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वीर-स्तुति सयं सहस्साण उ जोयणाणं, तिकंडगे पंडग - वेजयंते।
से जोयणे णव - णवते सहस्से, उधुस्सितो हेट्ठ सहस्समेगं ।।१०॥ जिस मेरु गिरि की उच्चता का लक्ष योजन मान है। पंडगाभिध वन ध्वजायुत तीन काण्ड महान हैं। निन्याणवें हजार योजन तुग अम्बर में खड़ा।
है सहस्र योजन एक पूरा मेदिनी-तल में गड़ा ॥१०॥ लाख योजन का महीधर मेरु जग-विख्यात है, तीन काण्डों से रुचिर, पण्डक ध्वजा-सम ज्ञात है। भूमि से नव-नवति योजन सहस्र ऊँचे लोक में, और एक हजार योजन पूर्ण नीचे लोक में ॥१०॥
सुमेरु पर्वत एक लाख योजन ऊँचा है । निन्यानवे हजार योजन भूमि से ऊपर आकाश में है, और एक हजार योजन नीचे भमि के गर्भ में है। इसके तीन काण्ड हैं, सबसे ऊपर के काण्ड में पण्डक वन है, जो ध्वजा के समान बहुत सुन्दर मालूम होता है।
टिप्पणी---- सुमेरु पर्वत ऊर्ध्व-ऊँचा, अध:-नीचा और मध्य तीनों लोक में अवस्थित है, भगवान का प्रभाव भी तीन लोक में व्याप्त था।
सुमेरु के भौम, सुवर्ण और रजत ये तीन काण्ड (भाग) हैं, भगवान भी सम्यक्-दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूप रत्न-त्रय से युक्त थे।
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