Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar Publisher: Agamoday SamitiPage 85
________________ ७६ कम्मं सोहेइ सुलहबोही य। चरणकरणं विसुद्धं उबवूहतो परूवंतो ॥ २१ ॥ अद्धमसणस्स सबंजगस्स कुज्जा दवस्स दो भाए। वाऊपवियारगट्ठा छन्भायं ऊणयं कुन्जा ॥ २२॥ पिण्डपाणएसणासत्तगंति-संसह १ मसंसट्ठा २ उद्धड ३ तह अप्पलेविया चेव ४ । उग्गहिया ५ पग्गहिया ६ उज्झियधम्मा य ७ सत्तमिया ॥ २३ ॥ वत्थग्गहणविधाणत्ति-दुकरं खलु भो निचं,अणगारस्स भिक्खुणो । सबं से जाइयं होइ, नहु किंचि अजाइयं ॥ २४ ॥ जं न तयट्ठा कोयं नेव व्यं जन्न गहियमन्नेसि । आहह पामिचं णय कप्पए साहुणो वत्थं ॥ २५ ॥ अंजणखंजणकद्दमलित्ते, मूसगभक्खिय अग्गिहिं दड्डे । तुन्निय कुट्टिय पन्जव लीहे, होइ विवागो सुहो अमहो वा ॥ २६ ॥ नवभागकए वत्थे चउरो कोणा य दोन्नि अंता य।दो कन्नावट्टीओ मझे वत्थस्स इक्कं तु ॥२७॥ चत्तारि देवया भागा, दुवे भागा य माणुसा । आसुरे य दुवे भागा, एगो पुण जाण रक्खसो ॥ २८ ॥ देवेसु उत्तमो लाभो, माणुसेसु य मज्झिमो । आसुरेसु सुलभबोधिश्च । चरणकरणं विशुद्धमुपद्व्हयन् प्ररूपयंश्च ॥३२१ ।। अर्द्धमशनस्य सव्यंजनस्य कुर्याद् द्रवस्य द्वौ भागौ। वायुप्रविचा. रणार्थाय षष्ठं भागमूनकं कुर्यात् ॥ ३२२॥ पिण्डैषणासप्तकमितिअसंसृष्टा संसृष्टोद्धता तथाऽल्पलेपिका चैत्र । उद्गृहीता प्रगृहीतोज्झितधर्मा च सप्तमिका ॥३२३।। वस्त्रग्रहणविधानमिति-दुष्करं खलु मो नित्यमनगारस्य भिक्षोः। सर्व तस्य याचितं भवति नैव किंचिदयाचितं ॥३२४॥ यन्न तदर्थाय क्रीतं नैव व्यूतं यन्न गृहीतमन्यैः । आहृतं प्रामित्यं त्यक्त्वा कल्पते साधोः वस्त्रं ॥३२५॥ अंजनखंजनकईमलिप्ते मूषकभक्षितेऽग्निना दग्धे । तूर्णिते कुट्टिते पर्यवलीढे भ. पति विपाकः शुभोऽशुभो वा ॥३२६ ॥ नवभागकृते बस्ने चत्वारः कोणाश्च द्वावन्तौ च। द्वे कर्णवृत्ती मध्ये वस्त्रस्यैकं तु भागं जानी. हि ॥३२७ ॥ चतुरो देवताभागान् द्वौ भागौ च मानुषाणां । असुराणां च नौ भागौ एकं पुनर्जानीहि राक्षसं ॥ ३२८॥ देवेषूत्तमोPage Navigation
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