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प्राचीन काल में भारत में गायों की संख्या करोड़ों और अरबों की ही नहीं, किन्तु संख्या की गिनती का अंतिम अंक पराई का है इससे भी अधिक थी। उस समय गायों बैलेंा, मैंसो आदि पशु-धन ही सच्चा धन माना जाता था । गायों बैलें। की एसी अगणित संख्या के कारण भारत में दूध, घी की नदियां बहती थीं । घर-घर में अतुलित समृद्धि एवं अन्न-बल के भंडार भरे रहते थे । लोग, बल, बुद्धि, शान, विज्ञान. दीर्घायुष्य, सदाचार, पवित्रता और परोपकार सम्पन्न थे। और जाति धर्म संस्कृति गायों तथा देश के लिये सर्वस्व समर्पण करने का सदैव तत्पर रहेते थे । यही कारण था कि स्वर्ग के देवलोक में भी भारत में जन्म लेने की आकांक्षा उद्भवति थी।
ऐसी अगाध महिमा सम्पन्न गायों बकों की रक्षा तथा पोषण के लिये हमेशा लोग तत्पर रहेते थे, और गौहत्या करने वाले को देहांत दंड की शिक्षा दी जाती थी। हिन्दुओं को तो स्वभावतः गायों के प्रति आदर और पूज्यभाव था किन्तु बावर, हुमायू, अकबर, जहांगीर, बहादुरशाह और हैदरअली जैसे मुसलमान बादशाहों ने भी गायों की महत्ता समझकर गोवध बन्दी के फरमान निकालकर गोवध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। तब कितने खेद की बात है कि हिन्दुवानी की कोख में उत्पन हुए भारत के ये सपूत अपने केा हिन्दु कहने में भी शर्माते हैं। और देवनार जैसे भय कर कतलखाने खोलकर लाखों गायों बैलों और भै सो आदि की कत्ल कराके मांसाहार को बढ़ा रहे है। इसका एक मात्र कारण हिन्दुओं की निर्माल्यता एवं नपुसकता ही है तथा ऐसे अधर्गी गो मांस भक्षकों को वोट देकर अधिकारारुढ बनाये हैं वही हैं ।
देशी राजाओं अंग्रेजों को विदा करने के बाद प्रजा मे किसी के साथ भारत को बेच नहीं दिया है और न किसी के नाम
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