Book Title: Yogsara Pravachan Part 02
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 387
________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ३८७ उन्होंने भी उसमें कहा है न कि मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार से है – यह शब्द प्रयोग किया है। मोक्षमार्ग दो प्रकार का नहीं, उसका निरूपण दो प्रकार से है। वह शब्द यहाँ है। टीकाकार अमृतचन्द्राचार्य (कहते हैं)। ववहारिओ पुण णओ दोण्णि वि लिंगाणि भणदि मोक्खपहे। णिच्छयणओ ण इच्छदि मोक्खपहे सव्वलिंगाणि॥४१४॥ एक-एक शब्द उन्होंने शास्त्र में से लिया है। भले ही सामान्य का विशेष स्पष्ट किया है परन्तु इस शास्त्र के जो शब्द हों, उस शैली से ही बात की है, घर की (बात) कुछ नहीं की है परन्तु लोगों को उसका विश्वास नहीं आता। सीधे शास्त्र के अर्थ समझते नहीं और सच्चे पण्डितों द्वारा किये हुए अर्थ का बहुमान नहीं आता। यहाँ भी कहा, देखो! दो भेद से (दो प्रकार के) द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग है। ऐसा जो प्ररूपण - प्रकार (अर्थात् ऐसे प्रकार की जा प्ररूपणा) वह केवल व्यवहार ही है।.... परमार्थ नहीं। समझ में आया? ___यहाँ कहते हैं कि मोक्ष के अर्थी को उचित है कि इसी एक स्वानुभवरूप मोक्षमार्ग का सेवन करे। भगवान आत्मा में पूरा धाम परमात्मा स्वयं पूरा पड़ा है। अरे...! उसमें तो अनन्त परमात्मा की अनन्त पर्यायें पड़ी हैं। समझ में आया ? सिद्ध भगवान, जो अनन्त पर्यायें प्रगट हुई, वह तो एक समय की दशा है। ऐसी सादि-अनन्त दशाएँ - परमात्मा की एक समय की दशा, ऐसी सादि-अनन्त दशा जो भूतकाल के संसार के काल की अपेक्षा अनन्त गुणी पर्याय है। समझ में आया? संसार की पर्यायों का काल अशुद्ध या साधक, उनका काल बहुत थोड़ा है। अशुद्ध का अनन्त, साधक का असंख्य और साध्य-पूर्ण दशा का अनन्त... अनन्त... अनन्त... द्रव्य का अन्त कब आयेगा? द्रव्य का अन्त नहीं तो पर्याय का अन्त कब (आयेगा)? ऐसे की ऐसी पर्याय... पर्याय... द्रव्य... द्रव्य... द्रव्य ऐसे अनन्त सिद्ध एक समय की दशावाला सिद्धपद, ऐसी अनन्त सिद्धपद (की पर्याय) एक समय में आत्मा में पड़ी है। आहा...हा...! समझ में आया? स्थूलदृष्टि से महाभगवान हाथ में नहीं आता, तब तक उसकी रमणता कहाँ

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