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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खाता है, कोईभी व्यक्ति जीवोंकी हत्या नहीं करता है। यदि किसीको पशु मांसकी जरुरत हो तो उसे अरब या दूसरे देशेांसे विदेशीयोंको बुलाकर पशुवध के लिए नौकर रखना पडता है।" आज जितना तो मांसाहारका प्रचार पूर्व में यहां नहीं थायह उपरोक्त बातोंको पढनेसे अच्छी तरह ज्ञात हो गया होगा। मांसाहारमें विशेष वृद्धि यवनों और आंग्लेोके शासन कालमें हुई। उन्होंने अपनी पाश्चात्य संस्कृतिकी नीव डालने के लिए इसे उपयुक्त साधन समझकर, जीव हिंसा और मांसाहारका पनपने दिया। भारतका जनमानस भी उस समय इतना जागृत व शसक्त नहीं था की उसका प्रबल विरोध कर सके। यद्द है मांसाहार और जीवहिंसा के पूर्व कारण । मानवका बड़प्पन कर और दयाहीन बनने में नहीं है। मानव कुदरतका सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, वही जो निर्दोष और मूगे पशुओंको मारकर खा जाय, अथवा उसे सताने और उस पर अमानुषी अत्याचार करने में रस ले तो उसका बडप्पन कहां रहा? मनुष्यका बड़प्पन कर, निष्ठुर, और दयाहीन बनने में नहीं है, परन्तु धर्मात्मा बनने में, प्राणी मात्रके प्रति प्रेम व दया एवं सहानुभूति पूर्ण व्यवहार रखने में है। वेद भी यही कहता है। "मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानी समीक्षे।" यजुवेंद. अर्थात्-सर्व प्राणीको मित्रवत् दृष्टि से देखो, चाहे वह मानव हो या पशु व पक्षी हो। आजका मानव स्वयंका ज्यादा सभ्य मानता है, परन्तु वही सभ्य मानवने आज संसारमें हिंसक वातावरण फैला रक्खा है। क्या यही उसकी सभ्यता है? मांसभक्षण ही हिंसाका मुख्य कारण है। आजकल विश्वमें मांसभक्षणकी प्रथा दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। भारत भी उस अंधानुकरणमें आगे बढ़ता जा रहा For Private And Personal Use Only
SR No.008709
Book TitleDevnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri, Narayan Sangani
PublisherDevnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
Publication Year1963
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size4 MB
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