Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 27
________________ वीर-स्तुति गिरीवरे वा निसहाययाणं, रुयए व सेठे वलयाययाणं । तओवमे से जग भूइ - पन्ने, मुणीण मज्झे तमुदाहु पन्ने ॥१५॥ जैसे निषध है श्रोष्ठ सारे बोई पर्वत-वृन्द में । जैसे रुचक है श्रेष्ठ सारे वर्तुलाचल-वृन्द में । इस ही तरह से वीर है जग में प्रवर मति के धनी। सब बुद्धिमानों ने कहा मुनियों में सर्वोत्तम मुनी ॥१५॥ दीर्घ पर्वत-जाति में ज्यों निषध की है श्रेष्ठता, और वलयाकार गिरि में रुचक की है ज्येष्ठता। वीर स्वामी त्यों जगत में श्रेष्ठ प्रज्ञावान थे, विश्व के मुनिवृन्द में सव भांति पूज्य महान थे ।।१५।। जिस प्रकार दीर्घाकार (लंबे) पर्वतों में निषध, और वलयाकार (चूड़ी के समान गोल) पर्वतों में रुचक पर्वत श्रेष्ठ माना गया है, उसी प्रकार अखिल चराचर विश्व के ज्ञाता अनन्त-ज्ञानी भगवान महावीर को ज्ञानी पुरुषों ने त्यागी ऋषिमुनियों में श्रेष्ठ कहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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