगर ता. २८-७-६३, (सौराष्ट्र) For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रचण्ड सभा द्वारा घोर विरोध ! देवनार कतलखाना के निषेधार्थ भावनगर के नागरिकों की सम्पूर्ण हडताल, विराट जलूस तथा श्रीयुत सांगाणीजी का अतीव मननीय भाषण !! देवनार में होनेवाले भयंकर यांत्रिक कतलखाना के सम्बन्ध में अपना तीव्र विरोध और सख्त नापसन्दगी प्रदर्शित करने के लिये भावनगर के नागरिकांने ता. ४-१०-६२ गुरुवार को सारे शहर में सम्पूर्ण हड़ताल मनायी और नगर के खास-खास बाजारों में विराट् जलूस घुमाकर टाउन होल में श्री मुकुटलाल कामदार की अध्यक्षता में एक प्रचंड सभा का आयोजन किया गया। सभा में बीस हजार से भी अधिक अनताकी उपस्थिति में श्रीयुत नारायणजी पुरुषोत्तम सांगाणी ने एक निम्नलिखित अति महत्वपूर्ण प्रस्ताव उपस्थित किया। और श्री रामराय देसाई के अनुमोदन तथा श्री रविशकर जोशी और श्री गीरधरलाल श्यामजी के समर्थन से सर्वानुमति से स्वीकृत किया गया। प्रस्ताव का स्वरूप : भावनगर के नागरिकों की टाउन होल में एकत्रित यह विरार सभा भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार तथा बम्बई म्युनिसिपल कारपोरेशन द्वारा देवनारमें करिब दो करोड रुपयोंके व्ययसे १२६ पकड भूमिमें एक भयङ्कर यांत्रिक कतलखाना स्थापित किया जा रहा है। जिसमें गायों, बैलेंा, भैसों, मेंडो, बकरियों तथा सूअरआदि प्राणियों का नित्य प्रति छ घन्टों में ६५०० की संख्या में काल हो सके और उन प्राणियों का मांस, खून, हड्डी चमडा, For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरबी, जीभ तथा आंते' आदि अङ्ग उपाङ्गो के पार से करेडे। रुपया पैदा हो सके ऐसी विनाशक भयंकर रोमांचकारी योजना तैयार की हैं उसके प्रति घोर घृणा पव तिरस्कारपूर्ण दृष्टि से देखती है और उसका तीव्र विरोध करती है। यह सभा भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकारका ध्यान उस ओर आकृष्ट करना चाहती है कि भारतीय प्रजा गायों, बैलों तथा भैसो आदि प्राणी केवल दूध, दही, घी, मक्खन, मट्ठा और गोबर देने वाले तथा अनाज उत्पन्न कर लोगों को जीवन प्रदान करने वाले है, इतना ही नहीं किन्तु गायों का सर्वदेवमयी विश्व की जननी और वृषभ को पिता समान देव तथा इतर जीवेंा को अपनी आत्मा के समान मानती है । भारत सरकार भी ऐसी उच्चतम भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यता के कारण अहिंसा और पंचशील के सिद्धान्तों को स्वीकार कर गर्व का अनुभव करती है । फिर भी सरकार अपने निश्चित ध्येय और शासन विधान का अनादर कर पेसे भयकर कतलखाना खड़ा कर घार हिंसा द्वारा अहिंसाप्रिय सहिष्णुलेोगों के हृदय का भय कर. आघात पहुंचा रही है यह अत्यंत खेद एवं लज्जाका विषय है गायो, बला तथा अन्य उपयोगी प्राणियों का बध कानून द्वारा सर्वथा बन्द करें ऐसी आग्रह पूर्ण मांग आज अनेक वर्षों से प्रजा करती आ रही है, उस मांग को स्वीकार करने के बजाय सरकार कुछ बचे बचाये गायों बैलों का भी सर्वथा संहार हो जाय ऐसा मार्ग ग्रहण कर रही है, जिसमें भारत और भारत की प्रजा उन जीवों के आधार से जीवित रह सकी है वह मी नि:सन्देह समाप्त हो जायगी । ऐसी भीषण परिस्थितिमें गायों बैलों को धार्मिक दृष्टि से पूज्य मानने वाली भारत की चालीस करोड हिन्दू जनता ऐसे मयंकर हिंसाजन्य कृत्य को देखकर For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उश्केराहट आर आवेश में आकर चाहे जिस प्रकार उस कतलखाना को बनने से रोकने के लिये कटिबद्ध हो जाय और देश भर में भय कर क्षोभ एवं अशान्ति उत्पन्न कर दें यह किसी प्रकार भी वांग्छनीय नहीं है । अतः वह सभा उस दुःखद स्थिति को रोकने के लिये भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार, बम्बई म्युनिसिपल कारपोरेशन और सब देश हितैषी सजनों से साग्रह अनुरोध करती है कि दुराग्रह का त्याग कर इस प्रजातन्त्र राज्य में प्रजा की इच्छानुसार प्रजा-प्रतिनिधियों का यह अनिवार्य कर्तव्य है कि वे देवनार कतलखाने की विनाशक योजना सर्वथा बन्द करनेकी अविलम्ब घोषणा करे और प्रजा में व्याप्त असन्तोष और अशान्ति का दूर करते हुए उन मूक प्राणियों को बयाकर पुन्य के भागी बने । श्री साँगाणीजी का भाषण - उपरोक्त प्रस्ताव उपस्थित करते हुए श्रीयुत नारायणजी पुरुषोत्तम सांगाणीने अपने भाषण में कहा कि भूक एवं पारावार कष्ट सहन करने पर भी महान उपकारक प्राणियों के प्रति अपनी अनुकम्पा एवं जीवदया की भावना दिखलाने के लिये आप भावनगर के सब प्रजाजनांने सारे शहर में सम्पूर्ण हडताल मनायी, विराट जलूस सम्मिलित होकर तथा टाउन होल के विस्तृत बाग के मैदान में इतनी बृहद संख्या में आप अपने हार्दिक भावों को व्यक्त करने के लिये उपस्थित हुए हैं इसके लिये मैं आप सब महानुभावों को धन्यवाद देता हूं। सज्जनों ! आज ता. ४ अक्टूबर के दिन संसार के किनने ही बुद्धिमान एवं जीवदया के प्रेमी लोग · विश्व प्राणी दिन" मनाते है, और जीव हिंसा नहीं करनेका उपदेश देते हैं । किन्तु लाखों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति और धर्म का तो ये रद For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ सिद्धान्त और आदेश तथा उपदेश है कि प्राणी मात्र के प्रति प्रेम और दया की भावना रखना । हिन्दू धर्म की ऐसी भव्य भावना एवं दिव्य उद्घोषणा है, कि प्राणी मात्र सुखी हो, सब जीव निरोग रहैं, सबका कल्याण हो और कोई भी जीव कभी भी दुःखी न हो । लाखों वर्षो तक तप, त्याग, समाधि, योग तथा भक्ति की साधना कर ईश्वर साक्षात्कार को प्राप्त करने वाले हमारे प्रातः स्मरणीय प्राचीन महर्षियों ने मन, वचन, कर्म से अहिंसा का इतनी सीमा तक अपने जीवन में पालन किया था कि एकान्त अरण्य में स्थित अपने आश्रमों में शेर, व्याघ्र, भेडिया, हरिण, सांप नेवला, बिडाल, मूषक आदि प्राणीगण अपने स्वाभाविक वैर तथा भय का परित्याग कर परस्पर प्रेमभाव से पक साथ में रहकर खेलते थे । ऐसी अहिंसा के उच्च आदर्श की रक्षा के लिये महाराज शिवि ने एक कबूतर के प्राण बचाने के लिये बदले में अपने शरीर का मांस काटकर दिया था । और आज कितने दुःख आश्चर्य एवं दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी सर्वश्रेष्ठ संस्कृति को इस देश में भारत के जिम्मेवार साशकगण गायों, बैलां, भै सां आदि प्राणियों का यान्त्रिक कतलखाना खोल कर लाखों की संख्या में उनका वध कराकर भारत के और अन्य देशों के लोगों को उनका मांस खाने खिलाने के लिये तत्पर हो रहे हैं । इतना ही नहीं यदि इन सब प्राणियों का मांस सबके लिये पर्याप्त न हो सके तो पतीस करोड रुपयों के व्यय से मछली और इस करोड रुपयों के भय से मुरगी पालन से मांस की पूर्ति कराना चाहते हैं । इससे अधिक क्रूरता और आसुरीपन और क्या हो सकता है ? गाय की अगाध महिमा जगत्कर्ता जगदीश्वर ने सृष्टि रचने के साथ ही समुद्र मंथन द्वारा देवों के पोषण के लिये अमृत उत्पन्न किया और सुरभि For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नामक कामधेनु गाय तथा उसकी संतति रूप बछड़ा, बछी, बैल उत्पन्न कर अमृत समान दूध, दही, घी, मट्ठा तथा मनान. खिला-पिलाकर लोगों को तृप्त किया। ऐसे जीवन-प्रदाता मातापिता समान गायों तथा बैलेां को मारकर उदर में स्वाहा कर जाना इससे अधिक पशुता व कृतघ्नता और क्या हो सकती है? वेदादि शास्त्र कहते हैं कि ऐसी परम उपयोगी एवं उपकारी विश्व जननी गाय के शरीर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा इन्द्र, चन्द्र, सूर्यादि देवाने और महर्षियों तथा गङ्गा, यमुना, लक्ष्मी भादि ने वास किया है. अतः यह सर्व देवमयी है । गाय का इतना अद्भूत महात्म्य हैं कि उसके दर्शन, स्पर्श, सेवा, पालनपोषण, रक्षण तथा दान से मनुष्यों के पाप दग्ध हो जाते हैं और सकल मनोरथों की सिद्धि होती है। इस कारण ही साक्षात् भगवान श्री कृष्ण ने नंगे पैर वनों में ले जाकर उनको घराया भार गोवर्द्धन पर्वत उठाकर इन्द्र के कोप से उनका रक्षण किया। तथा गोपाल और गोविन्द का बिरुद धारण किया। इस कारण से महाराज नहुष गाय के दान से महषि व्यबन के अपराध से मुक्त हुए थे। इस कारण हो गायोंके हरण करनेवाले आतता. यियोंको दंड देकर नरपुङ्गव महात्मा अजुनने बारहबर्षे का पनवास स्वीकार किया था। इस कारण से महाराजा नृग, भगवान राम, भगवान श्री कृष्ण तथा युधिष्ठिर मादि महानुभाव नित्य हजारों गायों का सुपात्र ब्राह्मणों को दान दिया करते थे, और इस कारण ही शेर के पजे से मुक्त कराने के लिये महाराजा दिलीप ने अपनी देह अर्पण कर उस प्रसन्न हुई गाय के वरदान से महाराजा रघु जैसे प्रतापी पुत्र को प्राप्त किया था । गायों के विनाश की योजना का लक्षांक अब जब एसे पूज्य और परम हितकारी निदेष प्राणियों की सेवा सुश्रुषा करने के बजाय लाखों की संख्या में कतल करने For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ઈ वर्तमान में अन्दाज १९६६ १९७१ १९७६ १९८१ के लिये होने वाले देवनार कतलखाने के निषेध के लिये - ग्रामग्राम और नगर - नगर से विरोध उठ खडा हुआ है तब बम्बई म्यु० कोरपेरेशन के कमिश्नर मी. शेख और मनुभाई शाह बचाव करने निकले हैं । मी. शेख कहते हैं कि देवनार में कोई नया कत्लखाना नहीं बन रहा है, किन्तु केवल बांदरा का कतलखाना उस स्थान में ले जाया जा रहा है । सज्जनों! यह कहना सर्वथा असत्य है । क्योंकि भारत सरकार ने जो तीसरी पंचवर्षीय योजना बनाई है उसमें देवनार (बम्बई), कलकत्ता, मद्रास और दिल्ली इन चार स्थानों में दो दो करोड रुपयों के खर्च से अर्थात् आठ करोड रुपयों की लागात से डेनमार्क तथा यूनाइटेड नेशन्स के निष्णातों की सलाह अनुसार ये विशाल यान्त्रिक कत्लखाने स्थापित करने का निश्चय हुआ हैं । सरकार द्वारा प्रकाशित मांस बाजार के रिपोर्ट में तीसरी पंचवर्षीय योजना में मांस का उत्पादन नीचे लिखे अनुसार बढाने के लक्षांक तय किये गये हैं । लक्ष्यांका समय गो माँस बंगाली मणमें दूसरे पशुओं का माँस वर्तमान में अन्दाज १,५१,२७,८०० १९६६ २,१५,३७,५०० १९७१ २,५६,७५,००० १९७६ ३,२४,६७,५०० १९८१ ४,४२,७५,००० अन्य सब प्रकार के पशुओं का माँस १,७६,८२,००० ३,३४,१२,५०० ६,५०,१०,००० १०,२०,२५,००० ११,५५,२५,००० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५,५४,००० १,१८,७५,००० २,२३,७५,००० ६,९५,६२,५०० ७,१२,५०,००० For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राचीन काल में भारत में गायों की संख्या करोड़ों और अरबों की ही नहीं, किन्तु संख्या की गिनती का अंतिम अंक पराई का है इससे भी अधिक थी। उस समय गायों बैलेंा, मैंसो आदि पशु-धन ही सच्चा धन माना जाता था । गायों बैलें। की एसी अगणित संख्या के कारण भारत में दूध, घी की नदियां बहती थीं । घर-घर में अतुलित समृद्धि एवं अन्न-बल के भंडार भरे रहते थे । लोग, बल, बुद्धि, शान, विज्ञान. दीर्घायुष्य, सदाचार, पवित्रता और परोपकार सम्पन्न थे। और जाति धर्म संस्कृति गायों तथा देश के लिये सर्वस्व समर्पण करने का सदैव तत्पर रहेते थे । यही कारण था कि स्वर्ग के देवलोक में भी भारत में जन्म लेने की आकांक्षा उद्भवति थी। ऐसी अगाध महिमा सम्पन्न गायों बकों की रक्षा तथा पोषण के लिये हमेशा लोग तत्पर रहेते थे, और गौहत्या करने वाले को देहांत दंड की शिक्षा दी जाती थी। हिन्दुओं को तो स्वभावतः गायों के प्रति आदर और पूज्यभाव था किन्तु बावर, हुमायू, अकबर, जहांगीर, बहादुरशाह और हैदरअली जैसे मुसलमान बादशाहों ने भी गायों की महत्ता समझकर गोवध बन्दी के फरमान निकालकर गोवध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। तब कितने खेद की बात है कि हिन्दुवानी की कोख में उत्पन हुए भारत के ये सपूत अपने केा हिन्दु कहने में भी शर्माते हैं। और देवनार जैसे भय कर कतलखाने खोलकर लाखों गायों बैलों और भै सो आदि की कत्ल कराके मांसाहार को बढ़ा रहे है। इसका एक मात्र कारण हिन्दुओं की निर्माल्यता एवं नपुसकता ही है तथा ऐसे अधर्गी गो मांस भक्षकों को वोट देकर अधिकारारुढ बनाये हैं वही हैं । देशी राजाओं अंग्रेजों को विदा करने के बाद प्रजा मे किसी के साथ भारत को बेच नहीं दिया है और न किसी के नाम For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के नाम रहन कर दिया है। किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये जिस प्रजा ने अनेक दुःखों एवं यातनायें सही थी उसने अपना राज्य अर्थात् प्रजातन्त्र की स्थापना की है । प्रजा ने राजतन्त्र को चलाने के लिये जिन सभ्यो अथवा प्रतिनिधियों को घाट देकर लोकसभा और विधान सभाओं में निर्वाचित कर भेजे हैं उनका चाहिये कि वे प्रजा की इच्छानुसार प्रजा के हित के लिये कार्य करें अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो प्रजा का अधिकार है-कि वह उन प्रतिनिधियों को उनके स्थान से हटायें और उनके गुन्हाहित कार्यों के लिये उनको सजा दे। तथा उन स्थानों पर दुसरे योग्य पुरुषों को निर्वाचित करके मेजे।। भारत की प्रजा इसलिये स्वतन्त्रता और स्वराज्य चाहती है, कि करों का बोझ हलका हो अथवा न हो । शुद्ध एवं शीघ्र न्याय मिले । अपने परम्परा प्राप्त धर्म का यथेष्ट पालन कर सके और गायों बैलें। आदि पशुधन' का रक्षण हो सके । किन्तु बजाय इसके उन लोग सेवकों ने अपने अधिकार को स्थिर रखने के लिये नयी-नयी योजनाओं के नाम पर सैकडों प्रकार के नये-नये कर लाद कर, विदेशों से अरबों रुपयो के ऋण में देश का डुबा. कर, देश में जो कुछ उत्पादन हेाता है उसका विदेशी मुद्रा प्राप्ति के लाभ में विदेशों में निर्यात कर जीवन प्रदाता पशुओं का बध कराकर तथा खान-पान, औषधि आदि प्रत्येक पदार्थो में मिश्रण से लोगो का जीवन रोगिष्ट, कंगाल एवं नारकीय बना हुआ हैं । समाजवादी स्थापना के नाम पर जाति-पाँति, वर्णाश्रम व्यवस्था, सदाचार, पवित्र खान-पान, लग्न-मर्यादा तथा संस्कृति धर्म का उच्छेद होने पर लोगों का घोर अधःपतन हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में सजना ! अब आपका यह पावन कर्तव्य है कि आप अपने हित अहित और शत्रु-मित्र को पहिचान कर अपने महान् प्रतापी पूर्वजों के मार्ग का अनुगामी बनने का निश्चय करे। For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संख्या में बच होती है और गाय बैल कटते कटते अब केवल १५ करोड की संख्या में बच पाये है। प्रति वर्ष प्रायः एक करोड की पाये है । प्रति बर्ष प्रायः एक करोड की कतल उनके मांस, हड्डी, चमडा, खून, आंतें आदि विदेशों में भेजे जाते है । सरकारी रिपोर्ट के अनुसार सन् १९५५-१६ में गाय और बछडा - बछडी की खालें ८०,७०,००० विदेशों में मेजी गई थी और भारत में बाटा तथा फ्लेक्स के जूतों के कारखानों में ३०,००,००० खालें काम में लाई गई थी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत में बडे बडे २१ बंदरगाह है उसमें बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास बंदरों से ही सन् १९५२ के जुलाई से सन् १९५३ के जून तक ५६,३८,००० रुपयों के मूल्य का गायों बलों का मांस आंते, जीभ आदि विदेशों में भेजे गये थे । गायों तथा बछडों की कत्ल से नीचे लिखे अनुसार खाले' विदेशों में भेजी गई थी १९५१-५२ ४५,६७,०८० १८,५३,०४४ सन् १९४६-४७ १९५५-५६ गायों की खाल - ६२५,००० ५३,९२,७३८ बछड़ों की खाल - १,२०,००० २६,७७,६२५ जोड़ - ७,४५,००० ६४,२०,१२४ ८०,७०,३६३ गौवध के कारण और वारे दाने की योग्य व्यवस्था न होने के कारण सरकारी रिपोर्ट के ही अनुसार सात वर्ष के अन्दर २,७१,८९,६९४ मन गाय का दूध कम हो गया। अतः सरकार ने नीचे लिखे अनुसार विदेशों से पाउडर, मखन, घी, पनीर आदि आयात किया : For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्ष १९३९-४० १९५१-५२ १९५५-५६ www.kobatirth.org १९५३-५४ १९५४-५५ १९५५-५६ वर्ष ઢ मूल्य- रुपयों में ८०,८६,००० ६, ३५, ७८००० ९१,१९,८७००० गायों, बैल, भैंस, बकरी आदि सब पशुओं को चरने के लिये गाँव-गाँव में गोचर भूमि रहती थी उसको भी जोत देने से आज पशु भूखों मर रहे हैं । तथा चारे और दाने की देशमें सख्त कमी हो रही हैं । फिर भी विदेशी मुद्रा प्राप्ति के पिछे पागल बनी हुई सरकार किस प्रकार चारा दाना खली विदेशे में भेज रही है सेा देखिये वर्ष चारा-दाना, वजन टनों में ७६४ २५१२६ ६८, ७२५ खली, वजन टनों में वजन - टनों में ६५९४ २६,७३८ ४८,९२१ ६११९ ३९३९७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूध, घी, मखन, दही तथा छाछ आदि से गोबर खाद आदि से पशुओं के स्वाभाविक मृत्यु से प्राप्त १९५३-५४ ८,१२,७९४ १९५४-५५ १,४७,९६.५१९ १९५५-५६ १,६२,७०२ ५,३०,१०,२१४ जीवित गो वंश से प्रत्येक वर्ष में अपार आमदनी होने के सम्बन्ध में कृषि निष्णात मि० ओलीवरका मत खेती का काम करने से बैलों द्वारा प्रति वर्ष आय रु० ६१२ करोड आय रु०८१० करोड आय रु० २७० करोड भूम्य रुपयों में २,३३,९९१ ५.१०,६६३ For Private And Personal Use Only १६७,०१, १ब० मूल्य रुपयों में चमडा हड्डी आदि से आय रु० ५५५ करोड जोड़ रु० १९०८,५ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतः कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के लोगों को ससम्मान एव सुख पूर्वक जिंदा रहना है तो उपरोक्त तथ्यों पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिये। और देवनार जैसे भय कर कत्लखाने का चाहे जिस प्रकार होने से रोकना चाहिये। बलिदान की वेदी में अपने को हेामकर भी पशुधन का रक्षण करना चाहिये। अधर्म पाप नास्तिकता और घोर हिंसा के कारण देश और दुनिया पर आज कितने अनाचार, पापाचार, दुराचार, अत्याचार व भुखमरी रोग दुःख भूकम्प और युद्धोंका भय तुलाईमान हो रहा है। उसको प्रत्यक्ष देखकर और स्वयं अनुभवकर सत्ताधीशांको चेतना और समजना चाहिये । तथा लोगों को भी संस्कृति धर्म तथा पशुधन का आत्मोद्धारक मानकर उनकी रक्षा के लिये कटिबद्ध हो जाना चाहिये ऐसा समय का तकाजा है और हमारी यह अन्तिम प्रार्थना है। जीवदया के शुभ कार्य में मदद देने वालों के नाम :३००) श्री जैन श्वे. मू. तपागच्छ श्रीसंघ नागौर हस्ते-सेठ श्रीमान् सुगनमलजी साहब बोथरा नागौर (राजस्थान) ५१) श्री जैन धर्म प्रसारक समा, भावनगर अन्य दाताओं का नाम वार्षिक रिपोर्ट में छापा जायेगा। For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૪૬ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महापुरुषों के वचन Religion is a prime necesity for all. धर्म यह सब के लिये मुख्य जरूरी चीज है । फ्र 5 卐 Let this be your motto that, what is trututh is mine. (6 " सच्चा है वही मेरा है यह सिद्धान्त आपका होना चाहिये, नहीं कि मेरा हैं वह सच्चा | 卐 卐 卐 Master your Passions and heaven is not far. पांचों इन्द्रियों के विषयों पर काबू प्राप्त करें, तो आपके लिये स्वर्ग दूर नहीं हैं । 卐 फ्र 卐 Every ounce of pleasures brings its pound of pains. सरसव जितना विषय सुख मेरु पर्वत जितने दुःखों का उत्पन्न करता है । For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाथ ! तुमने पशु बचाये, चार दिन को क्या बचाये विश्व रक्षक यदि बने थे, बीर क्यो शिवपुर सिधाये ? देखला नरमेध का यह विश्व भीषण थल बना है। तेरी भारत भूमि जोथी स्वर्ग सी जैन स्थली, आज बनने जा रही है वधस्थली यवनस्थली । गाय काटना तो हमारा राजनैतिक न्याय है, चर्म बाहर मेजना राष्ट्रीय अच्छी आय है। भारत बने यूरोप, ऐसी नीतिबाला दल बना है ॥ लाज सतियों की बचालो, वर्ण मेदादिक मिटादा, नाथ ! फिर श्रमणत्व का संसार में डंका बजादो। मूक पशुओं की सुनो तुम भूक वाणी सर्व ज्ञानी । और एटम को बनादो, आत्मबल से आज पानी । कुछ कृपा हो, वेदना से सिद्ध भर्मस्थल बना है। अपनी आत्म शुद्धि के लिये आईये हम कुछ प्रतिज्ञा करें। हम प्रतिज्ञा करें कि आज से हिंसा जन्य सर्व वस्तुओं का हमेशा के लिए त्याग कर देंगे। २. हम प्रतिज्ञा करें कि आज से सर्व अखाद्य व अपेय पदार्थो का हमेशा के लिए त्याग कर देगे। ३. हम प्रतिज्ञा करें कि आज से पक कर्म का छोड़कर अन्य किसी भी प्राणी को शत्रु नाहीं मानेगे। For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Remember that self control, self sacrifice, self confidence, self riliance are the chief qualities for a man to be great. याद रक्खें कि-यात्म संयम, आत्म भाग, आत्म श्रद्धा, और आत्म विश्वास ये आत्मा का उच्च कक्षामें ले जाने वाले मुख्य गुण हैं। Fear of God is the begining of wisdom. परमात्मा से डरना, यह ज्ञानीपने की शुरूआत है। As you sow so shall you reap. जैसा करेंगे, वैसा पायेगे। Have equal eyes towards all. सर्व का एक समान दृष्टि से देखो। और इम वाक्यों का प्रातदिन मनन व चिंतन करेंगे। 1. May good be to all the world. जगत के प्राणीमात्र का कल्याण हो / 2. May all ever do good to all. प्राणी मात्र दूसरों को सहाय भूत बने / 3. May all evil be destroyed. सब के दोषों का नाश हो। 4. May all people be happy. सारा विश्व संपूर्ण सुखी बने। // शुभम भवतु // For Private And Personal Use Only