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वीर-रतुति २३ जहा सयंभू उदहीण सेठें, नागेसु वा धरणिंदमाहु सेठं । खोओदए वा रस - वेजयंते, तवोवहाणे मुणि वेजयंते ॥२०॥
जैसे स्वयंभू सागरों में श्रेष्ठ कहलाता महा । सब नागवंशी देवगण में श्रेष्ठ धरणिद को कहा ॥ सारे रसों में इक्षुरस की श्रेष्ठता विख्यात है। तप-पुज द्वारा वीर को भी श्रेष्ठता यों ज्ञात है ॥२०॥
सागरों में ज्यों स्वयंभू श्रेष्ठ सागर भूमि पर, देवपति धरणेन्द्र नागकुमार.- गण में उच्चतर । सव रसों में प्रमुख रस है ईख का संसार में, वीर मुनि त्यों प्रमुख हैं, तप के कठिन आचार में ॥२०॥
जिस प्रकार सब समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र प्रधान है, नागकुमार जाति के भवनपति देवों में उनका इन्द्र धरणेन्द्र प्रधान है, सब रसों में ईख का मधुर-रस प्रधान है, उसी प्रकार तपश्चरण की साधना के क्षेत्र में भगवान महावीर सर्व प्रधान थे।
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