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सम्मेलन में कहाथा कि " युद्धविभाग की और से मुझे आशा मिली कि सैनीकोंको शाकाहारी बनावें, मैं सायकल पर स्काट. लेंड इसीकार्य के लिए आया-मार्गमें मुझे आठ दिन लगे । मैं सैनिको के शाकाहारी बनानेके लिए शिक्षण देता रहा, इससे उनमें इतनी शक्ति आगई कि वे मकान बनानेके काममें आनेवाले बडे बडे पत्थरभी आसानी से उठालेते थे, और उनका स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा रहा।"
4. “लंडन वेजिटेरीअन एसोसिएसन" की सेक्रेटरी कुमारी एफ. इ. निकल्सनने सन् १९०५ में ६ महिने तक १० हजार बालकांका निरामिष भोजन कराया था, तथा “लउन काउन्टी कान्शिल" द्वारा उतने ही बालकांका आमीष मोजन कराया गया, ६ महिने पश्चात् दोनों दलों के बालकांका डोक्टरी परीक्षण कराया गया। जिसमें सिद्ध होगया कि-मांस खानेवाले बालकों की अपेक्षा शाकाहारी बालक अधिक स्वस्थ्य, और स्फूर्तिसपन्न पाए गये ।
तब से “लडन काउन्टी कौशिल" की प्रार्थना पर उसकी देखरेखके नीचे "लंडन वेजिटेरीयन एसोसिएसन" द्वारा लंडन के हजारों गरीब बालकोंका निरामिष भोजन दिया जाता है ।
इन उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट हो गया कि मांसाहार सेबल नहीं बढता है। इस प्रकार की मान्यता मात्र मिथ्या भ्रम है।
चौथा प्रश्न है वैज्ञानिक साधन एवं दवाओंकी -: यह भी मानने जैसी बात नहीं है। बुद्धिका सदुपयोग नहीं करके आज इसका बड़ा ही दुरूपयोग किया जा रहा है, शायद ही कभी ऐसा हुआ हो! आज हम प्रत्यक्ष देख रहें है, कि वैज्ञानिक साधन हमारे लिए आशिर्वाद रूप हैं ? या अभिशाप रूप? अगर आपको विश्वाश न हो तो पूछीये उनसे जो द्वितीय विश्वयुद्ध की बलीबेदी पर चढ चूके हैं ! या रूस और अमेरीकाकी जनता से पूछिये, कि
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