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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ आर्यजनता भी इसका विरोध करे 1 प्राणीवधको देखकर जो अपना हृदय द्रविभूत न हो तो क्या हम मानव कहलाने के अधिकारी रहेगे ? अपनी मानवता के टिकाने के लिए मैं आर्य जनता से नम्र निवेदन करता हूं कि, इस प्रकार की वधशाला का तन, मन धनसे एकाकार होकर विरोध करें | परन्तु ठहरिये ! जरा सोच समझकर विरोध करीए ! आजकल के कई व्यक्ति वधशाला आदि का विरोध तो करते हैं । परन्तु अपनी वाकू पटुता से जनता को गुमराह भी करते हैं । बे करते हैं कि, आज मांसाहारीयों की संख्या दिनां दिन बढती जारही है, इस लिए हम इसे कानून द्वारा बंद नही करा सकते आदि 66 " जीवांकी भलेही हिंसा होती रहै, हम उसे देखते रहैं, मुंहसे उसके विरोधके लिए आवाज तक भी न निकालें । For Private And Personal Use Only और जीaint हिंसा प्रति उदासीन व उपेक्षित रहजाना यह कौनसी दया है, मालूम नहीं ? हमारी अहिंसा कोई मानव तकही सिमीत नही है सिमातीत है. प्राणी मात्र तक व्यापक है, और रहेगी । सर्व जीवांकी रक्षा के लिए हम प्रयत्न करेंगे । पूर्व में जहां एक एक क्षुद्र जीवों के लिए भी स्वप्राण अर्पण करने के बहुत से उदाहरण स्मृति पुराण आदि ग्रन्थों में पाये जाते हैं । वहां आज शिफ बोलने में भी हम इतने अनुहार बन गये हैं, क्या कहें कैसी दयनीय दशा हमारी बन चूकी है । हम विवेक रक्खे, जीवांकी अवगणना या उपेक्षा नहीं करें | अगर आप विरोध में आर्थिक योग नही दे सकते हैं तो कोई हर्ज नहीं - टाल्सटायने कहा है कि- "It does not Cost to be Kind " दयालु बनने में कोई पैसे की जरुरत नहीं हैं, आप तन मन वचन से भी विरोधमें सक्रिय योग दे सकते हैं ।
SR No.008709
Book TitleDevnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri, Narayan Sangani
PublisherDevnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
Publication Year1963
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size4 MB
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