Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 48
________________ कित्ति १० मुणिसुबयनामो ११ । अममो १२ य निकसाओ १३ चउदसमो निप्पुलाय जिणो १४ ॥ ६२ ॥ निम्ममजिणो य होही १५ सोलसमो चित्तगुत्ततित्थयरो १६। तहय समाही १७ संवर १८ जसोहरो १९ विजयनामो य २० ॥६३ ॥ होही मल्लीदेवो २१ववायजिण २२ अणंतविरिय २३ भद्दो य २४ । भरहम्मि भावियजिणे चवीसंवदिमो निच्च ॥ ६४ ॥ वटुंतनामजिणनामत्तिउसहं अजिय संभवमिच्चाइ । उसभाइजिणाणं पुव्वभव्वत्ति-धण १ मिहुण २ सुर ३ महब्बल ४ ललियंगय ५ वइरजंघ ६ मिहुणे य ७ । सोहम्म ८ विज ९ अच्चुय १० चक्की ११ सबढ १२ मुसभे य १३ ॥ ६५ ॥ अह विमलवाहणनिवं १ अणुत्तरविजयत्त २ मजियजिणसामी ३ । तह विमलवाहणं १ आणयमि २ संभवजिणं ३ सरह ॥ ६६ ॥ महबलनरवइ १ विजया २ भिनंदणे ३ पुरिससीह १ विजयंते २ । सुमइजिणे ३ अवराइयनिव १ नवगेविज २ पउमजिणे ३ ॥ ६७ ॥ निवनंदिसेण १ छट्ठयगेविज २ सुपासतित्थसुव्रतनामा । अममश्च निष्कषायः चतुर्दशो निष्पुलाको जिनः ॥ ६२ ॥ निर्ममजिनश्च भविष्यति षोडशः चित्रगुप्ततीर्थकरः। तथा च समाधिः संवरो यशोधरो विजयनामा च ॥ ६३ ॥ भविष्यति मल्लीदेवः उपपातजिनः अनन्तवीर्यो भद्रश्च । भरते भाविजिनान् चतुर्विशतिं वन्दामहे नित्यम् ॥ ६४ ॥ वर्तमानजिननामानि ऋषभः अजितः संभव इत्यादि । ऋषभादिजिनानां पूर्वभवा-इति-धनो मिथुनं सुरो महाबलो ललितांगश्च वनजंघो मिथुनं । सौधर्मे वैद्यः अच्युतः चक्री सर्वार्थः ऋषभश्च ॥ ६५ ॥ अथ विमलवाहननृपमनुत्तरविजयत्वमजितजिनस्वामिनम् । तथा विमलवाहममानते संभवजिनं स्मरत ॥ ६६ ॥ महाबलनरपतिविजयाभिनन्दनान् पुरुषसिंहवैजयंतसुमतिजिनान् । अपराजितनृपनवमौवेयकपद्मजिनान् ॥ ६७॥ नृपो नंदिषेणः षष्ठे च अवेयके सुपार्श्वतीर्थनाथं च। पद्मनृपवैजयंतचंद्रप्रभ

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