Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

Previous | Next

Page 68
________________ २ पायट्ठवणं च ३ पायकेसरिया ४ । पडलाइं ५ रयत्ताणं ६ च गोच्छओ ७ पायनिज्जोगो ॥९७ ॥ तिन्नेव य पच्छागा १० रयहरणं चेव ११ होइ मुहपत्ती १२ । एसो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु ॥९८ ॥ थविरकप्पोवगरणाइंति-एए चेव दुवालस मत्तग अइरेग चोलपट्टो य । एसो चउदसरूवो उवही पुण थेरकप्पमि ॥ १९९ ॥ तिन्नि विहत्थी चउरंगुलं च भाणस्स मज्झिम पमाणं । एत्तो हीण जहन्नं अइरेगयरं तु उकोसं ॥२००॥ पत्ताबंधपमाणं भाणपमाणेण होइ नायव्वं । जह गंठिमि कयंमि कोणा चउरंगुला हुँति ॥२०१॥ पत्तगठवणं तह गुच्छगो पायपडिलेहिणी चेव । तिण्हंपि उप्पमाणं विहत्थी चउरंगुलं चेव ॥२०२ ॥ अडाइज्जा हत्था दीहा छत्तीसअंगुला रुंदा। बीयं पडिग्गहाओ ससरीराओ वि निष्फनं ॥ २०३ ॥ कयलीदलगब्भसमा पडला उकिट्ठमज्झिमजहन्ना । गिम्हे हेमंतमि य वासामु य पाणरक्खट्टा ॥४॥ तिनि चउ पंच गिम्हे चउरो पंचच्छगं च हेमंते । पंच छ सत्त वासामु हुंति घण लानि रजस्त्राणं च गोच्छकः पात्रनिर्योगः ॥ १९७ ॥ त्रय एव च प्रच्छादका रजोहरणं चैव भवति मुखवस्त्रिका । एष द्वादशविध उपधिर्जिनकल्पिकानां तु ॥ १९८ ।। स्थविरकल्पोपकरणानीति-पतान्येव द्वादश मात्रकमतिरेकं चोलपट्टश्च । एष चतुर्दशरूप उपधिः पुनः स्थविरकल्पे ॥ १९९॥ त्रयो वितस्तयः चतुरंगुलं च भाजनस्य मध्यमप्रमाणम् । एतस्माद् हीनं जघन्यमतिरेकतरन्तूत्कर्ष ॥२०॥ पात्रबन्धप्रमाणं भाजनप्रमाणेन भवति ज्ञातव्यम् । यथा ग्रन्थौ कृतौ कोणाः चतुरंगुला भवन्ति ॥ २०१॥ पात्रकस्थापनं तथा गोच्छकः पात्रप्रतिलेखिनी चैव । त्रयाणामपि तु प्रमाणं वितस्तिः चत्वार्यगुलानि चैव ॥ २०२॥ अर्धतृतीया हस्ता दैध्ये षट्त्रिंशतमगुलान् विस्तीर्णाः । द्वितीयं प्रमाण पतदग्रहात् स्वशरीरादपि च निष्पन्नम् ॥ २०३॥ कदलीदलगर्भसमा : पटला उत्कृष्टमध्यमजघन्याः । ग्रीष्मे हेमंते च वर्षासु च प्राणरक्षणार्थ ॥ २०४॥ त्रयः चत्वारः पंच ग्रीष्मे चत्वारः पंच षट् च हैमंते । पंच षट् सप्त व

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190