Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 53
________________ ४४ वीर-स्तुति महामोहातक-प्रशमनपराऽऽकस्मिक-भिषग, निरापेक्षो बन्धुर्विदितमहिमा मङ्गल-करः। शरण्यः साधूनां भव - भय - भृतामुत्तमगुणो, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु नः॥ महा - मोहातक - प्रशम करने में भिषग हैं, निरापेक्षी बन्धू, प्रथित जगकल्याण-कर हैं। सहारा भक्तों के भवभय-भृतों के, वर गुणी, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी सतत हों। जो मोहरूपी भयंकर रोग को नष्ट करने के लिए जनता के आकस्मिक वैद्य बनकर आए थे, जो विश्व के निःस्वार्थ बन्धु थे, जिनका यश त्रिभुवन में सर्व विदित था, जो जगत् का मंगल करनेवाले थे, जो संसार से भयभीत भक्त जनों को एक मात्र शरण देने वाले थे, जो एक से एक उत्तम गुणों के धारक थे; वे भगवान् महावीर स्वामी हमारे नयन - पथ पर सदा विराजमान रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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