Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 143
________________ १३४ घरजिणंहर जिणपूआवावारच्चायओ निसीहतिगं । पुष्फक्रखयथूईहिं तिविहा पूया मुणेयवा ।। ९६ ।। होइ छउमत्थकेच लिसिद्धतेहिं जिणे अवत्थतिगं । सुत्तत्थालंबणओ वन्नाइतियं वियाणिज्जा ॥९७॥ जिणमुद्द जोगमुद्दा मुत्तामुत्ती उ तिन्नि मुद्दाओ । कायमणोवयणनिरोहणं च पणिहाणतियमेयं ॥ ९८ ॥ पंचगो पणिवाओ थयपाढो sts जोगमुद्दा | वंदण जिणमुद्दाए पणिहाणं मुत्तमुत्तीए ॥ ९९ ॥ अनुन्नंतर अंगुलि कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं । पिट्टोवरि कुप्परि संविएहिं तह जोगमुद्दति ॥ ७०० ॥ चत्तारि अंगुलाई पुरओ ऊणाईं जत्थ पच्छिमओ । पायाणं उस्सग्गो एसा पुण होइ जिणमुद्दा ॥ ७०१ ॥ तात्ती मुद्दा समाजहिं दोवि गब्भिया हत्था । ते पुण निलाडदेसे लग्गा अन्ने न लग्गत्ति ॥ ७०२ ॥ अट्ठट्ठ नवट्ठ य अट्ठवीस सोलस थ वीस वीसामा । मंगल इरियावहिया सकत्थयपमुहपणदंडे ||७०३ ॥ मंगलयहsa य संपयाओ नवा उ होइ पयपढणं । पज्जतसत्तरस धिकीत्रिकम् । पुष्पाक्षतस्तुतिभिस्त्रिविधा पूजा ज्ञातव्या ॥ ९६ ॥ भवति छद्मस्थ- केवलि-सिद्धत्वैर्जिनेऽवस्थात्रिकम् । सूत्रार्थालम्बनतो वर्णादित्रिकं विजानीयात् ॥ ९७ || जिनमुद्रा योगमुद्रा मुक्ताशक्तिस्तु त्रिस्रो मुद्राः । कायमनोवचननिरोधनं च प्रणिधानत्रिकमेतत् ॥ ९८ ॥ पञ्चाङ्गः प्रणिपातः स्तवपाठो भवति योगमुद्रया | वन्दनं जिनमुद्रया प्रणिधानं मुक्ताशुक्त्या ॥ ९९ ॥ अन्योऽन्यान्तराङ्गलिकोशाकाराभ्यां द्वाभ्यां हस्ताभ्याम् । उदरोपरिकूर्पर संस्थिताभ्यां तथा योगमुद्रेति ॥ ७०० ॥ चत्वार्यङ्गुलानि पुरत ऊनानि यत्र पश्चिमतः । पादयोरुत्सर्गः एषा पुनर्भवति जिनमुद्रा || ७०१ ॥ मुक्ताशुक्तिमुद्रा समौ यत्र द्वावपि गर्भितौ हस्तौ । तौ पुनर्ललाटदेशे लग्नौ अन्ये न लग्नाविति ॥ ७०२ ॥ अष्टाष्ट नवाष्ट च अष्टाविंशतिः षोडश च विंशतिः विश्रामाः । मङ्गले ईर्यापथिकायां शक्रस्तव प्रमुखेषु पञ्चसु दण्डेषु ॥ ७०३ || महगले अष्ट च सम्पदः नवधा तु भवति

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