Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 102
________________ जिणमुक्खतवत्ति-निवाणमंतकिरिया चउदसमेणं ६ पढमनाहस्स । सेसाण मासिएणं वीरजिणिदस्स छटेणं ॥ ३४ ॥ जिणमुक्खसाहुणो त्ति-एगो भयवं वोरो तित्तीसाइ सह निव्वुओ पासो। छत्तीसएहिं पंचहि सरहिं नेमी गओ सिद्धिं ॥ ३५ ॥पंचहिं समणसएहि मल्लो संतो उ नवसएहिं तु । अट्ठसएणं धम्मो सएहिं छहिं वासुपुजजिणो ॥ ३६ ॥ सत्तसहस्साणंतइजिणस्स विमलरस छरसहस्साई। पंच सयाई सुपासे पउमामे तिन्नि अट्ठसया ॥३७॥दस य सहस्सेहिं उसभो सेसा उ सहस्सपरिवुडा सिद्धा । निबाणगमणसंखा एसा जिणसवसाहूणं ॥ ३८॥ मुक्खहात्ति--अट्ठावयंमि उसभी सिद्धिगओ वासुपुज चंपाए । पावाए वद्धमाणो अरिहनेमो .उ उजिते ॥ ३९ ॥ अवसेसा तित्थयरा जाइजरामरणबंधणविमुक्का। सम्मेयसिलसिहरे वीसं परिनिव्वुया वंदे ॥४०॥ सिद्धिगमणवे इति--निर्वाणमन्तक्रिया चतुर्दशमेन प्रथमनाथस्य । शेषाणां मासिकेन वीरजिनेन्द्रस्य षष्ठेन ॥ ४३४ ॥ जिनमोक्षसाधवः- एको भगवान् वीरः त्रयस्त्रिंशता सह निर्वृतः पार्श्वः । षट्त्रिंशदधिकैः पंचभिः शतः नेमिर्गतः सिद्धिं ॥ ४३५ ॥ पंचभिः श्रमणशतैर्मल्ली शान्तिस्तु नवभिः शतैरेव । अष्टशत्या धर्मः शतैः षड्भिः वासुपूज्यजिनः ॥ ४३६ ॥ सप्त सहस्राणि अनन्तजिनस्य विमलस्य षट् सहस्राणि । पंच शतानि सुपाचे पद्माभे त्रीणि (अधिकानि ) अष्टभिः शतानि ॥४३७॥ दशभिश्च सहस्रैर्वषभः शेषास्तु सहस्रपरिवृताः सिद्धाः । निर्वाणगमनसंख्या एषा जिनसर्वसाधूनां ॥ ४३८ ॥ मोक्षस्थानभिति--अष्टापदे ऋषभः सिद्धिं गतो वासुपूज्यः चंपायां। पापायां वर्द्धमानोऽरिएनेमिस्तु उजयंते ॥ ४३९ ॥ अवशेषांस्तीर्थकरान् जातिजरामरणबन्धनविमुक्तान् । सम्मेतशैलशिखरे विंशतिं परिनिर्वृतान् वन्दे ॥४४०॥ सिद्धिगमन

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