Book Title: Yogsara Pravachan Part 02
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 1
________________ ॥नमः सिद्धेभ्यः॥ योगसार प्रवचन (भाग - दो) पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के योगसार पर हुए धारावाहिक प्रवचन ___ जीव सदा अकेला है उक्क उपज्जइ मरइ कु वि दुहु सुहु भंजइ इक्कु। णरयहं जाइ वि इक्क जिउ तह णिव्वाणहँ इक्कु॥६९॥ जन्म-मरण एक हि करे, सुख-दुःख वेदत एक। नरक गमन भी एक ही, मोक्ष जाय जीव एक॥ अन्वयार्थ - (इक्क उपज्जइ मरइ कु वि) जीव अकेला ही जन्मता है व अकेला ही मरता है (इक्कु दुहु सुहु भुजंइ) अकेला ही दुःख या सुख भोगता है (इक्क जियणरयहं जाइ वि)अकेला ही जीव नरक में ही जाता है ( तह इक्कुणिव्वाणहँ )तथा अकेला जीव ही निर्वाण को प्राप्त होता है। वीर संवत २४९२, आषाढ़ कृष्ण २, सोमवार, दिनाङ्क ०४-०७-१९६६ गाथा ६९ से ७१ प्रवचन नं. २५ योगीन्द्रदेव दिगम्बर मुनि भरतक्षेत्र में बहुत सैंकड़ों वर्ष पूर्व हुए, उन्होंने यह

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