Book Title: Yogsara Pravachan Part 02
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 394
________________ गाथा - १०५ ३९४ कहते हैं – ऐसा आत्मा जहाँ जिसे प्रतीति में नहीं और क्षणिक को भी आत्मा मानता है, वह मान्यता झूठी, अत्यन्त अज्ञानभाव है, संसारभाव है। समझ में आया ? गाँधीजी ने श्रीमद् से प्रश्न किया है कि यह बुद्ध हैं, वे मोक्ष प्राप्त हुए हैं या नहीं ? सत्ताईस प्रश्न, सत्ताईस प्रश्न किये हैं । गाँधीजी के समय में सत्ताईस प्रश्न, सत्ताईसवें वर्ष में हैं। सत्ताईसवें वर्ष में सत्ताईस प्रश्न हैं। समझ में आया ? तो उन्होंने कहा कि बौद्ध के कथन और शास्त्र देखने से उनकी मुक्ति नहीं हो सकती और इसके अतिरिक्त दूसरे उनके अभिप्राय हो तो अपने को जानने मिले नहीं, तब तक हम कैसे कहें ? परन्तु उन्होंने जो अभिप्राय कहें हैं, उससे तो वे मुक्ति को प्राप्त नहीं हुए हैं। सत्ताईस वर्ष में है। समझ में आया ? बौद्ध लोगों को ऐसा है कि आहा... हा... ! बहुत परोपकारी थे और ऐसा था... ऐसा कहते हैं न लोग ? हैं ? सत्ताईसवाँ वर्ष है और सत्ताईस प्रश्न हैं । बौद्ध का यहाँ होगा ? आर्य धर्म क्या सबसे उत्पन्न हुआ है ? आर्य धर्म क्या है ? सब पता है । है इसमें ? देखो, देखो, बौद्ध हैं, वे मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए । उनके शास्त्र देखने से उस कथन में ऐसा अभिप्राय है कि उन्हें मुक्ति नहीं हो सकती और उनके दूसरा कोई अभिप्राय हो तो अपने को जानने मिला नहीं । जानने मिलने के बाद उसका हम प्रमाण और निर्णय कर सकते हैं, इसमें कहीं । अलग है, सत्ताईसवाँ है । बहुत करके... लाओ, यह ठीक, अब आया ? प्रश्न २०, पत्रांक ५३० - बुद्धदेव भी मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए, यह आप किस आधार से कहते हैं ? सत्ताईस प्रश्नों में बीसवाँ प्रश्न है । उनके शास्त्रसिद्धान्तों के आधार से । जिस प्रकार से उनके शास्त्रसिद्धान्त हैं, उसी के अनुसार यदि उनका अभिप्राय हो तो वह अभिप्राय पूर्वापर विरुद्ध भी दिखायी देता है और वह सम्पूर्ण ज्ञान का लक्षण नहीं है । यदि सम्पूर्ण ज्ञान न हो तो सम्पूर्ण राग-द्वेष का नाश होना सम्भव नहीं है। जहाँ वैसा हो वहाँ संसार का सम्भव है। इसलिए, उन्हें सम्पूर्ण मोक्ष प्राप्त हुआ है, ऐसा नहीं कहा जा सकता और उनके कहे हुए शास्त्रों में जो अभिप्राय है, उसके सिवाय उनका अभिप्राय दूसरा था, उसे दूसरी तरह जानना आपके लिए और

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