Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar Publisher: Agamoday SamitiPage 70
________________ पमज्जणट्ठा लिंगट्ठा चेव रयहरणं ॥ १४॥ संपाइमरयरेणूपमजणट्ठा वयंति मुहपत्तिं । नासं मुहं च बंधइ तोए वसहिं पमजतो ॥१५॥ छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहणं जिणेहिं पन्नत्तं । जे य गुणा संभोए हवंति ते पायगहणेवि ॥ १६ ॥ तणगहणानलसेवानिवारणा धम्मसुक्कझाणट्ठा । दिदं कप्पागहणं गिलाणमरणट्ठया चेव ॥१७॥ वेउन्वि अवावडे वाइए य हिरि(हिरिए)खद्धपजणणे चेव । तेसिं अणुग्गहहा लिंगुदयट्ठा य पट्टो उ ॥ १८ ॥ ओघनियुक्तौ । अन्नह भणियंपि सुए किंची कालाइकारणावेक्खं । आइन्नमन्नहनिय दीसइ संविगगीएहि ॥ १९ ॥ कप्पाणं पाउरणं अग्गोयरचाय तुंबयकडाही । सिकगनिक्खिवणत्ते पण तह दोराइमन्नपि ॥ २० ॥ साहुणीगोवगरणाइंति-उवगरणाई चउदस ( ते चेव हवंति) अचोलपट्टाई । अज्जाणवि भणियाई अहियाणि य हुँति ताणेवं ॥ २१॥ उग्गहणंतगपट्टो २ अद्धोख्य ३ चलणिया य ४ बोद्धव्वा । अभितर ५ बाहिनियंसणी य ६ तह कंचुए चेव ७ ॥२२॥ उक्कच्छिय थमेव रजोहरणं ॥ २१४ ॥ संपातिमरजोरेणुप्रमार्जनार्थ वदन्ति मुखपोतिकां। नासिकां मुखं च बध्नाति तया वसतिं प्रमार्जयन् ॥२१५॥ षट्कायरक्षणार्थ पात्रग्रहणं जिनैः प्रज्ञप्तं । ये च गुणाः संभोगे भवन्ति ते पात्रग्रहणेऽपि ॥ २१६ ॥ तृणग्रहणानलसेवानिवारणाय धर्मशुक्लध्यानार्थ । दृष्टं कल्पग्रहणं ग्लानार्थाय मृतकार्थायैव ॥२१७ ॥ वैकुर्विकेऽप्रावृते वातिके हीमति महति प्रजनने चैव । तेषामनुग्रहार्थ लिंगोदयार्थ च ( चोल ) पट्टस्तु ॥ २१८॥ अन्यथा भणितमपि श्रुते किंचित् कालादिकारणापेक्षं । आचीर्णमन्यथैव दृश्यते संविग्नगीतैः (ताथैः) ॥ २१९ ॥ कल्पानां प्रावरणं अग्रावतारत्यागः तुंबे कटाहः एतत्प्रभुतिः। शिक्कके निक्षेपस्त्रेपणं तथा दवरकाधन्यदपि ॥ २२०॥ साध्वीनामुपकरणसंख्या-उपकरणानि चतुर्दश तान्येव भवन्त्यचोलपट्टानि । आर्याणामपि भणितानि अधिकानि च भवति तासामेवं॥२२२॥ अवग्रहानंतकपट्टः अोरुकं चलणिका च बोद्धव्या। अन्तर्निवसनी बहिर्निवसनी तथा कञ्चुकश्चैव ॥ २२२ ॥ अवकक्षिकाPage Navigation
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