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योगसार प्रवचन (भाग-२)
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इसी प्रकार आत्मा में इतने अनन्त गुण हैं, उनका पोषाण होना चाहिए। लक्ष्य में पोषाण (होना चाहिए कि ) एक स्वरूप भगवान में अनन्त स्वरूप से गुण। कहते हैं, भगवान एक आत्मा को अन्तर्मुख दृष्टि करने से, पकड़ने से अनन्त गुण की पर्याय प्रगट होना उसमें आ जाता है। श्रद्धागुण प्रगट होता है, ज्ञानगुण प्रगट होता है, चारित्रगुण प्रगट होता है, आनन्दगुण प्रगट होता है, शान्तिगुण प्रगट होता है, स्वच्छता, प्रभुता आदि अनन्त गुण की पर्याय का अनुभव (प्रगट होता है)। सर्व गुणांश समकित की पर्याय में सर्व गुणांश आ जाते हैं। आहा...हा...! जितने द्रव्य में गुण हैं, उतनी उसकी प्रतीति करने से, निर्विकल्प अनुभव करने से उतने ही गुण के अंश पर्याय में प्रगट हो जाते हैं। समझ में आया? अपने आत्मा का अनुभव करने से इतना लाभ है। आहा...हा...! समझ में आया?
एक-एक गुण को ग्रहण करने से आत्मा का एक-एक अंश... खण्ड-खण्ड हो जाता है । सम्पूर्ण आत्मा ग्रहण नहीं होता, वह तो भेद हो जाता है, (इसलिए) विकल्प उत्पन्न होता है। गुण भी अनन्त हैं, उन एक-एक गुण को ग्रहण करने से (आत्मा का अनुभव नहीं होता)। एक-एक गुण (गिनों तो) तीन काल से अनन्तगुने गुण हैं। तीन काल के समय से अनन्त गुण हैं, कितनों को पकड़ना? आहा...हा...! एक समय में एक, एक समय में एक, अरे...! असंख्य चौबीसी में एक समय, एक गुण तो भी पार नहीं आवे इतने तीन काल से अनन्तगुने गुण हैं। आहा...हा...! भाव! जिसकी शक्ति का सत्व, उसकी संख्या का अमापपना भगवान ने (देखा है)। जहाँ चेतन वहाँ अनन्त गुण, केवली बोले ऐम; प्रगट... फुडु, शब्द पड़ा है न? फुडु प्रगट अनुभव आपका... प्रगट श्रद्धा-ज्ञान से तू अनुभव कर । निर्मल प्रेम से अनुभव कर, पुण्य-पाप का प्रेम छोड़ दे। पर का प्रेम छोड़कर भगवान आत्मा का प्रेम लगाओ। निर्मल करो सो प्रेम... अनन्त गुण हैं, ऐसा तेरी पर्याय में प्रगट में और प्रतीति में आ जाएगा। अंशरूप से प्रगट में और प्रतीतरूप से सम्पूर्ण अनन्त (आ जाएगा)। आहा...हा...!
__ आत्मा महान प्रभु है, यह बात अन्दर में नहीं बैठी। महिमा यह पुण्य की, विकल्प की, दया, दान और धूल की (रही)। वीर्य की उल्लसितता, उल्लसितता (अर्थात्)