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योगसार प्रवचन (भाग-२)
४११ पण्डितजी दस दिन आये थे न? गुणपज्जयेसु भावा प्रत्येक द्रव्य अपने गुण के पर्याय में 'उप्पादवए भावा पकुव्वंति' 'उप्पादवए भावा पकुव्वंति' द्रव्य उसके उत्पादव्यय को करता है। १५वीं गाथा है। समझ में आया? लो! (फिर) अनन्त गुण का सागर है – ऐसा लेंगे।
मुमुक्षु - उत्पाद-व्यय-ध्रुव तो ध्रुव परिणमनशील है।
उत्तर – नहीं, नहीं। ध्रुव परिणमनशील नहीं। परम पारिणामिकभाव तो एकरूप सदृश है।
मुमुक्षु - परमपारिणामिकभाव है, उसका परिणमन तो केवलज्ञानरूप भी होता है और मतिश्रुतज्ञानरूप भी होता है।
उत्तर – वह भी होता है। मति श्रुत भी होता है, पहले मति श्रुत आदि होता है, फिर केवलज्ञान होता है। उसका ही परिणमन पर्यायदृष्टि से। द्रव्यदृष्टि से वह ऐसा का ऐसा ही है। द्रव्य से तो परम पारिणामिक ऐसा का ऐसा है। पर्यायदृष्टि से देखो, पर्यायदृष्टि से देखो तो उस ध्रुव का यह उत्पाद-व्यय का परिणमन, वह उसका है। वह पर्यायदृष्टि से देखो तो.... द्रव्यदृष्टि से देखो तो ऐसा का ऐसा है। वह परिणमता नहीं है – द्रव्य परिणमता नहीं है, द्रव्य कूटस्थ है। पर्याय परिणमती है द्रव्य तो कूटस्थ है, अपरिणमन है। द्रव्यस्वभाव (इसलिए तो) सदृश शब्द लिया है न? उसका अर्थ भी सदृश लिया है। ऐसा का ऐसा।
मुमुक्षु – ......
उत्तर – वह कूटस्थ दृष्टि में आया... परिणमनशील पर्याय में लक्ष्य में आता है। लक्ष्य में पर्याय में आता है परन्तु लक्ष्य में जो चीज आती है, वह अपरिणमनशील है, वस्तु - द्रव्य अपरिणमनशील है परन्तु लक्ष्य में आता है अनित्यपर्याय से... अनित्य परिणमन पर्याय से लक्ष्य में आता है। वह ध्रुव से लक्ष्य में नहीं आता, पर्याय में लक्ष्य से आता है परन्तु लक्ष्य में क्या (आया)? ध्रुव, कूटस्थ है।
मुमुक्षु - पारिणामिकभाव में भी पर्याय है ? उत्तर – गुण है, पर्याय नहीं । गुणरूप त्रिकाल एकरूप। पर्याय तो जो उत्पन्न हुई