Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar Publisher: Agamoday SamitiPage 83
________________ ७४ . उवसग्गपरीसहअभीओ ॥ ५ ॥ वोसट्टचत्तदेहो उवसग्गसहो जहेव जिणकप्पी । एसणमभिग्गहीया भत्तं च अलेवडं तस्स ॥ ६ ॥ तवेण मुत्तेण सत्तेण, एगत्तेण बलेण य। तुलणा पंचहा वुत्ता, जिणकप्पं पडिवजओ ॥ ७॥ फासण १ रसणा २ घाणं ३ च ४ | भिक्षुपतिमाद्वादशस्थापना ॥ सोयं च ५ इंदिया पंच। फासप्रथमा १ एकमासिकी प्रतिमा ॥ | ? रस २ गंध ३ वन्ना ४ द्वितीया २ द्विमासिकी प्रतिमा ॥ सद्दा विसया विणिहिट्ठा॥८॥ तृतीया ३ त्रिमासिकी प्रतिमा ॥ चतुर्थी ४ चतुर्मासिकी प्रतिमा । पडिलेहणाणि गोसावरण्हपंचमी ५ पंचमासिको प्रतिमा ॥ उग्घाडपोरिसीसु तिगं । षष्ठी ६ षण्मासिकी प्रतिमा ॥ | तत्थ पहाए अणुग्गयसूरे सप्तमी ७ सप्तमासिकी प्रतिमा ॥ पडिक्कमणकरणाओ ॥९॥ अष्टमी ८ सप्ताहोरात्रिकी प्रतिमा ॥ महपत्ति १ चोलपटो २ कनवमी ९ सप्ताहोरात्रिको प्रतिमा । दसमी १० सप्ताहोरात्रिकी प्रतिमा पतिग ३ दुनिसिज्ज ७ एकादशी ११ एकाहोरात्रिको प्र०॥ रयहरणं । संथारु ९ त्तरपट्टो द्वादशो १२ एकरात्रिको प्रतिमा ॥ । १० । दस पेहाऽणुग्गए सूरे ॥१०॥ पडिलेहिऊण उवहिं गोसंमि पमज्जणा उ वसहोए । अवरण्हे पुण पढमं पमजणा तयणु पडिलेहा ॥१२॥ दुन्नि उ पमजणाओ ॥ ३०५ ॥ व्युत्सृष्टत्यक्तदेह उपसर्गसहो यथैव जिनकल्पी। एषणाऽभिगृहीता भक्तं चालेपकृत् तस्य ॥३०६ ॥ तपसा सत्त्वेन सूत्रेणैकत्वेन बलेन च । तुलना पंचधोक्ता जिनकल्पं प्रतिपद्यमानस्य ॥३०७ ॥ स्पर्शनं रसनं घ्राणं चक्षुः श्रोत्रं चेन्द्रियाणि पंच । स्पर्शरसगन्धवर्णाः शब्दा विषया विनिर्दिष्टाः ॥ ३०८ ॥ प्रतिलेखनानि-प्रत्यूषसि अपराण्हे उद्घाटपौरुष्यां त्रिकं तत्र प्रभातेऽनुद्गते सूर्ये प्रतिक्रमणकरणात् (अनन्तरं ) ॥ ३०९ ॥ मुखपट्टिः चोलपट्टः कल्पत्रिकं द्वे निषद्ये रजोहरणं । संसार उत्तरपट्टो दश प्रतिलेखनाः अनुदगते सूरे ॥ ३१०॥ प्रतिलिख्योपधिं प्रभाते प्रमार्जना क्सत्याः। अपराहणे पुन: प्रथमं प्रमार्जना तदनु प्रतिलेखना ॥ ३११ ॥ द्वे प्रमार्जने ऋतुषु वर्षासु तृतीया मध्याह्ने । वस.Page Navigation
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