Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar Publisher: Agamoday SamitiPage 60
________________ ५१ तिलए १८ अंबयरुक्खे १९ असोये य ॥ ४९ ॥ २० चंपगरुक्खे २१ बउले २२ वेडसरुक्खे तहेव २३ धयरुक्खे | २४ साले चडवीसइमे इय रुक्खा जिणवराणं तु ||५० || नाणुप्पत्तिअइसयत्ति - खित्ते जोयणमित्ते जं जियकोडी सहस्ससो माणं १ | सव्वसभासाणुमयं वयणं धम्माबोहरं २ ॥ ५१ ॥ पुप्पन्ना रोगा पसमंती ३ ईइ ४ वइर ५ मारीओ ६ । अइवुट्टो ७ अणावुट्टी ८ न होइ दुभिक्ख ९डमरं वा १० ॥ ५२ ॥ देहाणुमग्गलग्गं ईसीभामंडलं दिणयराभं ११ । एए कम्मक्खया सुरभत्तिकया इसे वने ॥ ५३ ॥ चकं १ छतं २ रणझओ य ३ सेयवरचामरा ४ पउमा ५|चउमुह ६ पायारतियं ७ सीहा सण ८ दुंदुहि ९ असोगे १० ॥ ५४ ॥ कंटय हिट्ठाहुत्ता ठायन्ति ११ अवट्ठियं च नहरोमं १२ | पंचेव इंदियत्था १३ मणोरमा हुति छप्पर १४ ॥ ५५ ॥ गंधोदयं च वासं १५ वासं कुसुमाण पंचबन्नाणं १६ । सउणा पयाहिणगई १७ पवणऽणुकूलो १८ नर्मति दुमा १९ ॥ ५६ ॥ भवणवइ वाणमंतर जोइसवासी विमाणवासी य । चिति समोसरणे जहन्नयं कोडिमेतं तु ॥ ५७ ॥ चउरो जम्मप्पभिई तिलक आम्रवृक्षः अशोकश्च ॥ १४९ ॥ चंपकवृक्षो बकुलो वेतसवृक्षः तथैव ध्वजवृक्षः । शालः चतुर्विंशतितम इति वृक्षा जिनवराणां ॥ १५०॥ ज्ञानोत्पत्यतिशया इति-क्षेत्रे योजनमात्रे यद् जीवकोटिसहस्राणां मानम् । सर्वस्वभाषानुगतं वचनं धर्मावबोधकरम् ॥१५९॥ पूर्वोत्पन्ना रोगाः प्रशाम्यन्ति इतिवैरमार्यः । अतिवृष्टिरनावृष्टिर्न भवति दुर्भिक्षं मरो वा ॥ १५२ ॥ ईषदेहानुमार्गलग्नं भामंडल दिनकराभम् । एते कर्मक्षयजाः सुरभक्तिकृता इमे वाऽन्ये ॥ १५३ ॥ चक्रं छत्रं रत्नध्वजश्च श्वेतवरचामरौ पद्मानि । चतुर्मुखं प्राकारrिi सिंहासनं दुंदुभिरशोकः ॥ १५४ ॥ कंटका अधोमुखाः तिष्ठन्ति अवस्थितं च नखरोम । पंचैवेन्द्रियार्था मनोरमा भवन्ति षड् ऋतवः ॥ १५५ ॥ गन्धोदकवर्ष च वर्ष कुसुमानां पंचवर्णानाम् | शकुनाः प्रदक्षिणगतयः पवनोऽनुकूलो नमन्ति द्रुमाः । १५६ ॥ भवनपतयो व्यन्तरा ज्योतिष्कवासिनो विमानवासिनश्च । तिष्ठन्ति समवसरणे जघन्यकं कोटिमात्रं तु ॥ १५७ ॥ चतुरो जन्मप्रभृतेःPage Navigation
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