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लेखक की कलम से
भारत सरकार की हिंसा पोषक नीति के देखकर, मुझे अंतरवेदना जागृत हुई, और मैंने अपनी अंतरव्यथा को व्यक्त करने के लिए " देवनारका कतल खाना भारत के लिये कलंक रूप नामका निबंध लिखा ।
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मेरे लिखने का आशय यही है कि भारतीय प्रजा इस निबंध से जागृत बनें, और एक स्वरसे इस हिंसक योजना का विरोध करे ।
इस निबंध को पूज्य गुरूदेव प्रशान्तमूर्ति विद्वद्वरत्न उपाध्याय श्रीमत् कैलाससागरजी महाराज की सत् प्रेरणा व शुभ आशिर्वाद से लिखपाया है, इसलिये मैं उनका ऋणि हैं । साथही इस निबंध के लिये पूज्य व्याकरणाचार्य विद्वत्वर्य मुनिराज श्री हेमचंद्रविजयजी महाराज ने अपना शुभ समय निकालकर जा " पुरोवचन" लिखने का कष्ट उठाया है, उसके लिये मैं उनका आभारी हूँ ।
समवसरण का वडा
भावनगर (सौराष्ट्र)
१-९-६३
मुझे आशाही नहीं अपितु विश्वास है कि जनता इस निबंध को पढकर लाभ उठायेगी, तथा अपनी आवाज राजनेताओं के कानतक पहुंचाकर देवनारकी हिंसक योजना का बंद करायेगी । तभी मैं अपने प्रयास का सफल मानूंगा ।
पू. गुरुदेवश्री कल्याण सागरजी महाराज का चरण रेणु -- मुनि पद्मसागर
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