SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत उसका विषेला प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पडेगा ही। और उस विषले तत्वका अंश हमारे खाद्य पदार्थामें भी आयेगा। इसीका ही तो आज परिणाम यह है, कि दिनप्रतिदिन अनेक प्रकारकी बिमारियां बढ़ रही है, जिनका कि पहिले कभी नामो निशान तक नहीं था। बीचारे कीडे आदि क्षुद्र जीव तो कृषिविज्ञान के अनुसार हमारे लिए बडे उपयोगी जीव हैं । मिट्टीको वे मुलायम व कृषियोग्य बनाये रखते हैं। डी. डी. टी. आदि विषैले पदार्थ छींटकर तो हम अपने स्वयंका नुकसान कर बैठते हैं। बहुतसे वैज्ञानिकोंने भी विषैली दवाओंके छिडकावका विरोधकिया है, और कररहे हैं। इस प्रकार इनका यह प्रश्न भी भ्रमपूर्ण है । अब तीसरा प्रश्न हैं शरीर पुष्टी का :तो यहएक जामी-पहचानी बात है कि मानव शरीरकी रचनाको देखते हुए "मांस" मानवका प्राकृतिक आहार नहीं है। भयंकर तामसी एवं राक्षसी पदार्थ है। बिमारीयां व कुवासनाओं को आमंत्रित करनेवाला है, और अपनी जठराग्नि भी उसे पचाने में असमर्थ है। इस दृष्टीसे मानसिक पवित्रताका नाश करती है, क्रोधको बढानेवाला है, और विषय वासनाओंका उत्तेजित करनेवाला है । इसलिये भी वह मानवमोज्य वस्तु नहीं है । और फिर पशुके मांसका आहार भक्षण करनेसे मानवता थोडे ही मायेगी, पशुता ही आयेगी ! - जब वह आहार बिमारीको स्वयं आमंत्रित करता है, तब उसमें स्वयं कोई किसी प्रकारकी पौष्टिकता नहीं है, यह बातता भाप अच्छी तरहसे समझ गये होंगे ? जंगली प्राणीयोंमें भी जैसे गेडा, हाथी, जंगलीभैंसा आदि शाकाहारी हैं, फिर भी शक्तिमें सिंहसे कुछ आगे ही हैं । शरीरको रोगांसे दूर रखना For Private And Personal Use Only
SR No.008709
Book TitleDevnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri, Narayan Sangani
PublisherDevnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
Publication Year1963
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy