Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti
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कडे परूपए एवं। सुबकडे विदलकडे चम्मकडे कंबलकडे य ॥४५॥ चिरसंसट्ठोऽसि चिरसंथुओ य चिरपरिचिओ चिरं झुसिओ। चिरमणुगओऽसि गोयम ! चिराणुवित्ती य मे होसि ॥८६॥ केवलिकालो बारंस वासा जाओ य गोयमपहुस्स। पच्छा अज्जमुहम्मस्स निक्खिवित्ता [गण] गओ सिद्धि ॥८७॥ जाय .वलनाणं अज्जमुहम्मस्स अहवासाणि। सोऽविय गणं ठवित्ता जंबूनामे गओ सिद्धि ॥ ८८॥ जंबूसामी य तओ चउवालिस वच्छराणि पालित्ता । केवलनाणं पभवे गणं ठवित्ता गओ सिद्धिं ॥ ८९ ॥ सिद्धंमि जंबुनामे केवलनौणस्स होइ वुच्छेओ । केवलनाणेण समं छिज्जइ मणपजवं नाणं ॥९०॥ जओ-मणपरमोहि पुलाए आहारग खवग उवसमे करपे । संजमतिय केवलिसिझणाओ जंबुम्मि वुच्छिन्ना ॥११॥ दुविहा अंतगडभूमिउति-जुगंतकरभूमी य परियाअंतकरभूमी य, तीर्थंकरस्य केवलिकालतः जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकरभूमी । चउवासपरियाए अंतमकासी। तत्रेदं तात्पर्य-श्रीमहावीरतीर्थं
वसरणमिति-अत्रावसरे जिनः चतुरः कटान प्ररूपयति एवं । सुंबकटो विदलकटः चर्मकट: केबलकटश्च ॥४८५ ॥ चिरसंसष्टोऽसिचरसंस्तुतश्च चिरपरिचित: चिरं जोषितःचिरमनुगतोऽसि गौतम ! चिरानुवृत्तिश्च मे भवसि ॥४८६॥ केवलिकालो द्वादश वर्षाणि जातश्च गौतमप्रभोः । पश्चाद् आर्यसुधर्मणि (गणं ) निक्षिप्य गतः सिद्धिं ॥४८७॥ जातं केवलज्ञानं आर्यसुधर्मणः अष्ट वर्षाणि । सोऽपि च गणं स्थापयित्वा जंबूनानि गतः सिद्धिं ॥ १८८॥ जंबूस्वामी च ततः चतुश्चत्वारिंशतं संवत्सराणि पालयित्वा । केबलज्ञानं प्रभवे गणं स्थापयित्वा गत: सिद्धिं ॥ ४८९॥ सिद्ध जम्बूनानि केवलज्ञानस्य भवति व्युच्छेदः। केवलज्ञानेन समं छि. धते स्म मनःपर्यवज्ञानं ॥ ४९० ॥ मनः परमावधिः पुलाकः क्ष‘पकोपशमे ( श्रेग्यौ ) ( जिन ) कल्पः संयमत्रिककेवलिसेधनाः "जम्बूस्वामिनि व्युच्छिन्नाः ॥ ४९१॥ द्विविधा अंतकृभूमिरिति
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