Book Title: Yogsara Pravachan Part 02
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 9
________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) उनसे राग करना वृथा है। जिनके प्रति तू राग करता है, वे वस्तुएँ तो छूट जायेंगी, तेरे साथ तो आयेंगी नहीं, इसलिए तेरा राग वृथा है। तेरे साथ तो वे परपदार्थ आते नहीं हैं। ऐसे क्षणभंगुर पदार्थों से राग करना, शोक व दुःख का कारण है। ठीक लिखा है। इसलिए तू अब ऐसा काम कर कि जिससे तुझे स्थिरता प्राप्त हो... ध्यान, ध्यान कहा न? ऐसा कर कि जिसमें आत्मा अपनी ज्ञानभूमिका में आ जाये। समझ में आया? ऐसा काम करो कि चैतन्य भगवान आत्मा अपनी ज्ञानभूमि में आ जाएगा। राग -विकल्प आदि भूमि आत्मा की नहीं है। समझ में आया? अविनाशी मोक्ष का अनुपम सुख प्राप्त हो... इत्यादि बहुत लिखा है। मृत्यु आने से पहले ही तू ऐसा प्रयत्न कर ले, वह तेरे लिये योग्य है। तुझे योग्य है कि देह छूटने से पहले यत्न कर ! देह छूटेगी उस समय यत्न नहीं होगा। घर जलेगा तब कुएँ में से पानी निकालूँगा, नहीं निकलेगा; घर जल जायेगा। देह छूटने का अवसर आया, अब धर्म करो। क्या धर्म करे? मुमुक्षु : मरने से पहले बसीयतनामा कर लेना? उत्तर : मरने से पहले आत्मा का यत्न करना। बसीयतनामा क्या करे? मर जाये बील में बील जाना है इसे? मरने से पहले आत्मा का यत्न करना - ऐसा कहते हैं। समझ में आया? मानव शरीर से ही शिवपद मिल सकता है। देव, नारकी, पशु के शरीर में रहकर कभी भी शिवपद प्राप्त नहीं हो सकता। यह अवसर गँवाना योग्य नहीं है। वह उपाय यही है कि जो-जो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपने नहीं हैं, उन्हें पर समझकर उन सबसे राग हटा ले। क्या कहते हैं ? देखो! अपने से परद्रव्य भिन्न, परक्षेत्र भिन्न, परदशा भिन्न, परभाव भिन्न है, तो जो अपने से परद्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव है; ऐसा समझकर सबसे राग उठा ले। इन देव-शास्त्र-गुरु की ओर से भी राग उठा ले – ऐसा कहते हैं। आहा...हा...! है? पानी में 'गुणवन्त' अकेला मरा होगा, तब फूलचन्दभाई को पुकार किया होगा? कि फूलचन्दभाई नहीं मिलते, अरे... ! यहाँ कोई बापू नहीं मिले, अकेले जाना? आहा...हा...! अकेले अन्दर में घुस कर अकेला ध्यान करे तो कोई विघ्न करे ऐसा है? है ? मेरा ज्ञान, मेरा ज्ञान, मेरा ज्ञान... लो! 'सेठिया' कहते हैं न? सेठिया नहीं? मेरा ज्ञान, मेरा ज्ञान । यह ज्ञानस्वरूप आत्मा जाननेवाला है, वह जाननहार स्वरूप

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