Book Title: Yuktiprakasha Sutram
Author(s): Padmasagar Gani, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 4
________________ SAEBAR __* जैन समाजमें अपूर्व क्रान्ति ॐ श्रीमहावीर जैनग्रंथमालाकेपुस्तकें प्रकाशित होगये. पढिये-अवश्य पढिये और मनन करिये.. ज्ञात होकि श्रीमहावीरग्रंथमालाके मुख्यतया दो विभाग करनेमे आये हैं. जिसके प्रथम विभागमें आजतक अप्रकाशित अध्यात्मग्रंथोका और सूत्रग्रंथोंका प्रकाशन दूसरे विभागमें श्रीगणधर महाराज पूर्वधर और पूर्वाचार्योके अनूभूत सिद्ध हैमकल्प, औषधिकल्प, मंत्रकल्प, आदि ग्रंथोंका प्रकाशन करवाना सुनिश्चित किया है. स्वाध्याय प्रेमी कोईभी महानुभाव अगर इसग्रंथमालाकग्राहक बनना चाहेतो नियमित फीसके पांच रुपये भरकर ग्राहक श्रेणी में अपना नाम लिखवा सकते है. अभीतक इसग्रंथमालाके अनकरीब पचास महानुभाव स्थायीरूपसे ग्राहक हो चुके है. इसग्रंथकी इस सूचनाके अतिरिक्त और कोई जाहिर सूचना देने में नहीं आयेगी. क्योंकि इसमें गुप्तविद्या होनेके कारण इसका जितना सद्उपयोग होना चाहिये संभवहकि सर्व साधारण जनताकेद्वारा उससे कहीं अधिक इसका दुरूपयोग हो इसीलिये हमने इस ग्रंथकी अभी अधिकप्रतियाँ न छपवाकर थोडीसी प्रतियाँ छपवाई है। बाद इन प्रतियोंके खपजानेसे यदि ग्राहकोंकी अधिक संख्यामें माँगे आईतो दुसरीदफेमें हम अधिक संख्यामें प्रतियाँ छपवा सकेंगे. स्वाध्याय प्रेमी सज्जन ग्रंथमालाकी ग्राहक श्रेणी में शीघ्रातिशीघ्र अपना नाम लिखवाकर यश और पुण्यके भागी बनेंगे क्या मै ऐसी उम्मीद करसकताहूं? निवेदक मंत्री:-S. K. Kotecha. Dhulia.

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