Book Title: Vyakhyan Sahitya Sangraha Part 02
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Devchand Damji Sheth

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Page 603
________________ અભિપ્રા. પ૭૧ manninn महाशय विनयविजय ! . आपका अत्युपयोगी ग्रंथसम्बंधी परिश्रम प्रशंसनीय है. यह बात तत्त्वग्राही गुणग्राही आत्मानंदी विनाही संकोचके स्वीकार कर रहे हैं. इसमें अत्युक्ति नहीं है क्योंकि आपका हमारे साथ धार्मिक, हार्दिक सम्बध है और प्रकाशित होनेके समय कितगीक योग्य सलाह लीगइ है. इसलिये इस ग्रंथकी महत्ताका हमें स्वयं अनुभव हो चुका है. जिसकी बाबत आपको बहुमानके स्थान यही सम्मतिप्रदान की जाती है कि इस अत्युपयोगी सार्वजनिक लाभप्रद ग्रंथका किसी योग्य पुरुषसे हिन्दिमें अनुवाद होय जाय तो आशा है कि आपका परोपकार एक देशीय वृद्धिको प्राप्त हुआ सार्वदेशीय होजायगा. हमे कहना पड़ता है कि ऐसे सर्वोपयोगी ग्रंथको किसी दाताकी उदारताके साथ प्रकाशित किया जाता तो अल्प मूल्यमें साधारण स्थितिवालोंको लाभ मिलता. आशा है कि द्वितीयावृत्तिमें इस बातपर ध्यान दिया जायगा. साथमें कहीं कहीं कोई कोई बात आक्षेपप्रद नजर आती है. यद्यपि उस बातके जवाबदार आप नहीं होसकते क्योंकि आपने तो संग्रह किया है न कि स्वयं रचना की है और जो जो बातें जहां जहांसे उद्धृत की है उस उसका नामभी लिख दिया है. इसलिये मुख्यतया वोही उसके जवाबदार हैं तथापि इतना खुलासा सूचनारूपसे होना जरूरी था. अस्तु ग्रंथ उपयोगी है. इसमें तो शक नहीं.. __ स्वर्गस्थ श्रीमद् विजयानंदसूरि "आत्मारामजी" महाराजजीके प्रशिष्य प्रसिद्धवक्ता, . श्रीमान् श्रीवल्लभविजय महाराज, . सुरत.... व्याख्यानसाहित्यसंग्रह भाग पहीला ग्रंथ क्या है ? एक अपूर्व वस्तु है. इस्से मालूम होता है के ग्रंथकर्त्तानं जैनकोमपर बहोतही उपकार कीया है. आजकाल ऐसे पुस्तक होनेकी बहोत जरुर है अगर वो ग्रंथ हिंदिमें होजाय तो पंजाब, मालवा-मारवाड वगैरह देशोंको बहोतही फायदा पहोंचेगा. श्रीमान् श्रीवल्लभविजयजी महाराजजीना शिष्य, पंन्यासजी श्रीसोहनविजयजी महाराज, बदनावर-मालवा.

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