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गाय, बैल, बकरे, भेंड, आदि जीवांका वध कर दिया जाता है, अगर वे न काटे जाएं तो भारत में दूध, दही और घी को नहरें बहने लग जांए । आज यह कोई विचार नहीं करता है कि पशुओंका काट कर हम किस प्रकार दूध, घी प्राप्त कर सकेंगे ?
पंडित मदनमोहन मालवियजीने एक स्थान पर लिखा है कि पहले राक्षसलोग मनुष्यका मांस खाते थे, अब मनुष्य पशुओंका खाते हैं, यह सबसे बडा पाप है ।
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इसी मांसाहार के संबन्धमें ऋषि दयानंद सरस्वतीने एक स्थान पर यहां तक लिख दिया है कि " है मांसाहारीयों ! जब अमुक समय के बाद पशु नहीं मिलेगे, तब तुम मनुष्यांचे मांस को भी नहीं छोडेंगे, क्या ? "
मनुष्यको मांसाहार छोडकर अपनी मानवताका उदात्त परिचय देना चाहिये ।
मनुष्य हमेशा मांसाहारके उपर नहीं रह सकता ।
एक समय इग्लेंडमें एक प्रथा चली कि कोई खेती नहीं करेभेंड, बकरा, बल आदि पशुओंका पाला, जिससे पूर्णतया मांसाहार पर रहा जा सके, परन्तु यह प्रथा ज्यादा दिन नहीं चल सकी कारण कि मनुष्य सदा मांस पर जीवित नहीं रह सकता । तब फलाहार और दूध पर जीवन पर्यंत निर्वाह करनेवाले व्यक्ति आज भी मौजूद है।
मनोरंजन के लिए जीवको दुःखी करना भयंकर कार्य है !
जिसके स्वाद, आर्थिक स्वार्थ, धार्मिक अंध विश्वास्त्र, शिकार, विलासिता और मनोरंजन के लिए आजके मानव को अपने हाथ पशु पक्षीयोंके रक्तसे रंगते हुए शर्म नहीं आती है । इसका एक उदाहरण आप पडेगे तो आपकी आंखे भी शर्म से नीची हो जाएगी। इग्ले डके एक भागके लोगोंने अपनी आबान
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