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और द्रव्य मिलेगा उसी प्रकारके विचारांका निर्माण होगा ! अगर योजना पूर्ण करनी है, तो और भी अन्य कई सात्विक उपाय हैं । उसके लिए अल्प बचत योजनाका कार्यान्वित करें। सादाई पूर्ण जीवनयापन करें । बे फजुल खर्च बंद करदे, फिर एक पैसा भी बाहर से मंगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। बडे ही शर्म की बात है कि जहां क्रोडों अरबों का खर्च होता हो, वहां शिर्फ ३०-३५ लाख रुपये की वार्षिक आयके लिये जनताके विरोधेका सामना करके कार्य करना सरकारके लिए एक अद्रदर्शिता पूर्ण कार्य होगा।
हिंसक योजनाएं राष्ट्रियता भी नहीं पनपने देगी
और इन कार्यों से राष्ट्रीयता या भावनात्मक एकता भी नहीं पनपायेगी भारतीय ऋषि मुनियोंकी हम बहुत दुआई देते रहते हैं । क्या उन्होंने कहीं पर भी हिंसा का उपदेश दिया है ? क्या उन महा पुरुषांका यह वाक्य याद नहीं है ? " मा हिंस्यात् सर्व भूतानि '' किसी जीबकी हिंसा न करो, " आत्मवत् सर्व भूतेषु " अपने आत्म तुल्य सर्वजीवोंको समझा।
क्या यह प्रार्थना याद नहीं है जो महात्मा गांधी प्रतिदिन किया करते थे।
"वैष्णव जनतो तेने कहीये जे पीड़ पराई जाने रे । परदुःखतो उपकार करेताये मन अभिमान न आणे रे ।" इसी वस्तुको प्यासऋषिने इस प्रकार कहा है :"अष्टादश पुरानेषु व्यासस्य वचनद्वयम् , परोपकार पुण्याय, पापाय पर पीडनम् ॥ अठारह पुराणोंका सार इन दो वचनों में समावेश हो जाता है । परोपकार से पुण्य, और पर पीड़ा से पाप की प्राप्ती होती है। - अगर यह वाक्य याद न होतो-एक भारतीयताके नाते भी इसे याद करले ! जीवन व्यवहार में उतारे' । आज यह विचार
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