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है, बलिष्ठ बनना है, तो संयमी बनना पडेगा । और संयम तब ही सुरक्षित रह सकेगा, जवकि-आप पूर्णतया सात्त्विक और शाकाहार करेगे। ___ आहारके साथ संयमका और संयमके साथ शरीरका लबन्ध है। इसी लिये तो आज विदेशों में भी शाकाहार का प्रचार दिनोंदिन वढता जारहा है । और वैज्ञानिकांने भी उसकी उपयोगिता पर ध्यान देना शुरू करदिया ह।
मांसाहार करने से बल नहीं बढता है। डो. हेगने एक पुस्तक लिखा है, जिसका नाम है Diet and food "पथ्य और मोजन " उसमें लिखा है, "मांसाहारी प्रथम शक्तिका अनुभव करता है, लेकिन बादमें वह तुरत थक जाता है, जब शाकाहारी अपनी शक्तिका प्रयोग शनैः शनैः करता है" उन्होने इस प्रकारके कहे उदाहरणों का उल्लेख किया है ।
I.१ जन १८९०में क्वेटा ( प. पाकिस्तान में एक अग्रेज सिपाहीयों के एक दल के मध्य रस्सी खेचने की म्पर्धा हुई थी, उस बात पर वे लिखते हैं कि-अंग्रेजोंके हाथ रस्सी खींचते हुए छिलजाते थे, और अंतमें वे रस्सी छोड देते थे, जबकि भारतीय सिपाही रस्सी खींचेही रहते थे।
2. बलिन (जर्मनी) में " शाकाहार का विजय" नामका शिर्षक वहां के "डेली न्यूझ" में छपाथा, जिसमें लिखा है कि “१४ मांसाहारी और ८ शाकाहारीयोंमें ७० मील पैदल चलनेकी स्पर्धा लगी थी। सब शाकाहारी आनदपूर्वक नियत स्थान पर पहिले ही पहुंच गये, जबकि मांसाहारी एक घटे पश्चात् नियत स्थान पर पहुंच पाये । मांसाहारीयों में से कई एक तो ३५ मील पारकरके वहीं पर ही बैठ गये ।" यह है मांसाहारी का बल!
3. मि. जे. ब्रेसन महोदय (इग्लेड) जिनकी उम्र ७० वर्षी है, और वे पूर्णतया शाकाहारी हैं, उन्होंने लडनके खाद्य प्रचार
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