Book Title: Yogshastra
Author(s): Samdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
Publisher: Rushabhchandra Johari

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ सम्पादकीय भारत की प्रान्तरिक साधना में योग-साधना का अपना अनूठा स्थान है। यह साधना आध्यात्मिक शक्तियों को जाग्रत और विकसित करने का एक प्रभावशाली साधन है। लौकिक और लोकोत्तर–दोनों प्रकार की लब्धियों को प्राप्त करने का कारण होने से प्राचीन भारत में यह साधना अत्यन्त आकर्षक रही है । ऐसी स्थिति में यह तो संभव ही कैसे था कि इस विषय में साहित्य अछूता रहता। भारत के सभी प्रमुख सम्प्रदायों के मनीषियों ने योगसाधना पर बहुत कुछ लिखा है । जैनाचार्यों में प्राचार्य हरिभद्र, आचार्य शुभचन्द्र, प्राचार्य हेमचन्द्र और उपाध्याय यशोविजय जी आदि इस विषय के प्रधान लेखक हैं। प्रस्तुत योग-शास्त्र कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र की कृति है। योग-विषयक साहित्य में इसका क्या स्थान है, यह निश्चय करना समीक्षकों का काम है। फिर भी इतना तो निश्चित है कि जैन-साहित्य में यह कृति अपना विशिष्ट स्थान रखती है और योग के सम्बन्ध में यथार्थ दृष्टि प्रदान करती है। अनेक विद्वानों की तरह मेरे मन में भी योग-शास्त्र का राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनुवाद न होना चुभ रहा था। अवसर मिला और अनुवाद कर डाला। किन्तु कई कारणों से वह प्रकाशित न हो सका। इस वर्ष जैन सिद्धान्ताचार्या विदुषी महासती श्री उमराव कुंवर जी म०, पण्डिता श्री उम्मेद कुँवरजी म० आदि का वर्षावास दिल्ली में था । महासती जी का जीवन बहुत उच्चकोटि का है । वे वैराग्य, तप एवं संयम की प्रतिमूर्ति हैं। उन्हीं के तपोनिष्ठ जीवन एवं उपदेशों से प्रभावित होकर और उनके चातुर्मास की स्मृति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 386