Book Title: Yogsara Pravachan Part 02
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 4
________________ गाथा-६९ उत्तर : सब साथ होकर भोगेंगे या नहीं? ऐ...ई... धूल में भी नहीं भोगते, सब अपने राग को भोगते हैं, भिन्न-भिन्न राग करके भोगते हैं, पैसा कहाँ भोगते हैं ? पैसा कोई खा जाता है ? आहा...! देखो। __चार भाई हों तो एक ही स्थिति में नहीं रह सकते। चार भाईयों का दृष्टान्त दिया है। है ? इसमें? चार भाई हों तो एक ही स्थिति में नहीं रह सकते। एक धनवान होकर सांसारिक सुख भोगता है। देखो, सांसारिक सुख भोगता है अर्थात् दुःख (भोगता है)। एक निर्धन होकर कष्टपूर्वक जीवन निर्वाह करता है, एक विद्वान् होकर देश प्रसिद्ध हो जाता है... विद्वान् होवे तो देश में प्रतिष्ठा होती है। उसमें क्या? एक मूर्ख रहकर सबसे निरादर पाता है। चार भाई के चार (प्रकार)। श्रेणिक, अभयकुमार, एक साथ जीमते थे। बहुत प्रीति थी, श्रेणिक राजा को अभयकुमार के प्रति बहुत प्रीति थी और वह तो दीवानपने का काम करता था और बहुत बुद्धिमान । अभयकुमार की बुद्धि हो ऐसा बनिये लिखते हैं या नहीं? बहियों में लिखते हैं। मुमुक्षु : ग्राहक को सम्हालना आता है ? उत्तर : सम्हालना क्या आता है ? वह बुद्धिवाला था तो यह कहे हमको बुद्धि दो। किसकी बुद्धि ? तुम्हें ऐसे मिल जाती होगी? कहते हैं, उस अभयकुमार के प्रति कितनी प्रीति थी। अभयकुमार स्वर्ग में गया, श्रेणिक राजा नरक में गया। समझ में आया? एक साथ भोजन करते थे। एक नरक में गया-एक स्वर्ग में गया, कोई मोक्ष में गया। समझ में आया? दूसरे राजकुमार साथ में थे, वे मोक्ष में गये। जैसी अपनी पर्याय करते हैं, वैसा उसका फल मिलता है। एक साथ भोजन करनेवाले... शास्त्रपाठ भेद ऐसा है। एक साथ भोजन करनेवाले भी शास्त्रपाठ में भेद, एक नरक में जाते हैं और एक मोक्ष में जाते हैं - ऐसा देख। मांगीरामजी ! क्या कहते हैं ? देखो! कहते हैं, तू अपने परिणाम सुधार और अपना आत्मा शुद्ध आननदकन्द है - ऐसी दृष्टि करके आत्मा का ध्यान अनुभव कर, यही मोक्ष का उपाय है; दूसरा कोई उपाय नहीं है। समझ में आया? जब रोग आता है, तब इस जीव को उसकी वेदना स्वयं ही सहनी पड़ती है।

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