Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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वीर-स्तुति अधम - यज्ञभवं पशु - हिंसनं,
निज - सुदेशनया विनिवारितम् । क्षितितलेऽत्र दया सुविसारिता,
भजत तं प्रथितं त्रिशला-सुतम् ॥५॥ सरल - सत्य - पथे सुमनोहरे,
विलिता जनता विनियोजिता । खल - दलं सकलं सरलीकृतम्,
भजत तं प्रथितं त्रिशला-सुतम् ॥६॥ अहह ! शूद्र - जनानिह भारते,
व्यदलयन् खलु जात्यभिमानिनः । विघटिता कुल-जाति-मदान्धता,
भजत तं प्रथितं त्रिशला-सुतम् ॥७॥ विकच - पंकज - पत्रविलोचनं,
सकल-साधक-वृन्द - विनन्दनम् । सघन - विघ्न - घनाघन - भंजनं, भजत तं प्रथितं त्रिशला-सुतम् ॥८॥
- उपाध्याय अमरमनि
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