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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनाकर सबके दिमाग और चित्तका भी हिंसक बना डाला है। जैसा आहार होगा, वैसाही विचार आयेगा, और फिर वर्तन भी उसी प्रकारका होगा । इस प्रकारके अखाद्य भक्षणसे फिर अहिंसाकी भावना, या विश्वमैत्री व शांतिकी भावना कहांसे आयेगी, क्रूरता और जड़ता ही आयेगी। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी जबतक आप हिंसाजन्य वस्तुओंका त्याग नहीं करेंगे, तबतक आपमें अहिंसक विचार नहीं आ सकते, अगर आपको स्वयंविकृत से सस्कृत बनना है तो सर्वथा जीव हिंसाका त्याग करनाही पडेगा। सरकार भी हिंसाको प्रेत्साहन दे रही है ! ___ आजकी सरकार भी इसे और प्रोत्साहन दे रही है। जोकि यहांकी संस्कृति व सभ्यता के लिए कालकूट विषके तुल्य है। हमारी सरकार जनसमुदायोंके विचारोंकी उपेक्षा कर रही है। अगर लोकतत्र को जीवित रखना है, तो जनताके विचारों का पादर करना होगा । जिन्होंने उन्हे अपना मत देकर विधान सभा या लोकसभामें मेजा है। वे उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए गये हैं, न कि स्वामित्व करनेके लिए गए हैं ! बे जनताको आवाजकी अवहेलना नहीं कर सकते । ___ अनेकवार जनताके विचारों एवं विरोधेका दमन किया गया है। हिंदु कोडबिल, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, आदि न जाने कितने कायदे कानून धर्म और संस्कृति के विरुद्ध पास करके अपनी मनमानी करने का उदाहरण दे देया है। अब तो और भी आगे मत्स्य, मूर्गि और मांस उद्योग मादि न जाने ऐसे कितनेही उद्योग इनके दिमाग में भरे पडे हैं ! ___क्या यही लोकत त्रीपना हैं ? क्या इससे लोगोंके दिलोंको और उनकी धर्मभावना को ठेस नहीं पहुंचती है ? अगर इसे ही हम लोकतत्रीशासन कहेंगे, तब फिर तानाशाही शासन किसे कहेंगे? For Private And Personal Use Only
SR No.008709
Book TitleDevnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri, Narayan Sangani
PublisherDevnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
Publication Year1963
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size4 MB
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