________________ प्रस्तुत पुस्तक महाश्रमण भगवान् महावीर के पञ्चम गणधर आर्य सुधर्मास्वामी ने द्वितीय अंग सूत्रकृतांग सूत्र के छठे अध्ययन में भगवान् महावीर की स्तुति की है। प्रातः प्रार्थना एवं गुण-कीर्तन के रूप में प्रस्तुत वीर-स्तुति बहुत उपयोगी एवं सुन्दर है। पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री अमरमुनिजी द्वारा किया गया हिन्दी पद्यानुवाद और हिन्दी अनुवाद भी बल गुन्दर है। इससे प्राकृत गाथाओं का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। और कविश्रीजी द्वारा की गई टिप्पणी आगम के गभीर अर्थ को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है। वास्तव में 'वीर-स्तुति ' प्रार्थना के लिए अतिउपयोगी है। 30-8-1981 -मुनि समदर्शी, प्रभाकर वीरायतन राजगह in Education International For Private & Personal Use Only www.ainelibre