Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 90
________________ खतिजुया ते मुणी वंदै ॥ ५९ ॥ इय महवाइजोगा पुढवी काए हवंति दस भेया। आउक्कायाईसुवि इय एए पिंडियं तु संयं ॥६०॥ सोईदिएण एवं सेसेहिवि जइमं तओ (ईदिएहिं) पंच उवसमसेणीतिअणदंसनपुंसित्थीवेयछक्कं च पुरुसवेयं च । दो दो एगंतरिए सरिसे सरिसं उवसमेइ ॥१॥ संजलन लोभ अप्रत्या लोभ प्रत्या० लोभ | संजलमाया। अप माया प्रत्या०माया संजल०मान | अप्र०मान प्रत्या०मान | संजल०क्रोध अप्रत्याख्या प्रत्याख्या० नी क्रोध, क्रोध पुवेद हास्य रति अरति शोक भय जुगुप्सा स्त्रीवेद | नपुंसकवेद | मिथ्या पौगलिक त्व सम्यक्त्व अनंतानु अनंतानु अनंतानु अनंतानु बंधिक्रोध बंधिमान बंधिमाया बंधीलोभ उपशमश्रेणि यंत्रकम् उवसमसेणिचउक्कं जायइ जीवस्स भाभवन्नूणं । । ता पुण एगभवे खवगस्सेढी भवे एगा ॥१॥ कुर्वन्ति मनसा निर्जिताहारसंज्ञाश्रोत्रेन्द्रियाः। पृथिवीकायारंभ क्षान्तियुताः तान् मुनीन् वन्दे ॥ ३५९ ॥ इति मार्दवादियोगात् पृथिवीकाये भवन्ति दश भेदाः। अप्कायादिष्वपि एवमेते पिण्डितं तु शतं ॥३६०॥ श्रोत्रेन्द्रियेणैवं शेषैरपि तत इन्द्रियैः पंच शतानि ।

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