Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 133
________________ १२४ चरणहेऊ । तद्धरणं गुरुमूले गुरुविरहे ठावणापुरओ ॥१६॥ अक्खे वराडए वा कढे पुत्थे व चित्तकम्मे वा । सब्भावमसम्भावे ठवणारूवं वियाणाहि ॥१७॥अट्ठावयंमि भरहाहिवेण सिरिआइनाहविरहमि । ठाविय जिणपडिमाओ विहित्ति पूयापों ठवणा ॥ १८ ॥ बोहेऊणं संपइरना पञ्चतिदेसरायाणो । संमत्तं गाहेडं विसज्जिया जिणहरे कासा ॥ १९ ॥ एवं निसाहगंथे भणियं नाऊण भुवणनाहाणं । कारिज मंदिराई विहिणा अहिगारिणो तत्तो ॥२०॥ जिणमंदिरकारणविहित्ति--अहिगारिणा इमं खलु कारेयई विवज्जिए दोसे । आगाभंगाउ चिय धम्मो आणाइ पडिबद्धो ॥२१॥ अहिगारिणो गिहत्थो मुहसयणो वित्तसंजुओ कुलजो । अक्खुद्दो धिइबलिओ मइमं तह धम्मरागो य ॥ २२ ॥ जिणभवणं १ जिणबिबट्ठावणरपूया३ य सुत्तओ विहिणा। दवत्थओत्ति नेयं भावत्थयकारणत्तेणं ॥ २३ ॥ मुत्तूणं भावथयं जो दवथए पयट्टए मूढो । सो साहू वत्तबो गोयम ! अजओ अविरओ य ॥२४॥उकोसं दवयं आहेतुः। तद्धरणं गुरुमूले गुरुविरहे स्थापनापुरतः ॥१६॥ अक्षे घराटके वा काष्ठे पुस्तके च चित्रकर्मणि वा । सद्भावासद्भावयोः स्था. पनारूपं विजानीहि ॥ १७ ॥ अष्टापदे भरताधिपेन श्रीआदिनाथविरहे । स्थापिता जिनप्रतिमाः विधिरिति पूजापदं स्थापना ॥१८॥ बोधयित्वा सम्प्रतिराजेन प्रत्यन्तदेशराजान: । सम्यक्त्वं ग्रा. हयित्वा विसर्जिताः जिनगृहाणि अकार्षः ॥ १९ ॥ एतन्निशीथग्रन्थे भणितं ज्ञात्वा भुवननाथानाम् । कारयेयुर्मन्दिराणि विधिना अधिकारिणस्ततः ॥ २० ॥ जिनमन्दिरकारणविधिरिति-अधिकारिणा इदं खलु कारयितव्यं विवर्जितं दोषैः । आज्ञाभंगादेव धर्म आज्ञया प्रतिबद्धः ॥ २१ ॥ अधिकारी गृहस्थः शुभस्वजनो वित्तसंयुतः कुलजः। अक्षुद्रो धृतिबलिको मतिमान् तथा धर्मरागी च ॥२२॥ जिनभवनं १ जिनबिम्ब स्थापना २ पूजा३ च सूत्रतो विधिना । द्रव्यस्तव इति शेयं भावस्तवकारणत्वेन ॥ २३॥ मुक्त्वा भावस्तवं यो द्रव्यस्तवे प्रवर्तते मूढः। स साधुर्वक्तव्यः गौतम! अयत: अविरतश्च ॥ २४॥ उत्कृष्टं द्रव्यस्तवमाराध्य याति अच्युतं

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