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(जब किसी ओर से उन्हे आक्रमणका भय रहता है) और दूसरा क्षुधा तृप्तिके लिए तब मानव शिर्फ दाइच जीभके लिए उत्तम सात्त्विक भोज्य पदार्थको छोडकर गदे मांसका भोजन करता है।
पशुओंके पासतो हिंसाके साधन भी सिमीत है। पशुके पास तो नख, दांत, सींग, आदि हिंसाके माधन हैं, जबकि मानवने उसे मारनेके लिए अनेक प्रकार के साधन बना रक्खे हैं । पशु जब सामने आकर शिकार करता हैं तब मानव छिपकर दुष्ट बुद्धिसे शिकार करता है। परंतु पशुसे भी आगे एक कदम मानव कहलानेवाला व्यक्ति पाशविक वृत्तिके वश होकर, उसे राष्ट्रीय आंतर्राष्ट्रीय व्यापारका रूप देता है ।
इन वस्तुओं पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होजायेगा किहमारे अंदर कितने हदतक पाशविक वृत्ति आगई है। और इन उपरोक्त कारणोंको देखने से हमें मालूम होगया कि " पशुवध" करने का उद्देश्य क्या है। आज कितनी दानवता बढ़ गई है !
आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा ही हिंसाको जननी है !
आजकी पाश्चिमात्य शिक्षा भी इसी प्रकार की है, विद्यालयों में बच्चोंके कोमल और अपरिपक्व मस्तिष्क में विज्ञान के नाम पर ऐसी हिंसक बाते भर दी जाती हैं, जिनका परिणाम यह होता है कि, उनके अंदरसे धर्म भावना, और दयालुता के विचार चले जाते हैं । भविष्यमें वे एक निष्ठुर हृदयी नागरिक बनते हैं । हिंसक वृत्तिवाले बनते है । क्यों कि घर परते। उन्हे संस्कार मिल नहीं पाता हैं, और शाला या कालिजमें उन्हें विज्ञान के नाम पर वही हिंसक धाते सीखाई जाती है। अगर कोई व्यक्ति इन बातों का विरोध करे, तो आजके तथाकथित सभ्य कहलानेवाले व्यक्ति उसे असंस्कारी, और असभ्य कह कर संबोधित करेंगे ! आज इसीकारण से तो विश्वशांति नहीं होने पा रही है। कारण यही है कि सबका मांसाहारी और हिंसक
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