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योगसार प्रवचन (भाग-२)
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अन्वयार्थ - ( बे-पंचहँ रहियउ ) दो प्रकार के पाँचों से रहित होकर अर्थात् पाँच इन्द्रियों को रोककर व पाँच अव्रतों को त्यागकर (वे पंचहं संजुत्तु मुणहि ) दो प्रकार के पाँच अर्थात् पाँच इन्द्रियमनरूप संयम व पाँच महाव्रत सहित लेकर आत्मा का मनन करो। (जो बे-पंचहँ गुणसहिउ सो अप्पा णिरूवुत्तु ) जो दश-गुण- उत्तम क्षमादि सहित है व अनन्तज्ञानादि दश गुण सहित हैं, उसके निश्चय से आत्मा कहा जाता है।
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पाँच के जोड़ों से रहित व दश गुण सहित आत्मा को ध्यावे ।
बे-पंचहँ रहियउ मुणहि बे - पंचहँ संजुत्तु ।
बे-पंचहँ जो गुणसहिउ सो णिरूवुत्तु ॥ ८०॥
दो प्रकार से पाँच से रहित होकर अर्थात् पाँच इन्द्रियों को रोक कर और पाँच अव्रतों का त्याग कर... लो, अब दो पाँच लिये हैं । पाँच इन्द्रियों को रोककर, अतीन्द्रिय आत्मा का एकाग्र ध्यान करना । पाँच अव्रत, समझे ! हिंसा आदि पाँच अव्रत । हिंसा, झूठ, चोरी, विषयभोग, वासना का त्याग करके... ।
दो प्रकार से पाँच अर्थात् पाँच इन्द्रियदमनरूप संयम... उसके सामने लेते हैं। पाँच इन्द्रियों को रोककर पाँच इन्द्रिय के दमनरूप संयम में रहना और पाँच अव्रतों का त्याग करके पाँच महाव्रत सहित होकर आत्मा का मनन करो। समझ में आया ? जो दस गुण उत्तम क्षमादि सहित हैं... जो दस गुण उत्तम क्षमादि सहित हैं और अनन्त ज्ञानादि दस गुण सहित हैं... दो बात ली है। उत्तम क्षमादि दस गुण... उत्तम क्षमादि दस गुण आते हैं न? और या अनन्त ज्ञानादि दस गुण सहित ऐसा। उसे निश्चय से आत्मा कहा जाता है। अनन्तगुण सहित भगवान आत्मा को आत्मा कहते हैं । इन्द्रियों का दमन करके, पाँच अव्रत का त्याग करके, स्वरूप में दस गुण सहित या इन्द्रिय दमन के भावसहित अव्रत का त्याग करके व्यवहार से व्रत का विकल्प आता है; निश्चय से व्रत को अपने में स्थिर होना वह निश्चयव्रत है। यह नियमसार में आ गया है। पञ्च महाव्रत..... पञ्च महाव्रत निश्चय प्रायश्चित्त है । निश्चय प्रायश्चित्त; अपनी वीतराग पर्याय को महाव्रत कहते हैं, विकल्प को महाव्रत व्यवहार से कहा जाता है। समझ में आया ? ऐसे अनन्त गुण सहित जान ।